मेरे अंबेडकर वर्सेस तुम्हारे अंबेडकर...इनके अंबेडकर...उनके अंबेडकर...भाजपा के अंबेडकर...कांग्रेस के अंबेडकर...सपा के अंबेडकर...बसपा के अंबेडकर...आप के अंबेडकर...क्या अंबेडकर इतने खांचों में बंटे हैं या फिर इस देश का हर नागरिक जो संविधान को मानता है, अंबेडकर उन सबके हैं...जाहिर है कि अंबेडकर सबके हैं... लेकिन आज बात नेताओं के अंबेडकर की नहीं बल्कि आज बात अंबेडकर के उस रंग की, जिसे अपनाना तो हर कोई चाहता है लेकिन उसकी अपनी शर्तें होती हैं. आज बात अंबेडकर के उस नीले रंग की, जो दलितों-वंचितों-शोषितों की आवाज बन गया. आखिर क्या है कहानी उस नीले रंग की, जो बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव अंबेकर का पर्यायवाची बना हुआ है, आज बात करेंगे विस्तार से. 

पिछले दिनों संसद में अंबेडकर के नाम पर जो हुआ सबने देखा. इसकी शुरुआत हुई गृहमंत्री अमित शाह के एक बयान से, जिसके विरोध में राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक नीले रंग के कपड़े पहने प्रदर्शन करते नजर आए. इससे पहले खुद को अंबेडकर की अनुयायी बताने वाले कांशीराम ने भी जब पहले बामसेफ और फिर बसपा बनाई तो उसके झंडे का रंग नीला ही रखा. नगीना के सांसद चंद्रशेखर भी नीले रंग के गमछे में ही अक्सर नजर आते हैं. बाकी बाबा साहेब को मानने वाले लोग भी जब उनकी याद में कोई आयोजन करते हैं तो वहां नीला रंग विजिबल होता है. और तो और बाबा साहेब की जितनी भी मूर्तियां लगी हैं, जितनी प्रतिमाएं हैं, जितनी भी तस्वीरें हैं तकरीबन सबके कपड़ों का रंग नीला ही होता है. सवाल है कि क्यों, चलिए जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं.

दरअसल बाबा साहेब अंबेडकर के साथ नीले रंग के जुड़ने की कहानी शुरू होती है 1936 से, जब अंबेडकर ने एक पार्टी बनाई. उसका नाम रखा गया इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी. इस पार्टी का झंडा नीले रंग का था. तब अंबेडकर ने झंडे का रंग नीला करने के पीछे तर्क दिया था कि नीला रंग आसमान का प्रतीक है, जिसके लिए हर इंसान बराबर है. चाहे वो अमीर हो चाहे गरीब, चाहे वो सवर्ण हो चाहे दलित, आसमान किसी के साथ भेदभाव नहीं करता. ऐसे में दलितों के उत्थान के लिए, उन्हें उनका हक दिलाने के लिए और उनकी आवाज उठाने के लिए नीले रंग से बेहतर कोई रंग हो नहीं सकता. इस तरह से नीला रंग अंबेडकर की पार्टी का प्रतीक बन गया. खुद अंबेडकर भी नीले रंग का सूट पहनने लगे. फिर 1942 में जब अंबेडकर ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया पार्टी बनाई तो उसके भी झंडे का रंग नीला ही था और इसके बीच में अशोक चक्र था. आजादी के बाद 1956 में यही  शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया एक नई पार्टी के रूप में अवतरित हुआ, जिसका नाम रखा गया रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया. इस पार्टी के झंडे का भी रंग नीला ही था.

इसी वजह से आप चाहे गुजरात के उना में हुए दलितों का आंदोलन देखिए या फिर एससी-एसटी एक्ट पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भड़के विरोध को देखिए, हर आंदोलन में एक चीज कॉमन मिलेगी. वही नीला रंग. अभी पांच-छह साल पहले उत्तर प्रदेश के बदायूं के एक गांव में बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्ति लगाई गई तो उसके कपड़ों का रंग भगवा था, लेकिन तुरंत ही ऐसा विरोध हुआ कि कपड़े को बदलकर नीला ही करना पड़ा. अब भी जब गृहमंत्री अमित शाह के अंबेडकर पर दिए बयान का कांग्रेस को विरोध करना था तो राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक ने नीले रंग के कपड़े पहनकर ही संसद में विरोध प्रदर्शन किया. अब मायावती के भतीजे आकाश आनंद को भी बीजेपी से लेकर आप और कांग्रेस तक का विरोध करना है, तो उन्हें भी बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों के लिए नीली क्रांति जैसे शब्द का ही इस्तेमाल किया है.


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