Court News: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने सोमवार को पूछा कि एक आरोपी को जेल से रिहा करने में क्या जनहित (Public Interst) है? इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया. याचिका में जमानत राशि न चुका पाने की वजह से बेल पाने के बावजूद जेल में बंद कैदियों को रिहा करने के लिए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी.
अर्चना रूपवटे द्वारा दायर जनहित याचिका में दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 41 ए के प्रावधानों का पालन करने के लिए मजिस्ट्रेट और पुलिस स्टेशनों को निर्देश देने की भी मांग की गई थी, जिसमें कहा गया है कि आरोपी को संबंधित मामले में पहले नोटिस जारी किया जाए और अगर जरूरत पड़े तो ही गिरफ्तारी की जाए.
याचिका में उठाए गए मुद्दे जनहित में कैसे हैं
जस्टिस ए एस गडकरी और जस्टिस एम एन जाधव की बेंच ने हैरानी जताते हुए कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे जनहित में कैसे हैं और पूछा कि क्या अपराधियों और आरोपियों को वापस समाज में रिहा करना जनहित में है? जस्टिस गडकरी ने पूछा,"आरोपी को जेल से रिहा करने में जनहित क्या है? अपराधियों को रिहा करने में क्या दिलचस्पी है?" वहीं याचिकाकर्ता ने दावा किया कि पुलिस अधिकारी आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए आदेशों और दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं. इस पर पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि यह कैसे मान लिया जाए कि शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है, कोर्ट ने पूछा कि क्या यह सत्यापित किया गया था.
कोर्ट ने याचिका खारिज की
अदालत ने कहा, "हमें बताएं कि किन मामलों में इन प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है. यह सब अस्पष्ट है. हम इसे खारिज कर रहे हैं. यह सरासर दुरुपयोग है." हाईकोर्ट ने कहा कि न तो SC के निर्देश और न ही सीआरपीसी धारा 41 ए पुलिस को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से से रोकते हैं. बेंच ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता यह प्रस्तुत करने में पूरी तरह असमर्थ रहा कि वर्तमान जनहित याचिका बड़े पैमाने पर जनता को कैसे प्रभावित करती है.
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