जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल: ब्रिटिश हाई कमिश्नर ने कहा- यह इतिहास का एक शर्मनाक कृत्य
भारत में ब्रिटेन के हाई कमिश्नर डोमिनिक एस्क्विथ ने जलियांवाला बाग नरसंहार पर कहा कि ब्रिटेन इस घटना पर गहरा खेद व्यक्त करता है. उन्होंने कहा कि यह घटना इतिहास का एक शर्मनाक कृत्य है.
अमृतसर: भारत में ब्रिटेन के हाई कमिश्नर डोमिनिक एस्क्विथ ने जलियांवाला बाग नरसंहार की 100वीं बरसी पर जलियांवाला बाग स्मारक पर पुष्प चक्र अर्पित किया. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ब्रिटेन इस घटना पर गहरा खेद व्यक्त करता है. एस्क्विथ आज सुबह जलियांवाला बाग पहुंचे और 13 अप्रैल 1919 को हुई इस घटना में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि दी. ब्रिटेन के हाई कमिश्नर ने यहां गेस्ट बुक में लिखा, ‘‘100 साल पहले हुई जलियांवाला बाग की घटना ब्रिटिश-भारतीय इतिहास में एक शर्मनाक कृत्य है. जो भी हुआ और उसकी वजह से जो पीड़ा पहुंची, उसके लिए हम गहरा खेद व्यक्त करते हैं.’’ एस्क्विथ ने कहा, ‘‘मैं आज प्रसन्न हूं कि ब्रिटेन और भारत 21वीं सदी की भागीदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’’ उन्होंने कहा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने बुधवार को जलियांवाला बाग नरसंहार को ब्रिटिश-भारतीय इतिहास पर एक ‘शर्मनाक धब्बा’ करार दिया है. हालांकि, ब्रिटिश पीएम ने इस नरसंहार के लिए औपचारिक तौर पर मांफी नहीं मांगी है.
ब्रिटिश सरकार ने इस नरसंहार पर अब तक माफी क्यों नहीं मांगी है के सवाल पर ब्रिटेन के उच्चायुक्त ने कहा, ‘‘वास्तव में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, लेकिन मैं आपसे केवल इतना कहूंगा कि मैं यहां जो करने आया, उसका सम्मान करें.’’ उन्होंने कहा, "यह 100 साल पहले मारे गए लोगों को याद करने का समय है और वह ब्रिटिश सरकार की तरफ से यहां दुख व्यक्त करने के लिए आए हैं.’’
डोमिनिक एस्क्विथ ने कहा कि पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पूर्व में अपनी भारत यात्रा के दौरान जलियांवाला बाग त्रासदी को अत्यंत शर्मनाक घटना करार दिया था. उन्होंने कहा कि महारानी (एलिजाबेथ द्वितीय) ने भी घटना को भारत के साथ ब्रिटेन के बीते इतिहास का एक बेहद दुखी करने वाला अध्याय बताया था. ब्रिटिश राजनयिक ने कहा कि 1908 से 1916 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे उनके परदादा एच एच एस्क्विथ ने जलियांवाला बाग त्रासदी को वीभत्स अत्याचारों में से एक करार दिया था.
अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में यह नरसंहार 13 अप्रैल 1919 को हुआ था. ब्रिटिश-भारतीय सेना के कर्नल रेजीनल्ड डायर के नेतृत्व वाली टुकड़ी ने आजाद भारत के समर्थन में सभा कर रहे लोगों को चारों ओर से घेरकर अंधाधुंध गोलीबारी की थी. रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में सैकड़ों लोग मारे गए. अनेक लोगों ने गोलियों से बचने के लिए बाग स्थित कुएं में छलांग लगा दी, लेकिन कुएं में कूदने से भी उनकी मौत हो गई. बाग में 100 साल बाद भी गोलियों के निशान मौजूद हैं जो भारतीयों पर ब्रिटिश शासन के अत्याचार की कहानी बयां करते हैं.
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