मुंबई: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद पुणे पुलिस की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सवाल उठाये हैं. आज अदालत ने पूछा की जब यह मामला कोर्ट में था तो महाराष्ट्र पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों किया? दरअसल, 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों की तरफ से गिरफ्तारी के विरोध में याचिका दाखिल की गई थी. जिसपर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार कार्यकर्ताओं की न्यायिक हिरासत पर रोक लगा दी थी और कहा था कि सभी को छह सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई तक घरों में नजरबंद रखा जाए.





सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नेताओं की हत्या की साजिश, भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़काने और कश्मीर के अलगाववादियों से संपर्क रखने जैसे आरोप लगाए. पुणे के संयुक्त पुलिस आयुक्त (जेसीपी) शिवाजीराव बोडखे ने कहा कि गिरफ्तार किए गए लोगों के तार कश्मीरी अलगाववादियों से जुड़े थे.


बोडखे ने कहा कि गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं ने राजनीतिक व्यवस्था के प्रति घोर असहनशीलता दिखाई है. उन्होंने दावा किया कि इकट्ठा किए गए कुछ सबूतं से पता चलता है कि ‘‘आला राजनीतिक पदाधिकारियों’’ को निशाना बनाने की साजिश थी. जेसीपी ने कहा कि पुलिस ने गिरफ्तार किए गए लोगों से लैपटॉप और पेन ड्राइव जब्त किए हैं.


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पुलिस के इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस पर हाईकोर्ट ने आज सवाल उठाए. दरअसल, हाईकोर्ट में भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपे जाने की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की गई है. हाईकोर्ट ने आज इस मामले पर सुनवाई टाल दिया क्योंकि सभी पक्षों को याचिका की कॉपी नहीं मिली थी.


पुणे पुलिस ने देशभर के कई शहरों में 28 अगस्त को छापेमारी कर कवि वरवर राव, वेर्नोन गोंजाल्वेज, अरुण परेरा, वकील सुधा भारद्वाज और पत्रकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा को गिरफ्तार किया था. इन सभी पर भीमा कोरेगांव में हिंसा फैलाने का आरोप लगा है. पिछले साल 31 दिसंबर को ‘एल्गार परिषद’ नाम के एक कार्यक्रम के बाद पुणे के पास कोरेगांव-भीमा गांव में दलितों और अगड़ी जाति के बीच झड़प हो गई थी. पुलिस अधिकारी के मुताबिक माओवादियों ने ‘एल्गार परिषद’ के लिए पैसे दिए थे.


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सुप्रीम कोर्ट और विपक्षी दलों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 29 अगस्त को कहा कि महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा से जुड़े कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी घटना के नौ महीने बाद ह़ुई है. जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा, "असहमति ही लोकतंत्र का सुरक्षा वाल्व है. अगर यह नहीं होगा तो प्रेसर कुकर फट जाएगा."


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