Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने 10 साल की बच्ची से यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी को दी गई 20 साल की कठोर सजा को पलट दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में केवल मेडिकल सबूतों के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती जब तक कि उन्हें ठोस और बाकी प्रमाणों को पुष्ट न किया जाए. जस्टिस गोविंदा सनप ने कहा “मेडिकल अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में हमले के इतिहास का उल्लेख किया था. विशेष पोक्सो अदालत ने इसे महत्वपूर्ण सबूत माना, लेकिन इसे पर्याप्त सबूत के रूप में स्वीकार करना न्यायोचित नहीं है.”
जानकारी के मुताबिक विशेष पोक्सो अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376-एबी और पोक्सो एक्ट की अन्य संबंधित धाराओं के तहत 3 जून 2023 को दोषी ठहराया था. हालांकि मामले के तीन मुख्य गवाह पीड़िता, उसकी मां और मौसी जांच के दौरान अपने बयानों से पलट गए. आरोपी के वकील राजेंद्र डागा ने दावा किया कि जब मुख्य गवाह अभियोजन के पक्ष में नहीं हैं तो केवल मेडिकल सबूत के आधार पर दोष साबित करना गलत है.
भविष्य के मामलों के लिए बना मिसाल
अदालत ने अपने फैसले में यौन अपराध मामलों में पुष्टि करने वाले सबूतों की अनिवार्यता पर जोर दिया है. ये फैसला न्यायपालिका के लिए एक अहम मिसाल स्थापित करता है कि केवल मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर दोषसिद्धि नहीं की जा सकती.
जांच प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता
इस मामले ने जांच प्रक्रिया में सुधार और गवाहों के बयानों की अहमियत को भी रेखांकित किया. अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए गवाहों के बयानों को ठोस तरीके से दर्ज करना और जांच को मजबूत करना आवश्यक है.
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