Book On Pranab Mukherjee: 'गांधी-नेहरू परिवार का होने का घमंड...' शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब में किया खुलासा
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी किताब 'इन प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स' में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के व्यवहार पर कई चौंंकाने वाले तथ्यों का खुलासा किया है.
Sharmistha Mukherjee Book Row: शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पर एक किताब लिखी है. इस पुस्तक में कहा गया है कि 'प्रणब दा' 2013 में राहुल गांधी ने एक अध्यादेश की कॉपी फाड़े जाने की घटना से स्तब्ध रह गए थे. उन्होंने कहा था कि उन्हें (राहुल के) खुद के गांधी-नेहरू परिवार का होने का 'घमंड' है. पुस्तक में दावा किया गया है यह घटनाक्रम 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए ताबूत में आखिरी कील साबित हुआ.
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपनी पुस्तक 'प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमेम्बर्स' में कहा है कि उनके पिता (मुखर्जी) ने उनसे यह भी कहा था कि राजनीति में आने का निर्णय शायद उनका (राहुल गांधी) नहीं था और उनमें राजनीतिक समझ की कमी भी थी.
बता दें कि पूर्व कैबिनेट मंत्री और पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख अजय माकन ने 27 सितंबर, 2013 को एक पत्रकार सम्मेलन आयोजित किया था, जिसमें राहुल गांधी भी पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने प्रस्तावित सरकारी अध्यादेश को पूरी तरह से बकवास बताते हुए कहा था कि इसे फाड़ दिया जाना चाहिए. इसके बाद उन्होंने सभी को आश्चर्यचकित करते हुए अध्यादेश की प्रति फाड़ दी.
'अध्यादेश का उद्देश्य था सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करना'
अध्यादेश का उद्देश्य दोषी सांसदों और विधायकों को तत्काल अयोग्य ठहराने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार करना था. इस अध्यादेश में यह भी प्रस्तावित किया गया था कि वे (सांसद- विधायक) हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं. अदालत में अपील लंबित रहने तक संबधित विधायक या सांसद सदन के सदस्य बने रह सकते हैं.
'अध्यादेश पर सैद्धांतिक तौर पर राहुल से सहमत थे प्रणब मुखर्जी'
मुखर्जी भारत के वित्त मंत्री रहे थे और बाद में विदेश, रक्षा, वित्त और वाणिज्य मंत्री बने. वह भारत के 13वें राष्ट्रपति (2012 से 2017) थे. प्रणब मुखर्जी का 31 अगस्त, 2020 को 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया. शर्मिष्ठा का कहना है कि हालांकि उनके पिता खुद इस अध्यादेश के खिलाफ थे और सैद्धांतिक तौर पर राहुल से सहमत थे.
'राहुल के व्यवहार पर क्रोधित हुए थे प्रणब दा'
उन्होंने पुस्तक में लिखा है, '' राहुल के इस व्यवहार से वह आश्चर्यचकित थे. मैं ही वह व्यक्ति थी जिसने सबसे पहले उन्हें यह खबर दी थी. बहुत दिनों के बाद मैंने अपने पिता को इतना क्रोधित होते देखा. उनका चेहरा लाल हो गया था और उन्होंने कहा था, ''वह (राहुल) खुद को क्या समझते हैं. वह कैबिनेट के सदस्य नहीं हैं. कैबिनेट के फैसले को सार्वजनिक रूप से खारिज करने वाले वह कौन होते हैं.''
'प्रधानमंत्री को इस तरह अपमानित करने का क्या अधिकार'
मुखर्जी ने अपनी बेटी से कहा, ''प्रधानमंत्री विदेश में हैं. क्या उन्हें (राहुल को) अपने व्यवहार के परिणाम और इसका प्रधानमंत्री और सरकार पर पड़ने वाले प्रभाव का एहसास भी है? उन्हें प्रधानमंत्री को इस तरह अपमानित करने का क्या अधिकार है?'' मुखर्जी ने इस घटना के बारे में अपनी डायरी में भी लिखा, ''...यह पूरी तरह से अनावश्यक है. उन्हें खुद के गांधी-नेहरू परिवार के होने का बहुत घमंड है.''
गौरतलब है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सत्ता में आ गई और कांग्रेस लोकसभा में 44 सीट पर सिमट गई थी.
रुपा प्रकाशन की तरफ से प्रकाशित पुस्तक में कहा गया है, ''उन्होंने मुझसे कहा था कि राहुल का यह व्यवहार कांग्रेस के लिए ताबूत में आखिरी कील है. पार्टी के (तत्कालीन) उपाध्यक्ष (राहुल) ने सार्वजनिक तौर पर अपनी ही सरकार के प्रति ऐसी उपेक्षा दिखाई थी तो लोग आपको (पार्टी को) फिर से वोट क्यों देते.'' कांग्रेस की पूर्व प्रवक्ता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने 2021 में राजनीति छोड़ दी थी.
'प्रणब दा को पसंद नहीं था मॉर्निंग वॉक और पूजा के समय व्यवधान'
प्रणब मुखर्जी के हवाले से पुस्तक में कहा गया है, ''उन्होंने (मुखर्जी ने) राहुल को अपनी टीम में नए और पुराने, दोनों नेताओं को शामिल करने की सलाह दी.'' पुस्तक में एक घटना का जिक्र करते हुए कहा गया, ''एक सुबह, मुगल गार्डन (अब अमृत उद्यान) में प्रणब सुबह की सैर कर रहे थे, तभी राहुल उनसे मिलने आए. प्रणब को सुबह की सैर और पूजा के दौरान किसी भी तरह का व्यवधान पसंद नहीं था. फिर भी उन्होंने उनसे मिलने का फैसला किया.''
पुस्तक के अनुसार, ''राहुल शाम को प्रणब से मिलने वाले थे, लेकिन उनके (राहुल के) कार्यालय ने गलती से उन्हें सूचित कर दिया कि बैठक सुबह है.''
शर्मिष्ठा ने बताया, "मैंने जब अपने पिता से पूछा, तो उन्होंने व्यंग्यात्मक टिप्पणी की और कहा कि अगर राहुल का कार्यालय 'ए.एम' और 'पी.एम' के बीच अंतर नहीं कर सकता है तो वह भविष्य में प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को संचालित करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं.'' पुस्तक का लोकार्पण 11 दिसंबर को मुखर्जी की जयंती के मौके पर होगा.