अभी पूरे देश की लोकसभा और चार राज्यों की विधानसभा चुनावों की खुमारी उतरी भी नहीं है कि अब उपचुनाव की तैयारी शुरू हो गई है. पहले आम चुनावों पर लाखों करोड़ का खर्च होने के बाद अब उपचुनावों पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने की तैयारी है. ये सारे पैसे उसी टैक्स पेयर्स की जेब से जाने वाले हैं, जो किसानों का कर्ज माफ करने पर कहते हैं कि पैसा हमारा है तो किसानों की कर्ज माफी क्यों. ये पैसा उन्हीं टैक्स पेयर्स की जेब से जाने वाला है, जो सस्ती शिक्षा, पढ़ाई और दवाई जैसी वेलफेयर स्कीम्स पर सरकार के पैसे खर्च करने के नाम पर मुंह बिचकाते हैं, लेकिन ऐसे चुनावों में पानी की तरह बह रहे पैसे पर चुप्पी साध लेते हैं.



लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने दो सीटों से चुनाव लड़ा. दोनों ही जीते. वायनाड की सीट छोड़ी और रायबरेली अपने पास रखी. तो  अब खाली पड़ी वायनाड सीट पर उपचुनाव होंगे. उत्तर प्रदेश के 9 विधायक अब सांसद बन गए तो उनकी विधानसभा पर उपचुनाव होंगे. एक सीट पर विधायक को सजा हो गई और विधायकी खत्म हो गई तो वहां उपचुनाव होंगे. बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक में उपचुनाव होने हैं. एक कानून की वजह से ऐसे उपचुनावों पर जो पैसा खर्च होगा, आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.


किस कानून में दो सीटों से चुनाव लड़ने की इजाजत
ये कानून है भारत का जनप्रतिनिधित्व कानून 1951. इसकी धारा 33 कहती है कि चुनाव चाहे लोकसभा का हो या फिर विधानसभा का, एक प्रत्याशी अधिकतम दो सीटों से चुनाव लड़ सकता है. इसी कानून की वजह से प्रत्याशी दो सीटों से चुनाव लड़ते हैं. कई बार हार जाते हैं तो खर्च बच जाता है, लेकिन कई बार चुनाव जीत जाते हैं तो फिर एक सीट छोड़नी पड़ती है. छोड़ी हुई सीट पर उपचुनाव होता है. जैसे अभी राहुल गांधी के साथ हुआ है. 2019 में वो दो सीटों से चुनाव लड़े. वायनाड से जीते, अमेठी से हारे तो उपचुनाव की नौबत नहीं आई, लेकिन 2024 में रायबरेली, वायनाड दोनों ही जीत गए तो वायनाड छोड़ दी और वहां उपचुनाव होगा.

राहुल गांधी ही क्यों. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी साल 2014 में दो सीटों से चुनाव लड़ चुके हैं. वाराणसी और वडोदरा. उन्होंने वाराणसी अपने पास रखी, वडोदरा छोड़ी तो वहां उपचुनाव हुए. ये दो सीटों का कॉन्सेप्ट भी 1996 के लोकसभा चुनाव में सामने आया. इससे पहले नियम ये था कि कोई भी प्रत्याशी कितनी भी सीट पर चुनाव लड़ सकता है. इसी वजह से अटल बिहारी वाजपेयी तो 1957 में तीन सीटों से चुनाव लड़े थे. हालांकि, जीत उन्हें एक ही सीट पर मिली थी तो तब उपचुनाव की नौबत नहीं आई थी.


कानून 1951 की धारा 70 क्या कहती है?
ऐसे में कोई ये भी सवाल पूछ सकता है कि अगर दो सीटों से जीत ही गए तो फिर दोनों ही सीटों से सांसद क्यों नहीं रह सकते हैं. इसका भी जवाब मिलता है जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 70 में. धारा 70 कहती है कि अगर कोई प्रत्याशी दो सीट से चुनाव जीत जाता है तो उसे एक सीट खाली करनी होगी. जिस सीट को वो खाली करेगा, उसके बारे में उसे स्पीकर या चेयरमैन को अपने हाथ से लिखकर देना होगा कि वो एक सीट खाली कर रहा है. चुनाव के नतीजे घोषित होने के 10 दिन के अंदर दो सीटों से जीते हुए प्रत्याशी को सीट खाली करनी होती है.


उपचुनाव के लिए कौन देगा पैसा?
अब ये तो हो गया कानूनी दांव-पेच. अब असल मुद्दे पर आते हैं कि दो सीटों से चुनाव लड़े प्रत्याशी की दो सीटों से चुनाव लड़वाए पार्टी. उस चुनाव पर जो पैसा खर्च हो उसका भार ढोए जनता. अभी तो हो यही रहा है. हालांकि, चुनाव आयोग ने पहले भी सरकार को सुझाव दिया था कि अगर दो सीटों पर जीतने की वजह से कोई उपचुनाव होता है तो जिस प्रत्याशी की वजह से उपचुनाव हो रहा है, उसे या फिर उसकी पार्टी को चुनाव का पूरा खर्च वहन करना चाहिए, लेकिन ये सुझाव सुझाव ही रह गया. चुनावी खर्च उठाने की जिम्मेदारी जनता की ही रह गई.


तो जनता कितना खर्च करेगी, जरा इसको भी समझ लेते हैं. आंकड़ा बताता है कि 1951-1952 में जब लोकसभा के पहले चुनाव हुए थे तो उस वक्त चुनाव 68 फेज में हुए थे. उस चुनाव में तकरीबन साढे़ 10 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. 2019 में चुनाव सात चरणों में हुए. तब खर्च करीब 50 हजार करोड़ रुपये का हुआ और अब जब 2024 में भी सात चरणों में चुनाव हुए तो ये खर्च करीब-करीब एक लाख करोड़ रुपये का है.


एक वोट पर 700 रुपये खर्च करता है चुनाव आयोग
एक आंकड़ा ये भी कहता है कि एक वोट पर चुनाव आयोग को करीब 700 रुपये का खर्च करना होता है. तो अंदाजा लगाइए कि इस उपचुनाव में कितना पैसा खर्च होने वाला है, जिसकी जरूरत नेताओं को छोड़कर शायद ही किसी को थी. अंदाजा लगाने के लिए वायनाड का उदाहरण ले सकते हैं, जहां से राहुल गांधी जीते थे, लेकिन उनके इस्तीफे के बाद अब प्रियंका गांधी वाड्रा वहां से चुनाव लड़ रही हैं.


वायनाड सीट पर 2024 के चुनाव में कुल 10 लाख 84 हजार 653 वोट पड़े हैं. अब इसे 700 से गुणा कर दीजिए. पता चलेगा कि वायनाड सीट पर उपचुनाव करवाने में चुनाव आयोग को करीब 70 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. ये सिर्फ एक सीट की बात है. अभी तो यूपी की 10 विधानसभा सीटों समेत बिहार, बंगाल और हिमाचल प्रदेश तक में वोटिंग होनी है. उसपर होने वाला खर्च आपको ही उठाना है, जो आप हर रोज कभी इनकम टैक्स देकर, तो कभी जीएसटी देकर, तो कभी सेस देकर उठा ही रहे हैं.


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