Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट के सामने एक दिलचस्प मामला सामने आया, जिसमें एक छात्र ने कहा कि उसे 12वीं में साइंस स्ट्रीम से नहीं पढ़ने दिया जा रहा है. दरअसल, छात्र ने हाई स्कूल में साइंस विषय नहीं लिया था, जिसकी वजह से उसे आगे मना कर दिया गया. हाई कोर्ट ने इस नियम पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसका कोई औचित्य नहीं है. 


बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस गौतम पटेल और नीलम गोखले की खंडपीठ ने अपनी टिप्पणी में इस बात का संज्ञान लिया कि छात्र कक्षा 8 या 9 के आसपास अपने लिए विषय चुनते हैं. 14 साल के बच्चे का फैसला उसके पूरे भविष्य को निर्धारित करे, ऐसा सोचना गलत है.


कोर्ट ने कहा- हमें कोई तर्क नहीं नजर आता


कोर्ट ने कहा, "हमें कोई तर्क नजर नहीं आता कि 10वीं में जो छात्र साइंस नहीं लेते हैं, उन्हें बाद में साइंस स्ट्रीम में दाखिला क्यों नहीं देना चाहिए. वास्तव में स्कूलों में विषयों का चुनाव 10वीं कक्षा में नहीं, बल्कि कम से कम एक या दो साल पहले 8वीं या 9वीं क्लास के दौरान ही किया जाता है. यह उम्मीद करना गलत होगा कि 14 साल के बच्चे का फैसला उसका पूरा भविष्य तय करेगा."


इस दौरान कोर्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए उस पर भरोसा भी जताया. कोर्ट ने कहा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर एक नजर डालने से हमारा नजरिया और मजबूत हुआ है, जिसमें पूरे पैटर्न को बदलने का प्रस्ताव दिया गया है. साइंस-आर्ट-कॉमर्स की पुरानी रस्साकशी को दूर किया जाने की बात है, जो बिल्कुल सही है.


कोर्ट ने सवाल किया कि आखिर बोर्ड का उद्येश्य क्या है, छात्रों की मदद करना या फिर उन्हें रोकने के नए तरीके खोजना. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड को छात्र का 12वीं का रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया


क्या था मामला ?


नासिक के एक छात्र ने आईसीएसई बोर्ड से 10वीं की परीक्षा 92 प्रतिशत अंकों के साथ पास की थी. बाद में उसने साइंस स्ट्रीम में दाखिला लिया और 11वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की. आगे उसने महाराष्ट्र स्टेट बोर्ड की 12वीं की परीक्षा में भी हिस्सा लिया लेकिन बोर्ड एक आदेश एक पारित कर उसका रिजल्ट रोक दिया. बोर्ड ने कहा कि छात्र ने 10वीं में साइंस स्ट्रीम नहीं ली थी, इसलिए उसका एडमिशन रद्द किया जाता है. छात्र ने इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट का रुख किया था.


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