जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि त्वरित न्याय के लिए बुलडोजर प्रणाली नहीं चलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि  आरोपी तो दूर, किसी अपराधी के घर पर बुलडोजर चलाने का किसी को अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अवैध निर्माणों का संरक्षण नहीं करेगी, लेकिन कुछ मार्गदर्शक सिद्धांतों का होना आवश्यक है. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर अब जमीयत उलेमा ए हिंद ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. 


जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा, ''बुलडोजर से न्याय नहीं, बल्कि न्याय का कत्ल होता है. किसी के आरोपी होने के कारण घरों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता.'' उन्होंने कहा कि जिस तरह से बुलडोजर की कार्रवाई की जाती है उससे एक पूरे समुदाय को सजा दी जाती है, किसी आरोपी का घर गिरने से केवल उसे नहीं बल्कि पूरे परिवार को नुकसान उठाना पड़ता है.


न्याय के लिए चुप नहीं बैठेंगे- मौलाना महमूद मदनी


मौलाना मदनी ने कहा कि आप महिलाओं के संरक्षण की बात करते हैं, आपने कुछ वर्षों में डेढ़ लाख मकानों को गिरा दिया, इनका सबसे अधिक नुकसान महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों को होता है. जिन्होंने कुछ नहीं किया, उन्हें दर-दर भटकना पड़ता है, यह न्याय का कौन सा तरीका आपने स्थापित किया है? हमें उम्मीद है कि अदालत इस पर कठोर कदम उठाएगी. मौलाना मदनी ने कहा कि इससे न केवल मुसलमान बल्कि हर न्यायप्रिय तबका परेशान है. मौलाना मदनी ने कहा कि न्याय के के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद हर संभव संघर्ष करेगी और बिल्कुल चुप नहीं बैठेगी.


17 सितंबर को अगली सुनवाई


जस्टिस बी आर गवई  और के जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने विभिन्न राज्यों में 'बुलडोजर कार्रवाइयों' के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को 13 सितंबर तक मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है ताकि उन्हें अदालत के समक्ष पेश किया जा सके. ये प्रस्ताव वरिष्ठ वकील नचिकेता जोशी के पास एकत्र किए जाएंगे, जिन्हें उन्हें संकलित करके अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का कहा गया है. बेंच ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 17 सितंबर निर्धारित की है.