सूरत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 घंटे के अंदर गुजरात और पड़ोस के केंद्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली में कुल मिलाकर चार बड़ी सभाएं की हैं. पहली नजर में ये लग सकता है कि मोदी महज कुछ सरकारी योजनाओं को लांच करने या फिर कुछ बड़ी इमारतों के उदघाटन या फिर लोकार्पण के लिए आए थे और इसलिए उन्होंने ये सभी सभाएं की लेकिन मामला इतना आसान नहीं है.


मोदी ने चौबीस घंटे के अंदर कई बड़े राजनीतिक समीकरणों को साधा. ये तमाम राजनीतिक समीकरण 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर हैं. इन समीकरणों को साधने की शुरुआत सूरत एयरपोर्ट पर कल शाम मोदी के कदम रखते ही हो गई थी. सूरत एयरपोर्ट से सर्किट हाउस के करीब ग्यारह किलोमीटर लंबे मार्ग पर मोदी जब रोड शो की शक्ल में लोगों के सामने आए, तो मोदी की निगाह सूरत के लोगों से अपने रिश्ते को प्रगाढ़ करने की थी. रिश्ते प्रगाढ़ करने के लिए रोड शो असरदार जरिया है, इसका मोदी को भली-भांति अंदाजा है. पिछले कई वर्षों में इसे सफलतापूर्वक वो साध भी चुके हैं.


सूरत में कल शाम के रोड शो के दौरान पीएम मोदी लाखों लोगों से रूबरू हुए. इस दौरान उनकी सरकार की योजनाओं का प्रचार भी होता रहा और मोदी लोगों की नब्ज भी मापते रहे. सूरत शहर के लोगों के चेहरों के भाव से मोदी को भली-भांति इस बात का अंदाजा लग गया था कि अब भी यहां के लोग उसी शिद्दत के साथ उनके पीछे खड़े हैं, जैसा पिछले चुनावों में रहा है.


जहां तक पिछले चुनावों की बात है, 2012 के विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ तौर पर बताते हैं कि सूरत और यहां के लोगों ने मोदी का किस कदर साथ दिया. उस समय मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और 2012 विधानसभा चुनावों की सफलता उन्हें प्रधानमंत्री के दावेदार के तौर पर आगे ले जा सकती थी, इसका अंदाजा न सिर्फ उन्हें और उनक समर्थकों को था, बल्कि सियासी विरोधियों को भी था. ऐसे में 2012 के विधानसभा चुनावों में मोदी को जो बड़ी कामयाबी मिली, उसमें सूरत और यहां के लोगों का बड़ा हाथ रहा.


सूरत जिले में विधानसभा की जो कुल सोलह सीटें हैं, उसमें से पंद्रह पर बीजेपी 2012 में कब्जा करने में कामयाब रही थी. इन पंद्रह सीटों में से ज्यादातर शहरी सीटें है. इस तरह का बीजेपी का जोरदार प्रदर्शन इस बात का सबूत था कि सूरत के लोगों ने किस कदर मोदी और बीजेपी का साथ दिया था. खास बात ये है कि सूरत गुजरात का सिर्फ दूसरा बड़ा शहर ही नहीं है, बल्कि वो शहर है, जहां सबसे ज्यादा आप्रवासी वोटर हैं यानी वो वोटर जो मूल गुजराती न होकर ओडीशा और बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक के हैं. इन्हीं मतदाताओं ने न सिर्फ गुजरात में मोदी का साथ दिया, बल्कि अपने गांवों में जाकर वहां भी मोदी के लिए 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान हवा बनाने का काम किया था. मोदी का कल का सफल रोड शो इस बात का साफ सबूत है कि अब भी शहरी मतदाताओं पर उनका कितना प्रभाव है.


मोदी की इस बार की यात्रा बतौर प्रधानमंत्री गुजरात की उनकी बारहवीं यात्रा है. ऐसे में इस दफा मोदी ने कुछ और समीकरण भी साधे. मसलन जिन पाटीदारों की नाराजगी 2017 चुनावों की जीत की राह में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी बाधा मानी जाती रही है, उसी पाटीदार समुदाय के दो कार्यक्रमों में मोदी आज के दिन शरीक हुए. आज के दिन की शुरुआत मोदी ने किरण हॉस्पिटल के उदघाटन के साथ की, जिस हॉस्पिटल के निर्माण के लिए भूमि पूजन का काम बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने 2013 में किया था और उस वक्त वो बीजेपी के पीएम कैंडिडेट भी बन चुके थे. उस समय ये बात भी आयोजकों ने कही थी कि मोदी को बतौर प्रधानमंत्री इसके उदघाटन के लिए आना होगा.


मोदी ने अपना वादा तो निभाया ही, साथ में पाटीदार समुदाय की भावनाओं को सहला भी दिया. किरण हॉस्पिटल का निर्माण पाटीदार समुदाय से जुड़े कारोबारियों के दान से हुआ और दान भी कोई छोटा-मोटा नहीं, पांच सौ करोड़ रुपये से भी अधिक का. जाहिर है, जो पाटीदार समुदाय के लोग हाल तक बीजेपी से आरक्षण के मुद्दे को लेकर खफा नजर आ रहे थे, उन्हीं के सबसे प्रभावशाली हिस्से ने मोदी को अपना मेहमान बनाया.


बात इतने पर भी खत्म नहीं हुई, बल्कि मोदी पाटीदार समुदाय से जुड़े एक बड़े हीरा कारोबारी सवजी धोलकिया की कंपनी हरेकृष्ण डायमंड्स के नये मैन्युफैक्चरिंग प्लांट का उदघाटन भी करने गये. एक दिन में पाटीदार समुदाय के दो कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर मोदी ने साफ तौर पर संकेत दे दिया कि वो पाटीदारों को अब भी अपने करीब समझते हैं और पाटीदारों को भी न तो उनसे और न ही उनकी पार्टी बीजेपी से ऐसी कोई चिढ़ है, जैसा संकेत थोड़े समय पहले मिल रहा था.


पाटीदार समुदाय को सकारात्मक संदेश देने के बाद मोदी ने आज के दिन आदिवासियों को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की. मोदी के तापी और सिलवास के कार्यक्रम इसी दिशा में थे. तापी जिले के मुख्यालय व्यारा के नजदीक बाजीपुरा गांव में सुमूल डेरी के कैटलफीड प्लांट का उदघाटन करने के बाद मोदी बगल में मोजूद दादरा नगर हवेली के मुख्यालय सिलवास भी गये और वहां करीब आधी दर्जन सरकारी योजनाओं का लोकार्पण किया, जो मोटे तौर पर गरीब आदिवासियों के कल्याण से जुड़ी हुई हैं.


तापी और केंद्रशासित प्रदेश दादरा नगर हवेली, ये दोनों ही आदिवासी बहुल इलाके हैं, जो एक समय कांग्रेस का गढ़ हुआ करते थे. तापी जिले में जब 2012 में चुनाव हुए थे, तो जिले की एक सीट निझर बीजेपी के पास गई थी, तो व्यारा की सीट कांग्रेस के खाते में. व्यारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय अमरसिंह चौधरी का इलाका रहा है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मोदी की अगुआई में बीजेपी ने इस आदिवासी इलाके में अपनी पकड़ को बढ़ाया है.



दादरा नगर हवेली में जनसभा को संबोधित करते पीएम नरेंद्र मोदी

यही हाल दादरा नगर हवेली का भी है. एक समय मोहन डेलकर का दादरा नगर हवेली की राजनीति पर पूरी तरह नियंत्रण था, जहां से वो छह बार सांसद रहे थे. लेकिन ये लोकसभा सीट भी 2009 में बीजेपी के कब्जे में आ गई और 2014 की मोदी लहर में बीजेपी इसे स्वाभाविक तौर पर अपने पास बनाये रखने में कामयाब रही. अभी दादरा, नगर हवेली और दमण-दीव के प्रशासक की भूमिका में प्रफुल्ल पटेल हैं, जो मोदी की अगुआई वाली गुजरात की तत्कालीन बीजेपी सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं. प्रफुल्ल पटेल की तरफ से सिलवास में मोदी की सभा का आयोजन हुआ. सिलवास गुजरात के आदिवासी बहुल इलाकों वलसाड और डांग से सटा हुआ है, इसलिए मोदी की सभा का असर स्वाभाविक तौर पर इन इलाकों पर पड़ना है.


मोदी के इस दौरे का आखिरी पड़ाव बोटाद रहा. बोटाद यानी सौराष्ट्र का अहम हिस्सा. यहां मोदी सौनी सिंचाई परियोजना के एक चरण का उदघाटन तो दूसरे चरण का शिलान्यास करने आए थे. लेकिन बात बस इतनी भर नहीं थी. बोटाद का ये इलाका कोली समुदाय के प्रभुत्व वाला इलाका है. यही नहीं जब हार्दिक पटेल की अगुआई में पाटीदारों का आरक्षण को लेकर आंदोलन चल रहा था, उस समय भी सबसे अधिक असर इस इलाके में था. कोली समुदाय के बीच ओबीसी युवा नेता अल्पेश ठाकोर अपनी जड़ जमाने में लगे हुए हैं. ऐसे में बोटाद की इस यात्रा और सभा के जरिये मोदी ने न सिर्फ एक तरफ अल्पेश के प्रभाव को कम करने की कोशिश की है, तो दूसरी तरफ हार्दिक के प्रभाव को भी. मोदी की कामयाबी का सबसे बड़ा सबूत ये है कि चौबीस घंटे के इस दौरे में किसी ने एक बार न तो हार्दिक पटेल की नोटिस ली और न ही अल्पेश ठाकोर की, जिनके बारे में ये कहा जा रहा था कि 2017 के विधानसभा चुनावों के ये सबसे बड़े गेम चेंजर होंगे.


जाहिर है, मोदी गुजरात में बीजेपी के सबसे बड़े कैंपेनर हैं पिछले दो दशक से और यही भूमिका उनकी इस बार भी रहने वाली है. और इस भूमिका में मोदी चुनाव तारीखों की घोषणा का इंतजार नहीं कर रहे, बल्कि उससे पहले ही ग्राउंड कवर करने में लग गये हैं, जिसका सबसे बड़ा सबूत है पिछले चार महीनो में ही मोदी की गुजरात की तीन यात्रा. और आखिर करें भी क्यों न? 1995 से ही लगातार गुजरात में विधानसभा चुनाव जीत रही है उनकी पार्टी बीजेपी और गृह प्रदेश होने के नाते गुजरात को अपने कब्जे में रखना मोदी के अपने सियासी वर्चस्व के लिए जरूरी है. घर में मजूबत रहकर ही आप बाहर भी मजबूत हो सकते हैं, मोदी से ज्यादा भला इसका अहसास किसे होगा.