नई दिल्ली: सियासत में ना तो कोई स्‍थायी दोस्‍त होता है, ना दुश्‍मन. स्थायी भाव सिर्फ सत्ता है. हर रिश्ते के केंद्र में सत्ता होती है. रिश्ते पलक झपकते बदलते रहे हैं. इतिहास के आइने में झांकने पर पता चलता है कि इस मामले में हर दल में दल-दल है. कई महीनों से कांग्रेस पर नरम रूख अख्तियार करने वाली मायावती ने आज कांग्रेस को डबल झटका दिया है. मध्य प्रदेश में बीएसपी अकेले चुनाव लड़ेगी. यहां मायावती ने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवारों का एलान कर दिया है. वहीं, छत्तीसगढ़ में मायावती ने अजित जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है. खबर है कि छत्तीसगढ़ में 35 सीटों पर बीएसपी और 55 सीटों पर अजित जोगी की पार्टी चुनाव लड़ेगी.


अब जरा इस निर्णय के झरोखे से 2019 के सियासी सफर को देखिए. आज गठबंधन होते ही कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए बीएसपी और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी के बीच गठबंधन को ‘बीजेपी के इशारे पर हुई डील’ करार दिया. यानी खटास की शुरुआत हो गई. यह खटास यदि यूपी तक पहुंची तो महागठबंधन का सपना चकनाचूर हो जाएगा. कुछ ही दिन पहले यूपी में मायावती ने कहा कि अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिली तो बीएसपी अकेले चुनाव लड़ेंगी. हालांकि मायावती ने यह भी कहा कि बीजेपी को रोकने के लिए वह गठबंधन के पक्ष में हैं. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव सीटों से समझौता करने का संकेत पहले ही दे चुके हैं. अखिलेश यादव ने मैनपुरी में कहा था, ''ये लड़ाई लम्बी है. मैं आज कहता हूं की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) से गठबंधन रहेगा और दो चार सीटें आगे पीछे रहेगी और त्याग भी करना पड़ेगा तो समाजवादी पार्टी पीछे नहीं हटेगी.''


मायावती के आज के फैसले ने बता दिया कि वह सीटों पर समझौता करने के मूड में नहीं हैं. 2019 में सत्ता के शीर्ष पद पर अपनी दावेदारी के लिए बेहद सजग हैं. बीजेपी विरोध के साथ अपनी मजबूती पर बीएसपी सुप्रीमो का विशेष ध्यान है.


मोदी विरोधी खेमे में मायावती पीएम की रेस में आगे
मायावती एक तो दलित नेता हैं दूसरे हिंदी पट्टी से आती हैं और मायावती की पार्टी का संगठन पूरे देश में है. 2014 में बीजेपी, कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. मायावती जिस यूपी की राजनीति करती हैं वहां लोकसभा की 80 सीट हैं और मायावती य़ूपी की सीएम रह चुकी हैं और कड़क प्रशासक मानी जाती हैं.


उत्तर प्रदेश में सामान्य जातियों पर ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य है इन जातियों को बीजेपी का वोटर माना जाता है. यह तबका सदियों से बीजेपी को सपोर्ट करता रहा है, लेकिन इन्हीं जातियों का एक बड़ा धड़ गरीबी रेखा और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है. बहुजन समाज पार्टी की नजर बीजेपी के उन वोटरों पर जो गरीबी रेखा में जीने को मजबूर है. बीएसपी ऐसे परिवारों को पार्टी में शामिल करेगी और उनके अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करेगी. वहीं दलित वोटरों को लुभाने के लिए दलित नेताओं का पूरे प्रदेश में अभिनन्दन करने जा रही है.


बीएसपी की चुनावी रणनीति सबसे अलग और गुप्त होती है
लोकसभा चुनाव की तैयारियों में सभी पार्टिया रणनीति बनाने में जुटी हैं. लेकिन बीएसपी की चुनावी रणनीति सबसे अलग और गुप्त होती है. इस पार्टी में बोलने का अधिकार सिर्फ बीएसपी सुप्रीमो मायावती के पास है. बीएसपी के जिलाध्यक्ष, कोऑर्डिनेटर कुछ भी खुल कर नहीं बोलते हैं. लेकिन बीएसपी के खेमे से यह बात सामने आई है कि सर्व समाज का निचला तबका अब बीएसपी का वोटर बनेगा.


क्या कहता है जातिगत समीकरण?


फूलपुर और गोरखपुर में बीजेपी को हराने के बाद मायावती और अखिलेश यादव साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यही करिश्मा दोहराना चाहते हैं. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो अगर मायावती-अखिलेश 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ते तो एसपी-बीएसपी गठबंधन को करीब 41 सीटों पर जीत मिल सकती थी. और बीजेपी 37 सीटों पर जीत पाती.


समाजवादी पार्टी और बीएसपी का आधार दलित, मुस्लिम और यादव वोट हैं. अगर 2019 में मायावती-अखिलेश ने इन जातियों की गोलबंदी कर ली तो जीत मुश्किल नहीं है. यूपी में में 20.5 प्रतिशत दलित, 19.5 प्रतिशत मुस्लिम और 9 प्रतिशत यादव हैं. इन तीनों को मिलाकर 49 फीसदी है.


यूपी में लोक सभा की 80 सीटें हैं. बीजेपी को 71 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2 लोक सभा सीटें सहयोगी पार्टी अपना दल के खाते में गयी थीं. मुलायम सिंह और डिम्पल यादव समेत समाजवादी पार्टी के 5 सांसद चुने गए थे. बीएसपी अपना खाता तक नहीं खोल पाई थी. कांग्रेस से सोनिया गांधी रायबरेली से और राहुल गांधी चुनाव जीते थे. वैसे मायावती ने अब तक लोकसभा चुनाव के लिए किसी पार्टी से कभी कोई गठबंधन नहीं किया है. 1993 में बीएसपी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था जबकि एक बार कांग्रेस का साथ लिया था.