नई दिल्ली: ब्रिटेन ने धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह फैसला यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि एक व्यक्ति जो प्यार करता है, वह यह निर्धारित नहीं कर सकता कि समाज को उनके साथ कैसे पेश आना चाहिए.
ब्रिटिश उच्चायोग ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का जश्न मनाने के लिए एक समारोह का आयोजन किया था. इस समारोह में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 का वह हिस्सा पढ़ा गया, जिसके बारे में अदालत ने फैसले में कहा था कि सहमति से दो वयस्क पुरुषों के बीच यौन क्रिया आपराधिक कृत्य नहीं है.
समलैंगिक, बाई सेक्सुअल और ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय के 100 से अधिक सदस्य, मानवाधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता अदालत के इस फैसले की सराहना करने के लिए एक साथ आए, और अपने मूल अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए अपनी लड़ाई का जश्न मनाया.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया किया दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंध को अब अपराध नहीं माना जाएगा. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 के एक हिस्से को रद्द कर दिया. फैसला देते वक्त कोर्ट ने कहा, 'समलैंगिक लोगों के साथ समाज का बर्ताव भेदभाव भरा रहा है. कानून ने भी उनके साथ अन्याय किया है. इस अन्याय को दूर करना होगा. हम आईपीसीकी धारा 377 को कुछ हिस्सों को रद्द कर रहे हैं. उम्मीद है समाज भी अपना रवैया बदलेगा.'
किस बात पर आया फैसला
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया था कि निजता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन समलैंगिक लोगों को ये अधिकार हासिल नहीं है. वो अपनी प्राकृतिक ज़रूरत को पूरा करने में डरते हैं. इसकी वजह है आईपीसी की धारा 377, जिसमें समलैंगिक संबंध बनाने के लिए 10 साल की कैद का प्रावधान है.
क्या है धारा 377
आईपीसी की धारा 377 अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध मानती है. इस धारा में पशुओं के साथ संभोग करने और समलैंगिक संबंध को अप्राकृतिक कहा गया है. अब कोर्ट के फैसले के बाद पशुओं के साथ संभोग या किसी के साथ जबरन समलैंगिक संबंध बनाना तो अपराध बना रहेगा. लेकिन 2 वयस्क लोगों में रज़ामन्दी से, एकांत में बना समलैंगिक संबंध अपराध नहीं माना जाएगा.