नई दिल्ली: दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में किसानों के आंदोलन से व्यापारियों को लगभग 50 हजार करोड़ रुपये के कारोबार का नुकसान हुआ है. ये जानकारी खुदरा व्यापारियों के संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने गुरुवार को दी. कृषि और मंडी व्यवस्था में सुधार के लिए लागू तीन नए कानूनों को खत्म करने की मांग को लेकर किसानों की कई यूनियनों ने करीब दो महीने से दिल्ली की सीमाओं को बंद कर रखा है.
'प्रस्तावित संयुक्त समिति में व्यापारियों को भी रखा जाए'
कैट ने सरकार से अपील की है कि प्रस्तावित संयुक्त समिति में व्यापारियों को भी रखा जाए, क्योंकि नए कृषि कानूनों से व्यापारियों के हित भी जुड़े हैं. कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल ने कहा, सरकार का हालिया प्रस्ताव न्यायसंगत है और मुद्दे को हल करने के लिए सरकार की इच्छा को दर्शाता है. इसलिए अब किसानों को कृषि समुदाय के बड़े हित और कृषि व्यापार में लगे लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस प्रस्ताव को स्वीकार करना चाहिए और अपना आंदोलन वापिस ले लेना चाहिए.
बयान में कहा गया कि अगर अब भी किसान सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते हैं, तो यह माना जाएगा कि वे समाधान में रुचि नहीं रखते हैं और कुछ विभाजनकारी ताकतें समस्या बनाएं रखने के लिए किसानों का इस्तेमाल कर रही हैं. कृषि कानून सिर्फ किसानों से नहीं जुड़े हैं. देशभर में लगभग 1.25 करोड़ व्यापारी मंडियों में काम करते हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा को सरकार का प्रस्ताव नामंजूर
किसान संगठनों के संघ संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार का प्रस्ताव नामंजूर कर दिया है. सयुंक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन की मुख्य मांगों के रूप में तीन केंद्रीय कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने और सभी किसानों के लिए सभी फसलों पर लाभदायक एमएसपी के लिए एक कानून बनाने की बात दोहराई है.
किसान यूनियनों के साथ बुधवार को 10वें दौर की वार्ता में सरकार ने नए कृषि कानूनों के अमल को डेढ़ साल तक के लिए स्थगित करने का प्रस्ताव दिया था. किसान यूनियनों ने इस प्रस्ताव पर अपना निर्णय सुनाने के लिए वक्त मांगा था, इसलिए अगले दौर की वार्ता शुक्रवार को दोहपर 12 बजे तय की गई है.
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