BSP Supremo Mayawati: बसपा सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव 2024 और इसी साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी किसी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. दरअसल, मायावती मिशन 2024 के लिए एक बार फिर से दलित-मुस्लिम गठजोड़ का सियासी दांव खेल रही हैं. अगर बसपा की ये रणनीति काम कर जाती है, तो उत्तर प्रदेश की आरक्षित 17 लोकसभा सीटों पर मायावती की काट न बीजेपी के पास होगी, न समाजवादी पार्टी के पास.
मायावती के दलित-मुस्लिम गठजोड़ के फॉर्मूले को नगीना लोकसभा सीट से आसानी से समझा जा सकता है. 2009 में परिसीमन के बाद सामने आई नगीना लोकसभा सीट पर अब तक तीन चुनाव हुए हैं. हर बार इस सीट पर अलग-अलग पार्टियों ने कमाल दिखाया है. 2009 में सपा, 2014 में बीजेपी और 2019 में बसपा ने नगीना लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी. दलित और मुस्लिम वोटरों के दबदबे वाली इस सीट पर ये दोनों ही हार-जीत का फैसला करते हैं.
क्या है सीट का सियासी समीकरण?
नगीना लोकसभा सीट को मुस्लिम बहुल सीट कहा जाए, तो गलत नहीं होगा. दरअसल, इस लोकसभा सीट पर करीब 46 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. वहीं, दलित वोटरों की संख्या 21 फीसदी और ओबीसी मतदाताओं की 13 फीसदी आबादी है. इस सीट पर वैश्य समुदाय से आने वाले 5 फीसदी और ब्राह्मण वर्ग के 3 फीसदी मतदाता हैं. अगर इस सीट पर दलित-मुस्लिम गठजोड़ का सियासी समीकरण चल जाता है, तो मायावती की बसपा को हराना नामुमकिन होगा.
जनता का क्या है मूड?
नगीना लोकसभा सीट पर बसपा अपनी पकड़ कमजोर नहीं पड़ने देगी. यहां के स्थानीय निवासियों में से ज्यादातर का कहना है कि अगर सपा और बसपा का गठबंधन मिलकर लड़ता है, तो यहां से एकतरफा जीत हासिल की जा सकती है. हालांकि, मायावती के ऐलान के बाद ये मुश्किल ही नजर आता है, तो मुस्लिम मतदाताओं के सामने बसपा, सपा, कांग्रेस में से किसी एक को चुनने की चुनौती होगी.
वहीं, स्थानीय लोगों का ये भी कहना है कि नगीना लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के बीच बीजेपी को लेकर भी अच्छा-खासा माहौल है. इनका मानना है कि बीजेपी की योजनाओं का फायदा मुस्लिम समुदायों तक पहुंच रहा है, तो उसके पक्ष में मतदान होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. स्थानीय लोगों की मानें, तो इस सीट पर सपा का परंपरागत वोटर कहा जाने वाला यादव समुदाय बहुत बड़ी संख्या में नहीं है. इस सीट पर जाट-गुर्जर-पाल जैसे ओबीसी मतदाताओं की बहुलता है.
कुल मिलाकर स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर सपा-बसपा में गठबंधन हुआ, तो यह सीट बसपा आसानी से जीत जाएगी. वहीं, अगर इस सीट पर त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय सियासी जंग होती है, तो बीजेपी को फायदा हो सकता है. स्थानीय जनता ने संभावना जताई है कि एकतरफा वोट देने वाला मुस्लिम समुदाय इस बार मायावती के साथ जा सकता है.
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