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WATCH: बजट से पहले 23 चेहरे... 23 उम्मीदें, कितनी पूरी कितनी अधूरी, देखें

Budget Session 2023: संसद के बजट सत्र की आज से शुरुआत हो चुकी है. कल (एक फरवरी) को संसद में 2023-24 बजट पेश किया जाएगा.

Budget Session 2023: साल 2023 में 2024 की आहट... राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण के बाद से बजट सत्र की शुरुआत हो गई है. कल (एक फरवरी) को संसद में 2023-24 बजट पेश किया जाएगा. ऐसे में एबीपी न्यूज़ 23 चेहरे लेकर आपके सामने आया है जो साल 2023 की 23 उम्मीदों को आपके सामने पेश करेगा. 

सत्र के शुरुआत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण से हुई. राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण में कई बातों का जिक्र किया जिसमें एक बात ये भी थी कि भारत को ऐसा बनाना है जिसमें कोई गरीब ना हो. 

पहला चेहरा

बजट का पहला चेहरा है देश की आबादी यानी 143 करोड़ लोग हैं. भारत की GDP इस साल 7% के करीब रहने का अनुमान है. देश के 143 करोड़ लोग चाहते हैं कि ये और तेज़ी से बढ़े. ऐसा बजट आए जो देश की आर्थिक तरक़्क़ी को दिशा देने के साथ चीन-पाकिस्तान जैसे दुश्मनों से सरहद की हिफाजत करे. लोग ऐसा बजट चाहते हैं जो उन्हें वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराए. इसको ऐसे भी देखें कि आम आदमी की आमदनी बढ़ी तो देश की इकॉनमी मजबूत होगी और बजट उसके लिए फैसले की घड़ी है.

दूसरा चेहरा

2023 बजट का दूसरा चेहरा है 44 करोड़ मिडिल क्लास. सालाना ढाई लाख से लेकर 20 लाख तक कमाने वालों को मिडिल क्लास माना जाता है. मिडिल क्लास को देश की ग्रोथ का इंजन माना जाता है. कोई भी सरकार मिडिल क्लास को बजट में नजर अंदाज नहीं कर सकती है. वित्त मंत्री खुद कह चुकी हैं कि वो मिडिल क्लास से आती हैं इसलिए मिडिल क्लास की उम्मीदें आसमान पर हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 38 फीसदी वोट मिले थे लेकिन कोरोना महामारी में बड़े पैमाने पर उनकी नौकरियां छूटीं. इसीलिए 2024 चुनाव से पहले लगातार दूसरी पारी में मोदी सरकार के आखिरी पूर्ण बजट से मिडिल क्लास रोजगार की भारी उम्मीद लगाए बैठा है.

तीसरा चेहरा

7 करोड़ से ज्यादा टैक्स चुकाने वाले बजट का तीसरा बड़ा चेहरा है. वित्तीय वर्ष 2022-23 के पहले 9 महीनों के दौरान सरकार को डायरेक्ट टैक्स से क़रीब 15 लाख करोड़ रुपये मिले हैं. ये बजट के टारगेट का क़रीब 87 प्रतिशत है. पिछले वित्तीय वर्ष के मुक़ाबले डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में लगभग 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में लगभग आधा योगदान इनकम टैक्स का है. लेकिन कोरोना, रूस-यूक्रेन युद्ध, महंगाई, सैलरी में कटौती, छंटनी और इलाज पर ज़्यादा खर्च की वजह से एक टैक्सपेयर के लिए पिछले कुछ साल चुनौतियों से भरे रहे हैं. यही वजह है कि 9 साल में टैक्स पेयर बजट में इनकम टैक्स के स्लैब में बदलाव की सबसे ज्यादा उम्मीद इसी चुनावी साल में लगा रहे हैं.

चौथा चेहरा

चौथा चेहरा है साढ़े 8 करोड़ सैलरी पाने वाले. इनकी सबसे बड़ी डिमांड है 80C में मिलने वाली छूट डेढ़ लाख से बढ़कर ढाई लाख हो जाए ताकि टैक्स का बोझ हल्का हो. PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने मांग की है कि सैलरी पाने वाले लोग सबसे ज़्यादा ईमानदारी से इनकम टैक्स देते हैं इसलिए उन्हें सबसे ज़्यादा फ़ायदा मिलना चाहिए ताकि वो ज़रूरी सामानों पर खर्च कर सकें और भविष्य के लिए बचा सकें. तो क्या चुनावी साल ईमानदार लोगों के लिए कोई राहत की खबर वित्त मंत्री देंगी.

पांचवां चेहरा

2023 बजट का पांचवां चेहरा हैं देश के 94 करोड़ वोटर. इनमें से 23 करोड़ वोटर ने 2019 में बीजेपी को वोट दिया जबकि कांग्रेस को 12 करोड़ वोट मिले. यही वजह है कि देश के वोटर्स को मोदी सरकार के इस बजट से शिक्षा और सेहत पर खर्च बढ़ाने की काफ़ी उम्मीदें हैं. साथ ही महंगाई के मोर्चे पर राहत की भी उम्मीद है. सरकार भी पूरी कोशिश करेगी कि चुनाव से पहले के इस बजट में मतदाताओं को नाराज़ नहीं किया जाए.

छठा चेहरा 

बजट का छठा चेहरा हैं 2023 में नौ राज्यों में होने वाले चुनाव के 33 करोड़ लोग. मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिज़ोरम, राजस्थान और तेलंगाना समेत 9 राज्यों में इस बार विधानसभा चुनाव होने हैं. अगर जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव हुए तो कुल मिलाकर 10 राज्यों में चुनाव होंगे. BJP का टारगेट है कि उसे एक भी चुनाव नहीं हारना है. ऐसे में मोदी सरकार को इन राज्यों पर बजट में ख़ास ध्यान देना होगा.

सातवां चेहरा

सातवां चेहरा हैं देश की 71 करोड़ महिलाएं. दोबारा मोदी सरकार बनवाने में सबसे ज्यादा योगदान महिलाओं का रहा था. उज्ज्वला,  स्वच्छ भारत और मुफ्त राशन जैसी योजनाओं से महिलाएं ख़ुश हैं. मोदी सरकार का बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान भी महिलाओं के बीच हिट रहा है. पिछले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनावों में महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा रहा. इसके बावजूद देश की GDP में महिलाओं का योगदान 18 प्रतिशत ही है. महिलाओं के लिए रोजगार के बेहतर मौक़े और महिला सुरक्षा पर आवंटन की उम्मीद सबसे ज्यादा है.

आठवां चेहरा

बजट का आठवां चेहरा हैं देश के 15 करोड़ किसान. राजनीतिक दलों के लिए खेती चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है क्योंकि देश की 543 में से 80% सीटों पर किसान नतीजे तय करते हैं यानी 400 से ज्यादा सीटों पर. किसान ग्रामीण और छोटे शहरों में बहुत बड़े वोट बैंक भी हैं. हर पार्टी ख़ुद को किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द बताती है. इसके बावजूद देश की GDP में कृषि का योगदान महज़ 19 प्रतिशत है और देश के किसान कर्ज़ के बोझ से डूबे हुए हैं. 2019 के चुनाव से पहले मोदी सरकार ने पीएम किसान सम्मान निधि की शुरुआत की थी. इस बार भी किसानों को सरकार से उम्मीद है कि खाद पर सब्सिडी बढ़े. फसल की ज्यादा कीमत मिले और उससे भी बढ़कर फसल नुकसान की वाजिब भरपाई हो.

नौवां चेहरा

बजट का नौवां चेहरा हैं खेतों में काम करने वाले 12 करोड़ मजदूर जिनके लिए कोई विशेष योजना नहीं है. इन्हें रोज़गार मिलना तय नहीं है. काम-काज के हालात बहुत ख़राब हैं और कोई सामाजिक सुरक्षा भी नहीं मिली हुई है. ऐसे में ये हर समय ग़रीबी के दलदल में फंसे रहते हैं. बजट से इनकी बस यही उम्मीदें हैं कि उन्हें नियमित काम मिले, किसान से जुड़े उद्योग बढ़ें ताकि आमदनी दोगुनी हो और सामाजिक सुरक्षा हासिल हो.

दसवां चेहरा

बजट का 10वां चेहरा है देश के पंद्रह करोड़ पसमांदा मुसलमान. मुसलमानों में पिछड़े इस समूह की तादाद करीब 85 फीसदी है लेकिन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक पैमाने पर वो पीछे छूट गए हैं. PM मोदी ने भी बीजेपी कार्यकर्ताओं से घर-घर जाकर उनसे मिलने को कहा है. पसमांदा मुसलमान करीब 100 लोकसभा सीटों पर असर डालते हैं. इन्हें उम्मीद है कि बजट में पसमांदा मुस्लमानों के लिए भी कल्याण योजनाएं होंगी और हुनर हाट शुरू हो ताकि उन्हें एक मंच मिल सके.

11वां चेहरा

बजट का 11वां चेहरा है उच्च शिक्षा हासिल करने वाले देश के करीब चार करोड़ छात्र. भारत जैसे बढ़ते देश में 10वीं क्लास से कॉलेज के बीच 60% ड्रॉपआउट रेट उच्च शिक्षा का हाल बताता है. वहीं, जो कॉलेज तक पहुंच जाते हैं उन्हें भी बाद में नौकरी के लिए जूझना पड़ता है. हाल की एक स्टडी कहती है 67 प्रतिशत ग्रेजुएट्स को प्लेसमेंट के लिए संघर्ष करना पड़ता है. छात्र बजट में ड्रॉपआउट रेट कम करने और नौकरी के ज़्यादा मौक़ों की उम्मीद कर रहे हैं साथ ही रिसर्च पर ज्यादा खर्च से देश की शिक्षा व्यवस्था और इकॉनमी में भी फायदा होगा.

12वां चेहरा

बजट का 12वां चेहरा है देश के तीन करोड़ हेल्थकेयर वर्कर. भारत जैसे विशाल देश में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर की काफ़ी कमी है. ये विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ़ से तय न्यूनतम ज़रूरत को भी पूरा नहीं करता है. छोटे शहरों और गांवों में तो इलाज करवाना बेहद मुश्किल काम है. कोरोना काल में इसकी और भी जरूरत महसूस हुई. वैसे लंबे समय से मांग की जा रही है कि GDP का 2.5 प्रतिशत खर्च स्वास्थ्य सेवा पर हो. अस्पतालों और डिस्पेंसरी की संख्या में बढ़ोतरी के अलावा डॉक्टर, नर्स और टेक्निकल स्टाफ की तादाद में भी बढ़ोतरी हो. मेड इन इंडिया मेडिकल डिवाइस पर ज़ोर दिया जाए.. बजट इनकी उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है इसका इंतजार रहेगा.

13वां चेहरा

बजट का 13वां चेहरा है देश के 17 करोड़ मनरेगा कार्ड धारक मजदूर. मनरेगा पूरी तरह से केंद्र प्रायोजित योजना है और इसके तहत ग्रामीण परिवार के सदस्य को साल में कम-से-कम 100 दिन रोज़गार मिलना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता. कोरोना के दौरान मनरेगा गांवों के ग़रीबों के लिए लाइफलाइन बन कर आई. ऐसे में सरकार से उम्मीद है कि वो बजट में इतना आवंटन करे कि मनरेगा के वादे को पूरा कर सके.

14वां चेहरा

बजट का 14वां चेहरा है देश की 50 करोड़ शहरी आबादी. वैसे तो भारत को गांवों का देश कहा जाता है लेकिन अब ये तेज़ी से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2018 की 46 करोड़ शहरी आबादी 2050 में  88 करोड़ हो जाएगी. लेकिन शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर का बुरा हाल है. लोग झुग्गियों में रहने के लिए मजबूर हैं. दफ़्तर तक जाने-आने में ट्रैफिक जाम का सामना करना पड़ता है. प्रदूषण की वजह से सांस लेना भी दुश्वार है. ऐसे में शहरी आबादी बजट पर टकटकी लगाए बैठी है.

15वां चेहरा

बजट का 15वां चेहरा है देश के गांवों में रहने वाले 93 करोड़ लोग. गांवों में बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकॉनमी के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण बेरोज़गारी दर 7% से ज़्यादा रही है. गांवों की समस्या को दूर करना 5 ट्रिलियन इकॉनमी और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी ज़रूरी है. गांवों की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए कृषि आधारित उद्योगों पर ज़ोर देना ज़रूरी है. फिलहाल ग्रामीण अर्थव्यवस्था देश की GDP में 25 से 30 प्रतिशत का योगदान देती है. इसलिए गांव में रहने वालों को उम्मीद है कि उनकी आमदनी भी बजट के फैसलों से बढ़ेगी और रोजगार के अवसर भी मिलेंगे.

16वां चेहरा

बजट का सोलहवां चेहरा है छह करोड़ से ज्यादा छोटे उद्योग यानी MSME न सिर्फ़ बड़े जॉब क्रिएटर हैं बल्कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी हैं. MSME सेक्टर 11 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है. देश की GDP में इस सेक्टर का योगदान 28 फीसदी से ज़्यादा है और निर्यात में 40 फीसदी से ज़्यादा. अगर MSME सेक्टर की तरक़्क़ी होगी तो रोज़गार की समस्या भी दूर होगी. यही वजह है कि MSME सेक्टर बजट में अपने लिए ज़्यादा खर्च, कर्ज़ लेने में आसानी की मांग कर रहा है.

17वां चेहरा

बजट का सत्रहवां चेहरा है 3 हजार 291 विदेशी कंपनियां. भारत में वैसे तो 5,068 विदेशी कंपनियां रजिस्टर्ड हैं लेकिन उनमें से 3,291 कंपनियां एक्टिव हैं लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत से विदेशी कंपनियों का पलायन हुआ है. 2014 से 2021 के बीच 2,783 विदेशी कंपनियों ने भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया. अगर भारत को 5 ट्रिलियन इकॉनमी के टारगेट को हासिल करना है तो यहां विदेशी इन्वेस्टमेंट में बढ़ोतरी बेहद ज़रूरी है. ऐसे में विदेशी कंपनियां उम्मीद करेंगी कि उन्हें टैक्स में राहत मिले.

18वां चेहरा

बजट का 18वां चेहरा है गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली 27 करोड़ की आबादी. कोरोना आने से पहले तक देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग घट रहे थे लेकिन कोरोना ने 2 करोड़ 30 लाख बढ़ा दिए. 2011 के बाद ये पहला मौक़ा था जब भारत में ग़रीबी रेखा से नीचे बसर करने वालों की संख्या बढ़ी. हालांकि सरकार ने प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के ज़रिए ग़रीबों पर करीब 4 लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं और इस साल भी मुफ्त अनाज देने की योजना जारी रहेगी लेकिन  और क़दम उठाने भी जरूरी होंगे.

19वां चेहरा

बजट का 19वां चेहरा हैं 1103 अरबपति क्योंकि हर साल देश में करोड़पतियों और अरबपतियों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ ये अपना वतन छोड़कर नए ठिकाने की तरफ जा रहे हैं. यहीं चिता की बात है. हेन्ले एंड पार्टनर्स की जुलाई की रिपोर्ट कहती है कि 2022 में 8 हजार अरबपति हिंदुस्तान छोड़कर नए देश में अपना ठिकाना बना सकते हैं. देश छोड़ने वाले अमीरों में भारत रूस और चीन के बाद तीसरे नंबर पर है. उसकी बड़ी वजह है निवेश के पर्याप्त मौके और बिजनेस में असुरक्षा. इसलिए इन्हें उम्मीद है कि निवेश के ज्यादा मौके मिलेंगे.

20वां चेहरा

बजट का बीसवां चेहरा है 84 हजार स्टार्टअप. स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के मामले में भारत, अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश बन गया है. रोज़गार के विस्तार में स्टार्ट-अप की एक अहम भूमिका है. स्टार्ट-अप भारतीय GDP में 4 से 5 प्रतिशत तक का योगदान कर सकते हैं. ये स्टार्ट-अप बजट में कारोबार शुरू करने के लिए लिए नया और आसान  फ्रेमवर्क चाहते है. साथ ही ये भी चाहते हैं कि स्टार्ट-अप में विदेशी निवेश को टैक्स से छूट मिले.

21वां चेहरा

बजट का 21वां चेहरा है 32 हजार IT कंपनियां. IT सेक्टर देश की GDP में 9 फीसदी का योगदान देता है. सर्विसेज़ सेक्टर में भी IT का योगदान 51 प्रतिशत है और यहां लगभग 50 लाख लोगों को रोज़गार मिलता है. नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज़ कंपनीज़ के मुताबिक़ वित्त वर्ष 2022 में IT इंडस्ट्री का रेवेन्यू 227 अरब डॉलर तक पहुंच गया. यानी IT सेक्टर रोज़गार के साथ-साथ देश के विकास के लिए बेहद ज़रूरी है. यही वजह है कि IT सेक्टर इस बजट में सेमीकंडक्टर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ई-कॉमर्स, फिनटेक और एड-टेक के क्षेत्र में अपने विस्तार के लिए समर्थन मांग रहा है. साथ ही IT सेक्टर ये भी चाहता है कि डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को बढ़ावा देने के लिए क़दम उठाए जाएं.

22वां चेहरा

बजट का 22वां चेहरा है चौदह लाख से ज्यादा रजिस्टर्ड कंपनियां. इस वित्त वर्ष में लगभग 1 लाख 67 हज़ार नई कंपनियां बनीं. 2021 के मुक़ाबले ये आंकड़ा 7.5 फीसदी ज़्यादा है. ये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है लेकिन भारत में मौजूदा आंकड़े से दोगुनी कंपनियों को रजिस्टर होना चाहिए. इसके लिए कॉरपोरेट टैक्स और कस्टम ड्यूटी में कमी करने की ज़रूरत है. कॉरपोरेट टैक्स और कस्टम ड्यूटी में कमी होने से भारतीय कंपनियां भी कंपीटिटिव बनेंगी. इन्हें उम्मीद है कि बजट में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस यानी कारोबार के लिए अच्छा माहौल मिलेगा और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को इन्सेटिंव मिलने से उनकी वित्तीय सेहत सुधरेगी.

23वां चेहरा

बजट का 23वां और अहम चेहरा है 7 हजार एक्सपोर्ट यूनिट और SEZ. देश की GDP में सामानों और सेवाओं के निर्यात का हिस्सा 2020-21 में 18.7 प्रतिशत था जो कि 2021-22 में बढ़कर 21.4 प्रतिशत हो गया. देश के विकास में निर्यात की एक बड़ी भूमिका है. जितना ज़्यादा एक्सपोर्ट उतनी विदेशी मुद्रा की आमदनी, लोगों को ज़्यादा रोज़गार, चालू खाते के घाटे में कमी और इस तरह देश का संपूर्ण विकास होता है. लेकिन एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी के बावजूद चीन भारत से 8 गुना ज़्यादा एक्सपोर्ट करता है. अगर भारत को चीन की बराबरी करनी है तो निर्यात में बढ़ोतरी के लिए एक फंड होने के साथ-साथ देश में पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास करना होगा.

 

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