करगिल से अच्छी खबर सामने आई है. प्रदेश में कृषि विभाग की मदद से पहली बार खरबूजे की खेती हुई. यह फल इसी महीने बाजार में भी आ जाएंगे. यह खरबूजा तब बाजार में आएगा जब मैदानी इलाकों में इसका मौसम खत्म हो चुका होगा. कृषि विज्ञान केंद्र, कारगिल ने इस वर्ष जैविक खरबूजे की खेती में शून्य जुताई और कम जैविक आदानों के साथ बंपर उत्पादन प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है. कृषि विभाग को उम्मीद है कि अच्छी उपज, आकार और गुणवत्ता के कारण किसानों को अच्छा दाम मिल सकता है.


कृषि विज्ञान केंद्र, कारगिल के प्रमुख डॉ मोहम्मद मेहदी की निगरानी में चलाये गए इस सफल प्रोजेक्ट में वैज्ञानिकों ने एक हेक्टेयर में 30 टन तक खरबूजे उगाने की क्षमता प्राप्त की है. 


डॉ मेहदी के अनुसार पायलट प्रोजेक्ट में 1500 वर्गफीट के प्लाट पर 130 क्विंटल खरबूजे की खेती इस बार हुई है. उन्होंने बताया कि अगले एक दो सालो में कारगिल में किसानो के बीच इसे "कैश क्रॉप" की तरह प्रचारित किया जाएगा.


डॉ. मेहदी ने बताया, ''हमने तो अपने खेत में ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल किया है लेकिन अगर खरबूजे की खेती गांव देहात में होती है तो हर 12-13 दिन के बाद पानी की ज़रुरत पड़ेगी. और कारगिल जैसे सूखे ईलाके के लिए यह एक अच्छी खबर है.''


खरबूजे की खेती के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने 'मुल्चिंक' तकनीक का इस्तेमाल किया. इस तकनीक के जरिए ज़मीन पर प्लास्टिक और जेविक खाद की परत के नीचे पौधे उगाए जाते हैं.


प्रोजेक्ट पर काम करने वाली रिसर्चर डॉ रिंचन डोलकर के मुताबिक खरबूजे की खेती से पहले कारगिल जैसे खुश्क रेगिस्तानी ईलाके में ज़मीन को उपजाऊ बनाने के लिए काफी काम करना पड़ा.


कारगिल के कृषि विज्ञान केंद्र में अपने स्वाद और गुणवत्ता के कारण उत्पादित खरबूजे की भारी मांग है. खरबूजे की मिठास और गुणवक्ता का प्रमाण माने जाने वाले टीएसएस (Total Soluble Solid) के अनुसार कारगिल में उगाये जा रहे खरबूजे में यह 13-14 पाया गया जो कि बहुत अच्छा माना जाता है.


केरल में मुस्लिम लीग का महिला मोर्चा भंग, पुरुष नेता के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत के बाद उठाया गया कदम