'FIR करते वक्त सतर्क रहे पुलिस', बॉम्बे हाईकोर्ट ने शख्स पर गलत केस बनाने को लेकर लगाई फटकार, मुआवजा देने का आदेश
मरीन ड्राइव पुलिस ने एक फूड डिलीवरी एजेंट पर आईपीसी की धारा 229 और 337 के तहत मानव जीवन को खतरे में डालने और धारा 429 के तहत एक जानवर को मारकर शरारत करने का मामला दर्ज किया था.
Bombay High Court News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक स्विगी फूड डिलीवरी एजेंट के खिलाफ गलती से आवारा कुत्ते को मारने के मामले में दर्ज FIR को लेकर पुलिस और सरकार को फटकार लगाई है. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि निराधार प्राथमिकी को लेकर अब संबंधित व्यक्ति को 20,000 हजार रुपये मुआवजे के रूप में दिए जाएं और इसकी वसूली पुलिस अधिकारी के वेतन से की जाएगी.
कोर्ट ने एफआईआर को रद्द करते हुए कहा, "पुलिस को कानून का संरक्षक होने के नाते, एफआईआर दर्ज करते समय और निश्चित रूप से बाद में चार्जशीट दाखिल करते वक्त अधिक चौकस और सतर्क रहने की जरूरत है." इस मामले की सुनवाई जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने की.
बेंच ने आदेश में क्या कहा?
बेंच ने कहा, "यह देखते हुए कि पुलिस ने किसी भी अपराध का खुलासा नहीं होने के बावजूद उक्त मुकदमा दर्ज किया था, हम याचिकाकर्ता को 20,000 रुपये की लागत का भुगतान करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देना उचित समझते हैं. हालांकि, उक्त लागत की वसूली प्राथमिकी दर्ज करने और बाद में चार्जशीट दाखिल करने के लिए जिम्मेदार संबंधित अधिकारियों के वेतन से की जाएगी."
क्या है पूरा मामला?
मरीन ड्राइव पुलिस ने एक 18 वर्षीय फूड डिलीवरी एजेंट पर आईपीसी की धारा 229 और 337 के तहत मानव जीवन को खतरे में डालने और धारा 429 के तहत एक जानवर को मारकर शरारत करने का मामला दर्ज किया था. एजेंट पर पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा 11 (ए) (बी) के तहत भी आरोप लगाए गए थे.
'इंसानों पर लगने वाली धारा लागू नहीं हो सकती'
शुरुआत में पीठ ने केवल मनुष्यों के लिए आईपीसी की कुछ धाराओं को लागू करने के लिए पुलिस को फटकार लगाई. अदालत ने यह भी कहा कि कोई भी धारा लागू नहीं होगी, खासकर इसलिए कि जिस तरह से दुर्घटना हुई, उसमें कोई गड़बड़ी नहीं थी. कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक कुत्ते/बिल्ली को उनके मालिक बच्चे या परिवार के सदस्य के रूप में मानते हैं, लेकिन बुनियादी जीव विज्ञान हमें बताता है कि वे इंसान नहीं हैं.
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