Budget 2021: कोरोना काल में सबको खुश करना सरकार के लिए चुनौती, चुनावी राज्यों में होगी बजट की अग्निपरीक्षा
भारत के इस बजट से देश ही नहीं दुनिया की उम्मीदें लगी हुई हैं. अप्रैल मई में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. तो क्या मोदी सरकार के सालाना बजट में पांच राज्यों के हितों पर विशेष कृपादृष्टि रहेगी. आज पेश होने वाले बजट पर हर किसी की नज़र इसलिए बनी हुई है क्योंकि बीता साल नौकरीपेशा और मिडिल क्लास के लिए चुनौतियों भरा साल रहा.
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नई दिल्ली: साल 2021-22 का बजट इस बार की गरमियों में सियासत को भी गरम रखेगा और खुद भी गरम बहस का हिस्सा रहेगा. अप्रैल मई में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. तो क्या मोदी सरकार के सालाना बजट में पांच राज्यों के हितों पर विशेष कृपादृष्टि रहेगी? जानकारों का कहना है कि बजट में सबको कोरोना का टीका मुफ्त लगाने की घोषणा गेम चेंजर साबित हो सकती है. इससे मोदी सरकार पूरे देश के साथ साथ चुनावों में जा रहे पांच राज्यों की जनता का दिल भी जीत पाएगी और वोट भी.
पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी कोरोना का टीका मुफ्त में सबको लगाने की घोषणा कर चुकी हैं. कुल मिलाकर ऐसी बात नौ राज्य कर चुके हैं. बिहार में तो चुनावों से पहले खुद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐसी घोषणा की थी. उधर मोदी सरकार फिलहाल तीन करोड़ लोगों को मुफ्त टीका लगवा रही है जिसमें डाक्टर पैरामेडिकल स्टाफ और पुलिस सेना के लोग शामिल हैं.
अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि सभी जरुरतमंदों के लिए ऐसी घोषणा कीजानी चाहिए. इससे बीजेपी को उन पांच राज्यों में चुनावी फायदा भी मिल सकता है. वैसे कोरोना काल में जीविका और आजीविका के मुददे पर विपक्ष मोदी सरकार पर हमले करता रहा है. अब मोदी सरकार इसका जवाब बजट के जरिए दे सकती है. उधर विपक्ष चाहे तो शैडो बजट के साथ सामने आ सकता है. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए.
बंगाल में ममता बनर्जी हों या केरल में वाम मोर्चा, पुडुचेरी में कांग्रेस या फिर तमिलनाडु में एआईडीएमके. सत्तारुढ़ विपक्षी दल इस मुददे को लेकर चुनावों में जा सकते हैं कि कोरोना काल में उन्होंने कितनी राहत दी और मोदी सरकार ने कितनी. ये दल बता सकते हैं कि अगर वो केन्द्र में सत्ता में होते तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए क्या करते.
जानकारों का कहना है कि बजट में निर्यात पर जोर दिया जाना चाहिए. बांग्लादेश वियतनाम दक्षिण कोरिया जैसे देश कोरोना से उबर पाए क्योंकि ये सभी निर्यात बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं. निर्यात बढ़ने का मांग बढ़ने के साथ साथ विदेशी कंपनिओं का पूंजी निवेश से भी नाता रहा है. अब ये संयोग ही है जिन पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं उनमें से चार समुद्र तटीय राज्य है यानि वहां बंदरगाह है यानि निर्यात का दरवाजा. तो क्या निर्यात के बढ़ने को विधानसभा चुनावों के नफा नुकसान से जोड़ा जा सकता है.
बंगाल असम तमिलनाडु केरल और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे होंगे. इन राज्यों में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का तड़का लगेगा, मुस्लिम तुष्टिकरण बनाम ध्रुवीकरण की रणनीति होगी. यहां बीजेपी अब तक तो भारी पड़ती रही है लेकिन जानकार कहते हैं कि विपक्ष चाहे तो इस पूरे नैरेटिव को विमर्श को बदल सकता है.
सभी कह रहे हैं कि मोदी सरकार को खुलकर खर्च करना होगा, मांग में तेजी लानी होगी और खपत बढ़ाने पर जोर देना होगा. जाहिर है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का ध्यान भी इस तरफ होगा. कुल मिलाकर इन्फास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यटन से जुड़े सैक्टर को पैसा देना होगा और रियायतें भी. ऐसा करने पर नई नौकरियों का दरवाजा खुलेगा और निजी कंपनियां पैसा लगाने से झिझकेंगी नहीं. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बजट की अग्निन परीक्षा पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में होगी क्योंकि मोदी सरकार को वोट देने जा रहे लोगों में यकीन दिलाना होगा कि बजट उनके अच्छे दिन वापस लाने की क्षमता रखता है.
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