Brinda Karat on RSS chief Mohan Bhagwat's statement: RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हाल में ही कहा था कि अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद से कुछ लोगों को यह लगने होने लगा है कि वे इस तरह के मुद्दों को उठाकर “हिंदुओं के नेता” बन सकते हैं. उन्होंने कहा था कि इस तरह के मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए थे. 


उनके इस बयान के बाद आरएसएस से जुड़ी पत्रिका 'ऑर्गेनाइजर' ने अपने लेख में लिखा था कि विवादित स्थलों का वास्तविक इतिहास जानना जरूरी है. इसके बाद से देश में राजनीतिक पारा बढ़ा हुआ है. इसी बीच सीपीआई(एम) नेता वृंदा करात ने इस मुद्दे पर बड़ा बयान दिया है. 


वृंदा करात ने साधा निशाना 


संभल के मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान और आरएसएस से जुड़ी मैगजीन की कवर स्टोरी पर सीपीआई (एम) नेता वृंदा करात ने कहा, "यह वास्तव में आरएसएस के दोमुंहेपन की सच्चाई को उजागर कर रहा है. यह वास्तव में सिर्फ पाखंड की ओर इशारा करता है. आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत अपनी चिंताओं के बारे में कह रहे हैं कि ऐसे मुद्दे नहीं उठाए जाने चाहिए और आरएसएस का आधिकारिक मुखपत्र इसके विपरीत कह रहा है, जो पूरी तरह से भारत की सर्वोच्च अदालत के खिलाफ है. आरएसएस हमेशा संविधान और भारत के लोगों की एकता के खिलाफ रहा है."


RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कही थी ये बात


पुणे में सहजीवन व्याख्यानमाला में 'भारत-विश्वगुरु' विषय पर बोलते हुए RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था किहर दिन एक नया मामला (विवाद) उठाया जा रहा है. इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है? यह जारी नहीं रह सकता. भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम साथ रह सकते हैं."


वहीं, RSS से जुड़ी पत्रिका द ऑर्गनाइजर ने अपने लेख में लिखा था कि विवादित स्थलों और पुराने स्ट्रक्चर का सही इतिहास जानना जरूरी है. ये सभ्यतागत न्याय के लिए जरूरी है. बाबा साहेब अंबेडकर ने जाति आधारित भेदभाव की असल वजह को पहले जाना था. इसके बाद उन्होंने खत्म खत्म करने के लिए संवैधानिक उपाय रखे थे. धार्मिक झगड़ों को समाप्त करने के लिए हमें इसी तरह के दृष्टिकोण की जरूरत है.