जाकिर नाईक को हाईकोर्ट से लगा झटका, जांच रिपोर्ट सौंपने की मांग हुई खारिज
जाकिर नाईक एनआईए और ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं. आरोप है कि 2016 में बंग्लादेश के ढाका में हुए आतंकी हमले की एक वजह पीस टीवी पर उनका भाषण था. इस हमले में 22 लोगों की जान चली गई थी.
मुम्बई: बंबई हाई कोर्ट ने सांप्रदायिक बातों को फैलाने और अवैध गतिविधियां चलाने के आरोपों का सामना कर रहे विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाईक को राहत देने से आज इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि नाईक ने जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करने में कोई दिलचस्पी या इच्छा नहीं दिखाई है. न्यायमूर्ति आर एम सावंत और न्यायूमूर्ति रेवती मोहिते डेरे की खंडपीठ नाईक की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी कि जिसमे राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उनके खिलाफ की गई जांच की रिपोर्ट सौंपने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था.
नाईक ने यह भी अनुरोध किया था कि विदेश मंत्रालय को निर्देश दिया जाए कि उनके पासपोर्ट के निरस्त का आदेश रद्द हो. अदालत ने अपने आदेश में कहा , ‘‘याचिका में मांगी गयी अन्य राहतों के संदर्भ में हमें यह नजर नहीं आता कि यह अदालत कैसे इन बिन्दुओं पर विचार कर सकती है जबकि याचिकाकर्ता जांच एजेंसियों के सामने पेश ही नहीं हुआ. याचिकाकर्ता मलेशिया में बैठा है और वह जांच एजेंसियों को जांच रिपोर्ट जमा करने का निर्देश देने की मांग कर रहा है. ’’
नाईक के खिलाफ आईपीसी की धारा 153 (ए) (विभिन्न धर्मों के बीच वैमनस्य फैलाना) और अवैध गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धाराएं 10,13 और 18 (जिनका संबंध अवैध संघ से संबंधित होने, गैर कनूनी गतिविधियों को बढ़ावा और आपराधिक साजिश से है) के तहत मामला दर्ज है. अदालत ने कहा कि आदर्श स्थिति तो यह है कि नाईक को भारत आना चाहिए था और जांच एजेंसियों के सामने पेश होना चाहिए. इतनी दूर से बात आगे नहीं बढ़ती है. याचिकाकर्ता की गैरहाजिरी में हम कैसे ऐसी याचिकाओं पर विचार कर सकते हैं.
नाईक एनआईए और ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं. आरोप है कि 2016 में बंग्लादेश के ढाका में हुए आतंकी हमले की एक वजह पीस टीवी पर उनका भाषण था. इस हमले में 22 लोगों की जान चली गई थी. नाईक के गैर सरकारी संगठन इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन को 2016 में ही अवैध घोषित किया जा चुका है और इस मामले में 18 करोड़ रूपए से अधिक की रकम को लेकर प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है.