देश के वित्त मंत्रालय का काम है बजट बनाकर देश के वित्त का प्रबंधन करना. हर साल आम बजट पेश करने को लेकर खासी कवायद की जाती है. इस साल भी वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट को तैयार करने की कवायद सोमवार 10 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है. बजट बनाना वित्त मंत्रालय का काम है, लेकिन इस बजट के आंकड़ों से इतर आम जनता को जिस बात का खास तौर पर इंतजार रहता है वो है महंगाई के घटने और बढ़ने का.


एक आम आदमी भले ही वो अनपढ़ ही क्यों न हो उससे यदि कोई एकबारगी कह दे कि बजट में सब चीजें महंगी हो गई हैं तो वो भी हैरान हो जाता है. आम आदमी की जिंदगी में बजट की महिमा ऐसी है. जिससे खास से लेकर आम आदमी किसी न किसी तरीके से जुड़ा रहता है. इस बार का बजट इसलिए भी खास है क्योंकि रूस- यूक्रेन के बीच जंग चल रही है.


इस जंग से वैश्विक राजनीति में ही नहीं बल्कि वित्त पर भी असर पड़ा है. तेल की कीमतों में इजाफा इसी का नतीजा है. अब ऐसे में आम जनता आने वाले बजट में क्या उम्मीद पाल सकती है. धड़कते दिल से वो इंतजार कर रही है कि राहत मिलेगी जा फिर जेब कटेगी. 


राजकोषीय घाटे को कम करना चुनौती


साल 2022-23 का बजट पेश करने से पहले वित्त मंत्रालय की बैठकों में राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को पूरा करने की चुनौतियों से निपटने की रणनीति बनाई जा रही है. अब आप कहेंगे कि बजट से राजकोषीय घाटे का क्या लेना-देना. दरअसल इसे बजट बनाने के दौरान अनदेखा नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसी से आने वाले वक्त में पैसा खर्च करने का खाका खींचा जाता है.


इसमें देखा जाता है कि क्या भविष्य के सभी खर्चों के लिए पर्याप्त पैसा है. इसी के आधार पर सरकार अगले वित्तीय वर्ष के लिए आय और व्यय की राशि निर्धारित करती हैं. इस साल बीते वित्त वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद के 6.4 फीसदी राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करना सरकार की पहली प्राथमिकता है. 


राजकोषीय घाटा दायरे में होना जरूरी


राजकोषीय नीति के तहत ही सरकार कई बातों का फैसला करती है. मसलन कि कहां कितना टैक्स लगाना है, कहां पैसा खर्च करना है, विकास पर कितना पैसा खर्च करने की जरूरत है. जब सरकार के पास खर्च से ज्यादा पैसा होता है तो ये बजट के लिए अच्छी बात होती है, क्योंकि उसके पास अतिरिक्त रकम होती है, लेकिन जब यह कम होता है तो खर्चों में भी उसके मुताबिक कमी की जाती है.


इस बार का मामला कुछ ऐसा ही है. इसके लिए सरकार बजट से पहले की बैठकों में गैर जरूरी खर्चों की पहचान कर उनमें कटौती करेगी. इसके साथ ही सरकार अपने राजकोषीय घाटे पूरा करने लिए उधार ले सकती है. इसके साथ ही वे बॉन्ड और ट्रेजरी बिल जैसे अन्य अल्पकालिक ऋण साधनों को जारी करके ऐसा कर सकती है.


जब राजकोषीय घाटा अपनी सीमा से बाहर जाता है या बहुत अधिक होता है, तो सरकार को अपनी उधारी बढ़ाने की जरूरत होती है. इससे ब्याज दरों में बढ़ोतरी हो सकती है. ब्याज दरों के बढ़ने से उत्पादन लागत भी बढ़ जाती. सीधे-सीधे ये बढ़ी हुई कीमतें उपभोक्ताओं पर लगाई जाती हैं.  इससे महंगाई बढ़ जाती है. इस बार राजकोषीय घाटा को पूरा करना ही सरकार का सबसे बड़ा लक्ष्य है.


राजस्व अच्छा, लेकिन सब्सिडी के लिए कम


देश को मिलने वाला प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर का राजस्व  इस साल बेहतर रहा है. वित्त मंत्रालय  की ओर से रविवार 9 अक्टूबर को टैक्स कलेक्शन के आंकड़े जारी किए गए. आंकड़ों के हिसाब से सरकार के प्रत्यक्ष कर बढ़ गया है जो बीते साल के मुकाबले सालाना 24 फीसदी तक ज्यादा है.


हालांकि राजस्व में ये बढ़ोतरी भी खाद्य  और उर्वरक सब्सिडी में बड़े पैमाने पर किए गए विस्तार की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं हो सकती है. सरकार के अधिकारियों का कहना है कि सबसे अहम प्राथमिकता 6.4 फीसदी राजकोषीय घाटे को पूरा करना है.   


अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हमें गैर-प्राथमिकता वाले खर्च में कटौती करने के तरीके खोजने होंगे, या जहां खर्च की रफ्तार बेहद असरदार नहीं है, वहां इसे कम करना होगा."


अधिकारी ने ये भी साफ किया कि पूंजीगत व्यय-कैपेक्स को छुआ नहीं जाएगा.  सरकार की अधिग्रहित कई संपत्तियों पर हुए खर्च को पूंजीगत व्यय की श्रेणी में रखा जाता है. जबकि अधिकांश सब्सिडी, कल्याण और प्रमुख योजना खर्च पहले से ही लॉक्ड इन हैं यानी इनसे कोई समझौता नहीं किया जा सकता है. 


वित्त मंत्रालय से जुड़े अधिकारी ने कहा, “इस बजट में बहुत बाध्यताएं हैं. कैपेक्स और अधिकांश राजस्व व्यय पहले ही तय कर दिए गए हैं. इस वजह से बजट के फैसले लेना आसान नहीं है. 10 अक्टूबर से 10 नवंबर तक संशोधित अनुमान-आरई (Revised Estimates -RE) की बैठकों में इसी पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा.


इन बैठकों में व्यय और आर्थिक मामलों के विभागों के अधिकारी सभी केंद्र सरकारों, मंत्रालयों, एजेंसियों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों से मिलेंगे. इन बैठकों का मकसद वित्त वर्ष 2023 के लिए आरई और 2023-24 के लिए  अनुमानित बजट निर्धारित करना होगा. 


बढ़ा है व्यापार घाटा


केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो 1 अप्रैल, 2022 से 8 अक्टूबर, 2022 के दौरान कुल 1.53 लाख करोड़ रुपये वापस किए गए हैं. ये बीते साल में इसी वक्त जारी किए गए रिफंड से 81 फीसदी अधिक है. लेकिन रेटिंग एजेंसी के भारत की वृद्धि दर के अनुमान को घटाया जाना परेशानी का सबब बना है.


सितंबर में ही सामान के निर्यात में 3.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. आलम ये है कि इस चालू वित्त वर्ष के पहले 6 महीनों में व्यापार घाटा लगभग दोगुना हो गया है. इससे आने वाले बजट में राहत मिलने की उम्मीद कम ही है.  


वित्त मंत्री डट गई मोर्चे पर


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के नवंबर के बीच में उद्योग निकायों, कृषि और सामाजिक क्षेत्रों के प्रतिनिधियों और अर्थशास्त्रियों के साथ बैठक करने की उम्मीद है. एक अधिकारी ने बताया कि राजकोषीय घाटे को काबू करने के लिए कई विभागों को व्यय की कमियों को दूर करने को कहा गया है. 


मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को यह देखने के लिए कहा गया है कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना-पीएमजीकेएवाई सहित केंद्र सरकार की खाद्य गारंटी योजनाओं के लिए खाद्यान्न के लिए खरीद की लागत का हिसाब कैसे किया जाता है. 


इस अधिकारी ने ये भी बताया, “अब तक, जो भी खाद्य सब्सिडी मांगी गई है (वित्त मंत्रालय से) दी गई है. हम कह रहे हैं कि इस तरह की व्यवस्था जारी नहीं रह सकती है और मंत्रालय को यह पक्का करने के लिए कहा गया है कि कीमतों का निर्धारण ईमानदारी और वाजिब तरीके से हो और इस तरह की कमियों को इस चेन में अनदेखा नहीं किया जा सकता है. ये मामला को जांच जा रहा है. 


अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जैसी अहम योजनाओं की कमियों को दूर के लिए भी इसी तरह की कवायद की जा रही है, और उन क्षेत्रों में जहां खर्च उतना नहीं है जितना कि वित्त मंत्रालय ने पहले अनुमान लगाया था, यहां ब्याज लागत को तर्क संगत बनाने की कोशिशें की जा रही हैं. गौरतलब है कि यूरोप में युद्ध के भू-राजनीतिक झटकों की वजह से इस साल दो बड़ी व्यय मदें खाद्य और उर्वरक सब्सिडी ही हैं. 


पीएमजीकेएवाई के कई बार आगे बढ़ाए जाने की वजह से वित्त वर्ष 2023 के लिए खाद्य सब्सिडी का बोझ 2.07 ट्रिलियन रुपये के बजट लक्ष्य से बढ़कर 3.32 ट्रिलियन रुपये हो सकता है. कम खरीद लागत पर कोई बचत शामिल नहीं है. इस बीच, उच्च प्राकृतिक गैस और व्यय लागत की वजह से उर्वरक सब्सिडी 1.05 ट्रिलियन रुपये के बजट से बढ़कर 2.5 ट्रिलियन रुपये हो सकती. 


एसएनए के जरिए खर्च में बचत


केंद्र सिंगल नोडल एजेंसी (एसएनए) डैशबोर्ड के जरिए से पर्याप्त व्यय बचत की उम्मीद कर रहा है, जो कि 40,000-50,000 करोड़ रुपये तक हो सकती है. एसएनए केंद्र की योजनाओं के लिए पैसा जारी करने, बांटने और निगरानी करने के तरीके के संबंध में 2021 में शुरू किया गया एक बड़ा सुधार है.


एसएनए डैशबोर्ड के जरिए सरकारी अधिकारी केंद्रीय कोष, मंत्रालयों से लेकर राज्य के कोषागारों और विभागों तक और सीधे विक्रेता, ठेकेदार या कार्यान्वयन एजेंसी के लिए पैसे या फंड को ट्रैक कर सकते हैं. कर राजस्व के मोर्चे पर देखा जाए तो बढ़ती मांग, बढ़ी हुई दरों और अधिक कर (टैक्स) को मंजूरी देने की वजह से सितंबर का माल और सेवा कर संग्रह 26 फीसदी से बढ़कर 1.47 ट्रिलियन रुपये हो गया. लगातार 7वें महीने देश का कर संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये से ऊपर रहा, जो लगातार उच्च उछाल दिखा रहा है. 


कोविड महामारी में राजकोष पर असर


कई बार सरकारें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई बार अधिक पैसा खर्च करती हैं. देश में कोविड-19 महामारी के वक्त कुछ ऐसे ही हालात थे. तब राजकोषीय घाटा बढ़ गया था. तब सरकारी राजस्व में कमी और जीडीपी में तेज गिरावट दर्ज की गई थी. इस वजह सरकार देश की अर्थव्यवस्था को गति देने और मजबूत करने के लिए राजकोषीय घाटे का एक तय लक्ष्य बनाया था. इससे ये हुआ कि वित्त वर्ष 2021 का राजकोषीय घाटा 9.3 फीसदी पहुंच गया.


जबकि पहले जीडीपी का 3.5 फीसदी ही बजट घाटा हुआ था. बेहद अधिक राजकोषीय घाटे से सॉवरेन रेटिंग भी गिर सकती है. इसे सीधे तौर पर देश का देश में पूंजी प्रवाह प्रभावित हो सकता है. दुनिया के देशों की सरकारों की उधार चुकाने की काबिलियत को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सॉवरेन रेटिंग देती हैं. इसके लिए ये एजेंसियां देशों की अर्थव्यवस्था, बाजार, राजनीतिक खतरों पर नजर रखती हैं. ये रेटिंग ही तय करती है कि उधार लेने के बाद कोई देश इसे चुका पाएगा या नहीं.