नई दिल्ली: भारत-चीन सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच अगले 10 दिनों के भीतर दो बड़ी बैठक होंगी, जहां दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों का आमना-सामना हो सकता है. रूस की राजधानी मॉस्को में शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की मुलाकात 4 सितंबर को होनी है. वहीं 10 सितंबर को एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक प्रस्तावित है.


भारतीय सेना की बीते तीन दिनों की कड़ी कार्रवाई ने मॉस्को में होने वाली संभावित मुलाकातों की पेशबंदी बदल दी है. लेकीन दर्रे के करीब ऊंचाई की मोर्चाबंदी हासिल कर भारत अब मजबूत स्थिति के साथ बातचीत की मेज़ पर होगा.


शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों की अहम बैठक के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार को रूस रवाना होने वाले हैं. इस बैठक के लिए चीन के रक्षा मंत्री को भी मॉस्को पहुंचना है. भारत-चीन सीमा पर बीते 4 महीनों से चल रहे सैन्य तनाव के बीच यह पहला मौका होगा, जब किसी बहुपक्षीय बैठक के मंच पर दोनों देशों के रक्षा मंत्री रूबरू होंगे. हालांकि, अभी तक दोनों रक्षा मंत्रियों की कोई द्विपक्षीय मुलाकात तय नहीं है.


रूस रवानगी से पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 1 सितंबर की दोपहर चीन सीमा के मौजूदा हालात पर उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक ली. रक्षा मंत्रालय के सिचुएशन रूम में हुई इस बैठक में विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर, एनएसए अजीत डोवाल, सीडीएस जनरल बिपिन रावत, सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे और डीजीएमओ समेत सेना के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे. सूत्रों के मुताबिक, बैठक में सिर्फ लद्दाख ही नहीं बल्कि पूरी 4388 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा के ताजा हालात कई समीक्षा की गई. साथ ही LAC के करीब चीन सेना के जमावड़े और उससे बनी स्थितियों पर भी चर्चा हुईं.


समीक्षा बैठक में मौजूद विदेश मंत्री एस जयशंकर की भी मॉस्को यात्रा प्रस्तावित है. रूस की मेज़बानी में एससीओ और ब्रिक्स विदेश मंत्रियों की भी बैठक होनी है. 10 सितंबर को होने वाली इस बैठक के लिए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को भी निमंत्रण भेजा गया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बीते सप्ताह इसकी पुष्टि की थी. हालांकि, अभी विदेश मंत्री की रूस यात्रा की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है.


शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के लिए अगर विदेश मंत्री एस जयशंकर जाते हैं तो मॉस्को में उनकी मुलाकात चीनी विदेश मंत्री वांग यी से हो सकती है. एससीओ, ब्रिक्स और आरएसी बैठकों के दौरान दोनों देशों के विदेशमंत्री प्रायः द्विपक्षीय मुलाकातों के लिए भी मिलते रहे हैं. अलबत्ता 2014 में चुमार में दोनों देशों के बीच 21 दिनों तक चली सैनिक गतिरोध और आमने-सामने की स्थिति न्यूयॉर्क में तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और वांग यी के बीच हुई मुलाकात के बाद ही सुलझी थी.


हालांकि, मौजूदा संकट में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच 15 जून को गलवान घाटी की घटना के बाद 17 जून को फोन पर बातचीत हई थी. इस बातचीत में और फिर 5 जुलाई को हुई विशेष प्रतिनिधि स्तर बातचीत के बाद लगा था कि समाधान का रास्ता निकलेगा और चीन अपने वादों पर अमल करेगा. लेकिन एक दर्जन सैन्य बैठकों और करीब आधा दर्जन से ज़्यादा कूटनीतिक वार्ताओं के बावजूद चीन ने न तो अपनी सेना को पूरी तरह पीछे हटाया और न ही बीते कुछ महीनों के दौरान बढ़ाई मोर्चाबंदी को कम किया.


ऐसे में भारत ने चीन को उसी की भाषा में सबक समझाने का फैसला किया. इसी कड़ी में जब चीन के सैनिक पेंगोंग झील के दक्षिणी इलाके में नई मोर्चाबंदी बनाने की मंशा से आगे बढ़ें तो अबकी बार भारतीय सेना ने उन्हें चौंकाने वाला झटका दिया. भारत के स्पेशल फ्रंटियर फोर्स कमांडो दस्तों ने न केवल चीन के मंसूबों को नाकाम कर दिया. इतना ही नहीं, ब्लैक टॉप के करीब ऊंचाई के दो मोर्चों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली.