बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर दर्ज यौन-उत्पीड़न का केस आपराधिक से ज्यादा सियासी होता जा रहा है. इसकी 2 वजहें भी है. पहला, पॉक्सो एक्ट के आरोपी सिंह की गिरफ्तारी न होना और दूसरा पहलवानों के समर्थन में लगातार हो रहे महापंचायत.


पहलवानों का आरोप है कि पूरी सरकार मिलकर बृजभूषण शरण सिंह को बचा रही है. पहलवानों के समर्थन में जाट बिरादरी के लोग भी एकजुट है. इधर, सिंह अपने ऊपर लगे आरोपों को साजिश बताते हुए लगातार शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं.


क्रिमिनल केस के जाट वर्सेज राजपूत में तब्दीली ने बीजेपी हाईकमान की भी टेंशन बढ़ा दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार इस मुद्दे को जल्द से जल्द खत्म करने में जुटी है. हालांकि, पहलवान बृजभूषण की गिरफ्तारी पर अड़े हुए हैं. 


पहलवान वर्सेज बृजभूषण केस में जाति फैक्टर हावी होने के बाद बीजेपी के लिए आगे कुआं पीछे खाई जैसी स्थिति हो गई है. आइए इसे आंकड़ों के जरिए विस्तार से समझते हैं...




बृजभूषण केस में अब तक क्या-क्या हुआ?
जनवरी 2023 में कुछ महिला पहलवानों ने खेल मंत्रालय से कुश्ती संघ के तत्कालीन अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन-उत्पीड़न की शिकायत की. खेल मंत्रालय ने मामले की जांच के लिए एक इंटर्नल कमेटी का गठन किया.


मार्च 2023 में इस कमेटी ने जांच पूरी कर ली. इसी बीच महिला पहलवानों ने कमेटी पर पक्षपात का आरोप लगाया. पहलवानों ने खेल मंत्रालय पर सिंह को बचाने का आरोप लगाया और 21 अप्रैल को दिल्ली पुलिस को शिकायत दी.


28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के बाद दिल्ली पुलिस ने बृजभूषण के खिलाफ पॉक्सो समेत आईपीसी की धारा 345, धारा 345(ए), धारा 354 (डी) और धारा 34 के तहत केस दर्ज किया.


पॉक्सो एक्ट में केस दर्ज होने के बावजूद बृजभूषण पर कार्रवाई न होने को लेकर पहलवानों ने जंतर-मंतर पर धरना देना शुरू कर दिया. मई के अंतिम हफ्ते में यह लड़ाई महापंचायत के पास तब आ गई, जब पहलवान हरिद्वार में मेडल बहाने पहुंचे थे.


गृहमंत्री के साथ मीटिंग के बाद पहलवानों ने 15 जून तक कार्रवाई का अल्टीमेटम सरकार को दिया है. सरकार की ओर से कहा गया है कि 15 जून को चार्जशीट दाखिल की जाएगी. इसके बाद ही कार्रवाई को लेकर तस्वीर साफ हो पाएगी.


जाट Vs राजपूत की लड़ाई में बीजेपी को नुकसान या फायदा?
बृजभूषण का केस अगर जातीय समीकरण में उलझा तो इसका बीजेपी को नुकसान होगा या फायदा? यही गुणा-गणित सियासी गलियारों में इस वक्त चल रही है. बीजेपी हाईकमान भी नफा-नुकसान का आकलन कर रही है. 


मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बीजेपी में जाट बिरादरी के कई नेता हाईकमान को खतरे की चेतावनी दे चुके हैं. आने वाले कुछ महीनों में जाट बहुल राजस्थान में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. इसके बाद लोकसभा के भी चुनाव होने हैं.


बृजभूषण के जरिए जाट और राजपूत समुदाय के सियासी ताकत को जानते हैं...


40 सीट पर पकड़, आरएलडी-सपा को सिखा चुकी है सबक
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जाट दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण फैक्टर बनकर उभरे. राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब की करीब 40 लोकसभा सीटों का समीकरण जाट वोटर तय करते हैं.


समाजिक तौर पर जाटों को इन इलाकों में सर छोटुराम ने एकजुट करने का काम किया. चौधरी चरण सिंह और देवीलाल ने जाटों का राजनीतिक रसूख बढ़ाने का काम किया. वक्त के साथ-साथ जाट भी राजनीति में अपना ठिकाना बदलते रहे. 


यूपी में 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाटों का एकजुट वोट बीजेपी को मिलने लगा. दंगे की वजह से सपा और आरएलडी जैसी पार्टियां 2014 और 2019 के चुनाव में जाटलैंड में जीरों पर सिमट गई. 



राजस्थान और हरियाणा में भी बीजेपी को जबर्दस्त फायदा मिला और इन राज्यों में भी जाट वोट बीजेपी को मिले. 2019 के चुनाव में जाट बहुल 40 में से 32 सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की. 4 पर कांग्रेस और 4 सीटें अन्य पार्टियों के खाते में गई. 


जाट समुदाय को साधने के लिए बीजेपी ने जमकर भागीजारी दी हाल ही में राजस्थान के जाट नेता जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाया. संजीव बालियान केंद्र में मंत्री हैं और पूर्व में जाट नेता सत्यपाल मलिक को राज्यपाल बनाया था. 


राजपूत वोटर्स भी कम प्रभावी नहीं, खिलाफ गए तो खेल बिगड़ेगा
बीजेपी को एक तरफ जहां जाट वोट छिटकने का डर सता रहा है. वहीं दूसरी ओर राजपूत वोट भी बचाने की चिंता है. राजपूत समुदाय के कई संगठनों ने बृजभूषण का समर्थन किया है और साथ देने की बात कही है.


राजपूत समुदाय का कहना है कि कानून के खिलाफ अगर कार्रवाई की गई तो गलत होगा. राजपूत समुदाय का भी बिहार, यूपी, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश में बहुत ही अधिक दबदबा है. इसके अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी राजपूत गेमचेंजर की भूमिका निभाते हैं. 




राजस्थान, बिहार, यूपी और हिमाचल की करीब 20 सीटों पर राजपूत वोटर्स ही जीत-हार तय करते हैं. आजादी के वक्त से ही राजपूत सत्ता के केंद्र में रहे हैं. वर्तमान में राजनाथ सिंह, गजेंद्र शेखावत, नरेंद्र सिंह तोमर और अनुराग ठाकुर राजपूत कोटे से मंत्री हैं.


2019 में राजपूत बहुल 20 में से 14 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी, जबकि 6 सीटें अन्य पार्टियों के खाते में गई. बीजेपी को डर है कि अगर राजपूत समीकरण गड़बड़ाया तो बिहार, यूपी और हिमाचल में मुश्किलें बढ़ सकती है.


राजस्थान में पहला लिटमस टेस्ट
जाट और राजपूत की सियासी लड़ाई ठनी तो इसका पहला लिटमस टेस्ट राजस्थान के विधानसभा चुनाव में होगा, जहां जाट और राजपूत दोनों शक्तिशाली हैं. गहलोत की सत्ता पलटने के लिए राजस्थान में जाट और राजपूत दोनों को बीजेपी साध रही है. 


राजस्थान में जाट समुदाय की आबादी करीब 17 प्रतिशत है, जो अन्य समुदायों की तुलना में सबसे अधिक है. शेखावटी इलाका जाट बहुल माना जाता है. राज्य के 14 जिले में जाट वोटर्स असरदार हैं. 


इनमें हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, चुरू, झुंझनूं, नागौर, जयपुर, चित्तौड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर, जोधपुर और भरतपुर का नाम शामिल हैं. 


राज्य में 50-60 सीटें जाट बहुल है और 2018 में इस समुदाय के 38 विधायक जीतकर विधानसभा में पहुंचे. 2018 में कांग्रेस सिंबल पर 18 और बीजेपी सिंबल पर 12 जाट उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की. 


राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी के मुताबिक अगर ये पहलवानों का मुद्दा चुनाव तक गर्म रहता है तो इसका असर जाट वोटरों पर पड़ेगा. बीजेपी के जाट वोटर इन इलाकों में दूसरे पक्ष में वोट डाल सकते हैं. 


जाट की तरह ही राजपूतों का भी राजस्थान की पॉलिटिक्स में काफी दबदबा है. राज्य में राजपूत आबादी 6 फीसदी के आसपास है, जो 13 जिलों में फैला हुआ है. पूर्वी राजस्थान में गुर्जर के साथ मिलकर राजपूत खेल खराब करने में महत्ती भूमिका निभाते हैं.




सीटों की बात करे तो राजस्थान में विधानसभा की 40 सीटें राजपूत बहुल है. पिछले चुनाव में राज्य में 23 उम्मीदवार इस समुदाय से जीतकर विधानसभा पहुंचे. इनमें 10 कांग्रेस और 7 बीजेपी के सिंबल पर जीत दर्ज की.


बृजभूषण भी सियासी तौर पर काफी मजबूत
बृजभूषण सिंह यूपी के कैसरगंज लोकसभा सीट से सांसद हैं. दबंग छवि के बृजभूषण 2019 में लगातार 5वीं बार लोकसभा के लिए चुने गए.  सिंह 1991 में लोकसभा का पहला चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. 


इसके बाद 1999, 2004, 2009, 2014 और 2019 के चुनाव में उन्होंने लगातार जीत दर्ज की. 1996 के चुनाव में बृज भूषण की पत्नी केतकी सिंह ने जीत दर्ज की थी. टाडा के तहत केस दर्ज होने के बाद बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था.


दबदबे की बात की जाए तो अवध की सियासत में सिंह काफी प्रभावशाली हैं और इसी वजह से यूपी की 5 लोकसभा सीटों पर उनकी सीधी पकड़ है. ये सीटें गोंडा, बहराइच, डुमरियागंज, कैसरगंज और श्रावस्ती है. सिंह गोंडा, कैसरगंज और बलरामपुर (अब श्रावस्ती) से सांसद रह चुके हैं.




बीजेपी के टिकट पर 5 चुनाव जीतने वाले सिंह 2009 में पार्टी छोड़ सपा के टिकट से भी कैसरगंज सीट पर जीत हासिल कर चुके हैं. यानी दल-बदल का भी असर उनकी जीत पर नहीं हुआ. 2019 में बृजभूषण की पकड़ वाली 5 में से 4 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.


यौन-उत्पीड़न का केस दर्ज होने के बाद बृजभूषण सिंह प्रियंका गांधी को भी चुनाव लड़ने की चुनौती दे चुके हैं. सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा कि प्रियंका जिस भी सीट से चाहे मेरे खिलाफ लड़ लें.