Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने नक्सलवादियों का समर्थन करने और "भारत पुन्हा नक्सलवाद पेटनार, देश वाचविन्यासति सशस्त्र क्रांतिचि गराज" टाइटल से लेख लिखने के आरोपी एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी है. यह लेख कथित तौर पर बीमा एजेंट के रूप में काम करने वाले आरोपी नितिन बोडे की ओर से "जय भारत, जय संविधान, जय नक्सलवाद" के नारे के साथ व्हाट्सएप पर वायरल किया गया था.


इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, यवतमाल में आतंकवाद निरोधी दस्ते में कार्यरत सहायक पुलिस निरीक्षक सारंग बोम्पिलवार ने शिकायत दर्ज कराई कि 3 जून 2024 को उन्हें विशेष पुलिस महानिरीक्षक (नक्सल विरोधी अभियान) के कार्यालय से एक चिट्ठी मिली, जिसमें बताया गया था कि बोडे ने धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास और भाषा के आधार पर अलग-अलग समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाला लेख लिखा था, जो एक अपराध की श्रेणी में आता है.


चिट्ठी और शिकायत के आधार पर दर्ज हुई एफआईआर


इस चिट्ठी और बोम्पिलवार की शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए (1) (बी) के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें दावा किया गया कि लेख में भारतीय युवाओं को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया गया है.


मोदी सरकार पर लगाए थे आरोप


अतिरिक्त लोक अभियोजक टीएच उदेशी ने दलील दी कि बोडे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के खिलाफ निराधार आरोप लगाए और कहा कि नागरिकों को सरकार से बचाने के लिए सशस्त्र क्रांति की आवश्यकता है.


उदेशी ने तर्क दिया, "बोडे का कृत्य केंद्र सरकार के खिलाफ आम जनता को भड़काने और भड़काने का एक प्रयास है. उन्होंने संदेश के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से नक्सलवाद की एक उन्नत विचारधारा पैदा की है और इसलिए उनके खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है."


वकील ने क्या दिया तर्क


जांचकर्ताओं ने 2024 के लिए कॉल डेटा रिकॉर्ड रिसीव किए थे, जिससे पता चला कि बोडे ने पूरे भारत में खासतौर से जम्मू और कश्मीर, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और तमिलनाडु में कॉल किए थे. वे जांच कर रहे थे कि उसने किसे कॉल किया था. उदेशी ने तर्क दिया कि उनके फोन की जरूरत है और लोगों को हथियार उठाने के लिए उकसाने वाले अधिक उत्तेजक संदेशों को आगे बढ़ाने से रोकने के लिए हिरासत में पूछताछ भी जरूरी है.


जज ने क्या कहा?


जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के ने कहा कि तथ्य और परिस्थितियां दर्शाती हैं कि संदेश प्रसारित होने के बाद या गतिविधियों के कारण क्षेत्र में कानून और व्यवस्था या सार्वजनिक व्यवस्था या शांति और सौहार्द में कोई व्यवधान नहीं हुआ. अव्यवस्था फैलाने या लोगों को हिंसा के लिए उकसाने का इरादा भारतीय दंड संहिता की धारा 153-ए के तहत अपराध की अनिवार्य शर्त है.


इसके बाद पीठ ने बोडे को निर्देश दिया कि वह अपना फोन जांचकर्ताओं को सौंप दें और आरोपपत्र दाखिल होने तक हर रविवार को पुलिस स्टेशन में उपस्थित हों.


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