मोदी सरकार का बजट 2021-22. देश के लिए इस साल का बजट बहुत जरूरी है. आप इस बजट को समझें, क्योंकि मामला आपके पैसे का है और ये पैसा आज की तारीख में सबकी दुखती रग है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में देश के बही-खाते की जानकारी दे दी है. यानी कि उन्होंने आम बजट पेश कर दिया है.
इस दौरान उन्होंने बताया है कि सरकार को इस साल कितनी आमदमी होने वाली है और सरकार इस साल इस आमदनी को किस-किस जगह पर खर्च करने वाली है. ये बातें बताने के दौरान वित्त मंत्री कुछ भारीभरकम शब्दों जैसे फिस्कल डेफिसिट, डायरेक्ट टैक्स, इन डायरेक्ट टैक्स, फिस्कल पॉलिसी, बैलेंस बजट, कैपिटल अकाउंट, करंट अकाउंट का इस्तेमाल किया है. संसद में बैठे लोगों और अर्थशास्त्रियों को तो ये भाषा समझ में आ जाती है, लेकिन बहुत से लोगों को ये शब्द पल्ले ही नहीं पड़ते हैं. इसलिए चलिए उन शब्दों को समझने की कोशिश करते हैं.
1- क्या होता है आम बजट?
हम पैसे उतने ही खर्च करते हैं जितनी हमारी आमदनी होती है. परिवार को चलाने के लिए भी हम देखते हैं कि परिवार की आमदनी कितनी है और परिवार का खर्च कितना है. इसके लिए हम बजट बनाते हैं. कभी हर महीने, तो कभी छह महीने का और कभी पूरे साल के लिए हम अपना बजट बनाते ही हैं. परिवार की आमदनी होती है सैलरी से, बिजनेस से, फ्रीलांसिंग से या फिर बैंक में जमा किए गए पैसे पर मिल रहे ब्याज से. हमें पता होता है कि हमारी आमदनी कितनी होगी और उस हिसाब से हम अपना बजट बना लेते हैं. इसी तरह से देश को चलाने के लिए भी सरकार देखती है कि उसकी आमदनी कितनी है और उसका खर्च कितना है. सरकार ये काम साल में एक बार करती है और संसद के जरिए पूरे देश को बताती है. मूल रूप से सरकार की आमदनी का दो ही तरीका है. एक तो डायरेक्ट टैक्स और दूसरा है इन डायरेक्ट टैक्स.
2. क्या होता है डायरेक्ट टैक्स?
हम साल में जो भी कमाते हैं उसका एक हिस्सा सीधे सरकार को को देते हैं ताकि सरकार हमारे लिए काम कर सके. हम जो पैसा सीधे सरकार को देते हैं उसे ही डायरेक्ट टैक्स कहते हैं. इस डायरेक्ट टैक्स में आता है इनकम टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स. इनकम टैक्स यानी हमारी कमाई पर लगने वाला टैक्स. हम साल भर में जितने पैसे कमाते हैं सरकार उस पर सीधे टैक्स लेती है. कंपनियां जो पैसे कमाती हैं उसका एक हिस्सा सरकार को देती हैं. ये होता है कॉरपोरेट टैक्स.
3. क्या होता है इनडायरेक्ट टैक्स?
सरकार हमारी कमाई पर टैक्स लगाती है. लेकिन वो सीधे हमसे टैक्स नहीं लेती है. वो किसी सामान पर टैक्स लगाकर उसका दाम बढ़ा देती है. जब हम उस सामान को खरीदते हैं तो बढ़ा हुआ पैसा सरकार की जेब में चला जाता है. इसे कहते हैं इनडायरेक्ट टैक्स. देश में फिलहाल 2 तरह के इनडायरेक्ट टैक्स हैं-
जीएसटी- इसका पूरा नाम है गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स. मतलब सामान और सर्विस पर लगने वाला टैक्स. गुड्स मतलब सामान जैसे कार, टीवी, ब्रेड, कपड़े. सर्विसेज मतलब मोबाइल नेटवर्क, बैंकिंग, हवाई यात्रा, सिनेमा, होटल, रेस्टूरेंट. सरकार इस सामान और सेवाओं पर टैक्स लगाती है और अपनी आमदनी करती है.
कस्टम ड्यूटी- कस्टम ड्यूटी सीधे तौर पर विदेश से खरीदकर भारत लाए गए सामान पर लगती है. आप विदेश जाते हैं और वहां से सोना, परफ्यूम, गाड़ी खरीदते हैं. जब आप उसे अपने देश वापस लेकर आते हैं तो सरकार उस पर टैक्स लगाती है और तभी आप उस सामान को एयरपोर्ट से बाहर ला सकते हैं. ये टैक्स कस्टम ड्यूटी कहलाता है. इसके अलावा कंपनियां भी विदेश से कच्चा माल खरीदकर भारत लाती हैं और यहां पर सामान तैयार करती हैं. उदाहरण के लिए एलईडी टीवी में लगने वाला शीशा आयात करना पड़ता है. इस पर जो टैक्स लगता है, वही कस्टम है. ये इकलौता ऐसा टैक्स है जिससे मिले पैसे को केंद्र सरकार राज्यों को नहीं देती है. केंद्र और राज्य मिलकर जितना टैक्स इकट्ठा करते हैं, उसका 42 फीसदी हिस्सा राज्यों को जाता है. लेकिन कस्टम से मिले पैसे को केंद्र सरकार राज्यों से शेयर नहीं करती है.
4. जीडीपी क्या होती है?
जीडीपी यानि ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट. शुद्ध हिंदी में कहें तो सकल घरेलू उत्पाद. सरकार हर तीन महीने में देखती है कि देश का कुल उत्पादन पिछली तिमाही की तुलना में कितना कम या ज्यादा है. भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं. इनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. इसके लिए देश में जितना भी लोग खर्च या उत्पादन करते हैं, बिजनेस में जितना पैसा लगाते हैं और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है उसे जोड़ दिया जाता है. इसके अलावा और कुल निर्यात (विदेश के लिए जो चीजें बेची गईं है) में से कुल आयात (विदेश से जो चीजें अपने देश के लिए मंगाई गई हैं) को घटा दिया जाता है. जो आंकड़ा सामने आता है, उसे भी उपर किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है. यही देश की जीडीपी है.
5. विनिवेश या डिस्इन्वेस्टमेंट क्या होता है, जो समय-समय पर सरकार करती रहती है?
जब आपके पास थोड़े से पैसे होते हैं तो आप उनको किसी जगह पर इन्वेस्ट करते हैं. जमीन खरीद लेते हैं, सोना खरीद लेते हैं, म्यूचुअल फंड या फिर शेयर बाजार में लगा देते हैं. लेकिन जब आपको पैसे की जरूरत पड़ती है तो आप जमीन बेच देते हैं या फिर खरीदा हुआ सोना बेच देते हैं. म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार से भी पैसा निकाल लेते हैं. सरकार भी यही काम करती है. सरकार भी अपना पैसा किसी कंपनी या फिर पब्लिक सेक्टर यूनिट में लगा देती है. जब सरकार को लगता है कि उसे पैसे की जरूरत है और कहीं से पैसा नहीं मिल पा रहा है, तो वो किसी कंपनी की अपनी हिस्सेदारी किसी कारोबारी को बेच देती है. आम तौर पर सरकार उसी कंपनी के शेयर बेचती है, तो घाटे में चल रहे हैं. इससे सरकार को पैसे मिल जाते हैं जिसे वो किसी फायदे वाली कंपनी में लगा सकती है या फिर किसी विकास योजना पर खर्च कर सकती है. इसी प्रक्रिया को विनिवेश कहते हैं.
6. फिस्कल डेफिसिट क्या होता है?
फिस्कल डेफिसिट को हिंदी में कहते हैं राजकोषीय घाटा. यानी कि सरकारी खजाने का घाटा. जैसे हमें पता होता है कि अगले एक साल में हमारी आमदनी कितनी होगी. इस आधार पर हम अपना खर्च तय करते हैं. जाहिर है कि हम कोशिश करते हैं कि खर्च आमदनी से कम ही हो. लेकिन कई बार ऐसी दिक्कतें हो जाती हैं कि हमें अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च करना पड़ता है. ऐसे में हम घाटे में चले जाते हैं. सरकारों के साथ भी यही होता है. वो भी कई बार अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च कर देती है और तब सरकार को जो घाटा होता है उसे कहते हैं राजकोषीय घाटा यानी कि फिस्कल डेफिसिट. मतलब सरकार की आमदनी और खर्च के बीच का अंतर.
7. ये फिस्कल पॉलिसी क्या बला है?
किसी भी सरकार को देश चलाने के लिए पैसे की ज़रूरत होती है. सरकार हमसे-आपसे पैसे कमाती है और फिर हमारे-आपके ऊपर खर्च कर देती है. ऐसा करने के लिए उसे कुछ कायदे कानून बनाने पड़ते हैं. सरकारें कोशिश करती हैं कि खर्च आमदनी से कम ही रहे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. लिहाजा सरकार कोशिश करती है कि खर्च आमदनी से थोड़ा ही ज्यादा हो. इसके लिए सरकार जो नीतियां बनाती है, उसे कहते हैं फिस्कल पॉलिसी. इसी पॉलिसी के जरिए सरकार देश में टैक्स को बढ़ाकर या फिर घटाकर मंहगाई और रोजगार जैसी चीजों को नियंत्रित करती है.
8. ये 'बैलेंस बजट' कैसा होता है?
सरकार जब बजट बनाती है, तो उसमें हर क्षेत्र का ध्यान रखा जाता है. लेकिन कई बार ज़रूरतों को देखते हुए सरकार कुछ सेक्टर को ज्यादा और कुछ को कम महत्व देती रहती है. इसके अलावा सरकारें आमदनी और खर्च के बीच बैलेंस बनाने की कोशिश करती हैं. अगर सरकार इस कोशिश में कामयाब दिखती है तो कहा जाता है कि बजट बैलेंस है. और अगर खर्च ज्यादा है तो सीधा मतलब है कि बजट बैलेंस नहीं है.
9. 'बैलेंस ऑफ पेमेंट' क्या बला है?
बैलेंस ऑफ पेमेंट की हिंदी होती है भुगतान संतुलन. जैसे हम अगर कोई बिजनेस करते हैं तो एक बैलेंस शीट बनाते हैं, जिसमें किसी से लेन-देन का हिसाब रखते हैं. उसी तरह सरकार भी दुनिया के दूसरे देशों से लेनदेन करती है और उसका हिसाब रखती है. इसके लिए उसके पास जो खाता होता है, उसे कहते हैं बैलेंस ऑफ पेमेंट. इसमें सरकार बताती है कि किसी देश से कितना आयात हुआ और उस देश को कितना निर्यात हुआ. उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि भारत ने अमेरिका से 100 करोड़ का सामान खरीदा और 30 करोड़ का सामान बेचा. इस खरीद-बिक्री का हिसाब बैलेंस ऑफ पेमेंट में होगा.
10. ये करंट अकाउंट में क्या होता है?
ये बैलेंस ऑफ पेमेंट का ही एक हिस्सा होता है. करंट अकाउंट में विदेश से खरीदी गई चीजों और विदेश को बेची गई चीजों का ब्यौरा रहता है. लेकिन अपने देश में करंट अकाउंट हमेशा से निगेटिव ही रहता है. क्योंकि भारत दुनिया को निर्यात करम करता है और आयात ज्यादा. और जब ऐसी स्थिति होती है तो इसे कहते हैं व्यापार घाटा. अर्थशास्त्रियों की भाषा में इसे कहा जाता है करंट अकाउंट डेफिसिट. करंट अकाउंट में दो तरह का व्यापार शामिल होता है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष.
अंग्रेजी में विजिबल और इनविजिबल. भारत अगर कोई सामान खरीदता है और बेचता है तो उसे प्रत्यक्ष व्यापार में शामिल किया जाता है. अप्रत्यक्ष व्यापार में बैंकिंग सुविधाएं, इंश्योरेंस और विदेशों में रह रहे लोगों की ओर से भारत में भेजा जाने वाला और भारत में रहने वाले विदेशियों की ओर से अपने देश में भेजा जाने वाला पैसा शामिल होता है. अब अगर भारत का कुल आयात यानी कि बाहर से हुई खरीद की कुल कीमत, भारत के कुल निर्यात यानी कि भारत से बाहर भेजी गई चीजों की कीमत से ज्यादा होती है तो जो रकम होती है उसे करंट अकाउंट डेफिसिट कहा जाता है. करंट अकाउंट डेफिसिट कितना कम या ज्यादा है, इसकी तुलना देश की जीडीपी से की जाती है. अर्थशास्त्रियों के मुताबिक करंट अकाउंट डेफिसिट देश की कुल जीडीपी का 2.5 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए. करंट अकाउंट डेफिसिट जितना ज्यादा होगा, भारत को उतना ज्यादा पैसा विदेशों को चुकाना होगा. अब भारत विदेशों से व्यापार डॉलर में करता है, तो भारत को ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. चूंकि भारत के पास निर्यात से मिला पैसा आयात की तुलना में कम है, तो भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर खर्च करने पड़ेंगे और ये अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक है.
11. कैपिटल अकाउंट या पूंजीगत खाता किसे जाता है?
ये भी बैलेंस ऑफ पेमेंट का ही हिस्सा है. कैपिटल अकाउंट को फाइनेंशियल अकाउंट भी कहा जाता है. दूसरे देश से आने वाले सीधे निवेश का ब्योरा कैपिटल अकाउंट में रहता है. इसमें एफडीआई यानी डायरेक्ट विदेशी निवेश और एफआईआई यानी विदेशी संस्थानों की ओर से भारत में किए गए निवेश का ब्योरा रहता है.
12. सेंट्रल प्लान आउटले क्या होता है?
ये बजट का अहम हिस्सा है. इसके तहत सरकार अपने अलग-अलग मंत्रालयों और इकनॉमी के दूसरे सेक्टरों के लिए पैसे का बंटवारा करती है. मतलब ये कि सरकार के किस मंत्रालय को साल भर का खर्च चलाने के लिए कितनी रकम मिलेगी, इसे सेंट्रल प्लान आउटले में रखा जाता है. मसलन मानव संसाधन विकास मंत्रालय या ग्रामीण विकास मंत्रालय या फिर सड़क और परिवहन मंत्रालय अगले एक साल में कितने पैसे खर्च करेगा, इसका ब्योरा सेंट्रल प्लान आउटले में होता है.
13. ये अनुदान मांगें क्या होती हैं?
सेंट्रल प्लान आउटले में सरकार ये तय कर देती है कि किसी मंत्रालय को अगले एक साल के लिए कितने पैसे मिलेंगे. लेकिन मंत्रालयों को पैसे इतनी आसानी से नहीं मिलते. हर मंत्रालय को लोकसभा में अपने हिस्से के पैसे मांगने पड़ते हैं और इसे कहते हैं अनुदान मांगे या फिर डिमांड्स फॉर ग्रांट्स. लोकसभा इन मांगों को पास करती है और तभी मंत्रालयों को पैसे मिलते हैं.
14. योजनागत व्यय किसे कहते हैं?
वे खर्चे, जिनके बारे में नीति आयोग और अलग-अलग मंत्रालय बैठकर चर्चा करते हैं और पैसे का एस्टीमेट बनाते हैं, योजनागत व्यय या प्लांड एक्सपेंडिचर के दायरे में आते हैं. मतलब पहले से ही तय होता है कि ये पैसे कहां और कितने खर्च होने हैं.
15. गैर योजनागत व्यय में क्या-क्या आता है?
सरकार के वे खर्चे जिनका ब्योरा योजनागत खर्चों में नहीं होता है, गैरयोजनागत व्यय या अनप्लांड एक्सपेंडिचर में होते हैं. जैसे सरकारी कर्ज का ब्याज, सब्सिडी, कर्मचारियों का वेतन, राज्यों को अनुदान, डिफेंस या सार्वजनिक कंपनियों को दिया जाने वाला कर्ज वगैरह. और आसान शब्दों में कहें तो सरकार तमाम तरह के कर्जे लेती है, उन पर उसे ब्याज देना पड़ता है. सरकार फूड और खाद वगैरह पर सब्सिडी देती है. इसका बोझ भी केंद्र सरकार पर आता है. इस तरह के खर्चों को गैर योजनागत व्यय कहते हैं.
16. कर राजस्व या टैक्स रेवेन्यू क्या होता है?
सरकार अलग-अलग तरह के टैक्स लगाती है. इस टैक्स की वसूली से जो राजस्व आता है, उसे कर राजस्व यानी टैक्स रेवेन्यू कहा जाता है. फिर इसी पैसे से सरकार योजनागत और गैर योजनागत खर्चे चलते हैं. ये सरकार की आमदनी का मुख्य स्रोत है.
17. गैर कर राजस्व में क्या- क्या होता है?
गैर कर राजस्व यानी नॉन टैक्स रेवेन्यू वो रकम होती है, जो सरकार टैक्स के अलावा दूसरे साधनों से जुटाती है. इसमें विनिवेश से मिली रकम हो सकती है. सरकारी कंपनियों को मिला मुनाफा और अलग-अलग इकोनॉमिक सर्विसेज के बदले मिली रकम भी इसी खाते में रखी जाती है.
18. क्या होता है बजट अनुमान?
बजट अनुमान का मतलब है कि सरकार ने एक साल के दौरान कितना खर्च किया है और उसकी कितनी आमदनी हुई है. इसमें सरकार राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा दोनों के आंकड़े को शामिल करती है. इसके अलावा सरकार इसमें ये भी बताती है कि उसकी कुल आमदनी कितनी है.
19. सार्वजनिक ऋण
कभी आपकी आमदनी कम होती है और खर्च ज्यादा हो जाता है. तो आप खर्च चलाने के लिए किसी से पैसे उधार मांगते हैं. सरकार के साथ भी ऐसा ही होता है. अगर सरकार को कभी लगता है कि उसे और पैसे की ज़रूरत है तो सरकार पैसे उधार लेती है. सरकार ये पैसे अपने देश के अंदर किसी आम आदमी से, कंपनी से, किसी बड़े कारोबारी से या फिर किसी बैंक से उधार ले सकती है. इसे आंतरिक सार्वजनिक ऋण कहा जाता है. आम आदमी से कर्ज लेने के लिए सरकार बॉन्ड जारी करती है. आम आदमी उस बॉन्ड को खरीदकर सरकार को कर्ज दे सकता है. इसके अलावा सरकार किसी विदेशी बैंक, किसी विदेशी सरकार या फिर किसी विदेशी संस्था से भी कर्ज ले सकती है. इसे बाह्य ऋण कहते हैं.
20.एग्रीगेट डिमांड एंड सप्लाई
एग्रीगेट डिमांड इकनॉमी में अगले एक साल में होने वाला कुच खर्च होता है, जिसमें वस्तुओं, सेवाओं और निवेश पर खर्च होने वाले पैसे जोड़े जाते हैं. जबकि एग्रीगेट सप्लाई में देश में पैदा होने वाली चीजों और सेवाओं के अलावा बाहर से खरीदी गई चीजों का दाम शामिल होता है और उसमें से विदेश को बेची गई चीजों को घटा दिया जाता है. मतलब ये है कि यहां पर जो पैदा हुआ उसकी कीमत, सेवाओं पर जो खर्च हुआ उसकी कीमत और विदेश से जो चीजें मंगाई गई हैं, उसकी कीमत को जोड़ दिया जाता है और इसमें से विदेश को बेची गई चीजों को घटा दिया जाता है.
21 आयात प्रतिस्थापन
अंग्रेजी में इसको कहते हैं Import substitution industrialization. इसका मलतब सरकार की एक नीति से है, जिसके जरिए सरकार लोकल लेवल पर चीजों का उत्पादन करके विदेशी व्यापार पर निर्भरता कम करती है. जैसे अपने देश के दुकानदार विदेश से सोना खरीदते हैं, लेकिन उन्हें उस सोने का कुछ हिस्सा विदेश में निर्यात करना होता है. इसके अलावा इस नीति के जरिए सरकार विदेश से कच्चा तेल तो मंगवाती है, लेकिन उसे अपनी रिफाइनरी में प्रोसेस करके विदेश के भी कुछ देशों को बेच दिया जाता है. इस नीति को कहते हैं आयात प्रतिस्थापन.
तो ये थे वो 21 शब्द, जिनका इस्तेमाल हर बजट में होता है. 1 फरवरी, 2021 को भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इन शब्दों का इस्तेमाल किया है और देश के बजट को सबके सामने रखा है. अब आप भी इन शब्दों के मायने समझिए और देश के बजट को अपने हिसाब से समझने की कोशिश करिए.
यह भी पढ़ें.
Budget 2021 Highlights: डेढ़ घंटे बाद IT पर बड़ा एलान, 75+ बुजुर्गों को नहीं भरना होगा टैक्स रिटर्न