कर्नाटक के चार बार मुख्यमंत्री बनने वाले बीएस येदियुरप्पा ने अपने राजनीतिक जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं. लिंगायत समुदाय से आने वाले येदियुरप्पा कर्नाटक में बीजेपी के सबसे प्रभावशाली नेता मान जाते रहे हैं. कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने में येदियुरप्पा की अहम भूमिका रही है. 


येदियुरप्पा ने अपने चुनावी राजनीति की शुरुआत 80 के दशक में की. वे 1983 में पहली बार शिकारीपुरा से विधायक चुने गए. इसके बाद उन्होंने बीजेपी को कर्नाटक के हर जिल तक फैलाया और संगठन को मजबूत किया. फलस्वरूप 2006 में बीजेपी ने पहली बार जेडीएस के साथ मिलकर सरकार बनाई. दोनों पार्टियों में बारी- बारी से मुख्यमंत्री बनाने की सहमति बनी औ जेडीएस के कुमारस्वामी पहले मुख्यमंत्री बने.


2007 में पहली बार बने मुख्यमंत्री
2007 साल में बीजेपी की तरफ से पहली बार येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने लेकिन जेडीएस के समर्थन वापस लेने से येदियुरप्पा को सीएम का पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद 2008 में बीजेपी ने पहली बार कर्नाटक में अपने दम पर सरकार बनाई. यह येदियुरप्पा के कारण ही संभव पाया और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उन्हें 2011 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा.


2012 में छोड़ी बीजेपी, बनाई नई पार्टी
येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर करने से नाराज होकर 2012 में बीजेपी का साथ छोड़ दिया और कर्नाटक जनता पक्ष (केजेपी) के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली. 2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में केजेपी ने बीजेपी को भारी नुकासान पहुंचाया. इस चुनाव में केजेपी को 9.8% वोट मिले थे और वह 6 सीटें जीतने में कामयाब रही.


2014 में बीजेपी में फिर हुई वापसी   
केजेपी को राज्य में भले ही लगभह 10 फीसदी वोट मिले लेकिन वह बड़ी राजनीतिक ताकत बनने में सफल हो सकी. वहीं बीजेपी को भी येदियुरप्पा के जाने से बारी नुकसान का एहसास हुआ. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले उन्हें बीजेपी में फिर शामिल किया गया और पार्टी की कमान सौंपी गई.


2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लोकसभा 28 में से 17 सीटें मिलीं. इसके बाद 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में बीजेपी को बहुमत से कुछ कम सीटें मिली. लेकिन जुलाई 2019 में बीजेपी राज्य में सरकार बनाने में सफल रही और येदियुरप्पा फिर सीएम बने.  


 


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