Bombay High Court: जातिगत आरक्षण पर राय देना अपराध नहीं, SC-ST के तहत मामला गलत: बॉम्बे हाई कोर्ट
Bombay High Court News:अदालत ने कहा कि युवती के व्हॉट्सएप मैसेज, केवल जाति आरक्षण के बारे में विचार व्यक्त करते हैं और एससी/एसटी सदस्यों के खिलाफ दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा नहीं देते हैं.
Bombay High Court Latest News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक महिला के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम) के तहत मामला बंद करने के फैसले को बरकरार रखा. महिला पर आरोप था कि उसने अपने पूर्व प्रेमी को जातिवादी संदेश भेजे थे, जबकि उसका प्रेम संबंध समाप्त हो गया था.
न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के ने पाया कि दोनों के बीच शेयर किए गए व्हॉट्सएप मैसेज, जिसमें व्हॉट्सएप फॉरवर्ड भी शामिल हैं, केवल जाति आरक्षण के बारे में विचार व्यक्त करते हैं और एससी/एसटी सदस्यों के खिलाफ दुश्मनी या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा नहीं देते हैं.
अदालत ने क्या कहा?
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, “सभी कंटेंट को देखने के बाद पता चलता है कि मैसेज केवल जाति आरक्षण प्रणाली के बारे में व्यक्त भावनाएं हैं. ऐसे संदेशों से कहीं भी यह नहीं पता चलता है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ किसी भी दुश्मनी या घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने का कोई प्रयास किया गया था. अधिक से अधिक, यह कहा जा सकता है कि उसका लक्ष्य केवल शिकायतकर्ता ही था. हालांकि, आरोपी नंबर 1 ने ऐसा कोई शब्द नहीं लिखा जिससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ कोई दुर्भावना, दुश्मनी या घृणा पैदा हो या उसे बढ़ावा मिले,"
क्या है मामला?
यह मामला 29 वर्षीय एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर और 28 वर्षीय युवती के बीच रिलेशनशिप से जुड़ा था. दोनों मध्य प्रदेश (नागपुर के निवासी) से हैं. इस कपल ने परिवार से छिपाकर एक मंदिर में गुपचुप तरीके से शादी कर ली थी. हालांकि, बाद में रिश्ते में खटास आ गई, कथित तौर पर महिला को पता चला कि उसका साथी चंभर समुदाय, अनुसूचित जाति से है. उसके अलग हुए साथी ने बाद में शिकायत दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने उसे अपमानजनक संदेश भेजे और अनुसूचित जातियों के खिलाफ दुश्मनी को बढ़ावा दिया. युवती के पिता को भी उसके कार्यों का कथित रूप से समर्थन करने के लिए मामले में नामित किया गया था.
ट्रायल कोर्ट के बाद हाई कोर्ट में की थी अपील
एक ट्रायल कोर्ट ने 5 अगस्त, 2021 को युवती और उसके पिता को बरी कर दिया था, जिसके बाद शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील की. शिकायतकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि युवती की ओर से अलग होने के दौरान भेजे गए मैसेज ने समुदायों के बीच घृणा और दुश्मनी पैदा करने का प्रयास किया, जबकि बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि मैसेज जाति आरक्षण प्रणाली पर महिला की व्यक्तिगत भावनाओं को दर्शाते हैं और इसमें कोई आपत्तिजनक भाषा नहीं है. बचाव पक्ष ने शिकायत दर्ज करने में काफी देरी की ओर भी इशारा किया, जिससे आरोपों के पीछे छिपे मकसद का पता चलता है.
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