बिहार बंद: पप्पू यादव ने कन्हैया कुमार के अंदाज में लगाए आजादी के नारे
पप्पू यादव ने सरकार के कहा कि किसी मजहब को टारगेट न करे. उन्होंने कहा कि देश के करोड़ों अनुसूचित जनजातियों के पास कोई कागज नहीं है. वहीं कन्हैया कुमार ने कहा कि सरकार को इसके लिए काम करना चाहिए कि लोगों के अकाउंट में 15 लाख कैसे आएंगे.
पटना: बिहार में लेफ्ट पार्टियों ने नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ बंद बुलाया. इस बंद को महागठबंधन के उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी का समर्थन मिला. इसके साथ ही पप्पू यादव ने भी इस बंद का समर्थन किया लेकिन आरजेडी ने खुद को इससे दूर रखा.
आरजेडी के समर्थन नहीं देने के पीछे की वजह क्या है ये नहीं बताया जा रहा है लेकिन पार्टी के समर्थकों का कहना है कि आरजेडी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है और ये अपनी ताकत अपने बूते दिखाना चाहती है. ऐसे में आज के बंद को समर्थन देकर अपनी ताकत की नुमाइश कम नहीं करना चाहती है.
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उधर आज पटना के डाकबंगला चौराहे पर सीपीआई के नेता कन्हैया कुमार तो दूसरी तरफ हाथ में हथकड़ी और गले में बेड़ियां डाले पप्पू यादव पहुंचे. पप्पू यादव ने कन्हैया कुमार के अंदाज में आजादी के नारे लगाए. पप्पू यादव ने कहा कि देश के करोड़ों अनुसूचित जनजातियों के पास कोई कागज नहीं है. बंजारा के पास कोई कागज नहीं है. अत्यंत पिछड़ों के पास थोड़ी जमीन भी नहीं है. उन्होंने सरकार से कहा कि आपको जो करना है करो पर किसी मजहब को टारगेट मत करो.
कन्हैया ने 21 दिसंबर को आरजेडी के बंद का समर्थन करने का एलान किया. बिहार में बंद के दौरान खूब हंगामा हुआ. पप्पू यादव की पार्टी और वीआईपी पार्टी के समर्थको ने रेल रोकने से लेकर सड़कों को बंद कर दिया. तोड़फोड़ की और टायर जलाकर प्रदर्शन किया.
इसके साथ ही कन्हैया ने कहा कि प्रदर्शन का असर है इसलिए सरकार को कहना पड़ता है डरने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि जनता को डरने की जरूरत नहीं है बल्कि सरकार को डरने की जरूरत है. जनता ने जिस काम के लिए चुन कर भेजा है, सरकार को वो काम करना चाहिए. लोगों के खाते में 15 लाख कैसे पहुंचे उसकी व्यवस्था करनी चाहिए. दो करोड़ लोगों को हर साल नौकरी कैसे मिले, इसके लिए काम करना चाहिए. चूंकि दूसरी बार सरकार बनी है तो दस सालों में कैसे ये 20 करोड़ नौकरी पैदा करें. काला धन भी वापस नहीं आया. इसके साथ ही कन्हैया कुमार ने कहा कि सरकार चाहती है कि फर्जी बहस में मुख्य मुद्दा लुप्त हो जाए. ये मसला एक समुदाय का नही है पूरे समाज का है.
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