नई दिल्ली: यूपी पोस्टर विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया है. पोस्टर लगना सही या गलत इस पर आज सुप्रीम कोर्ट में फैसला नहीं हुआ है. लखनऊ में सीएए-विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद महत्वपूर्ण मामला है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि क्या उसके पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है. कोर्ट ने कहा कि फिलहाल ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी इस कार्रवाई का समर्थन करता हो.


बता दें कि यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के पोस्टर हटाने के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की है. यूपी सरकार की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. इलाहबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ हिंसा के 57 आरोपियों का पोस्टर हटाने का सरकार को आदेश दिया था. लखनऊ में CAA विरोधी प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों की तस्वीर वाला बैनर हटाए जाने के आदेश के खिलाफ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी सरकार को तुरंत इस तरह के पोस्टर और बैनर हटाने का आदेश दिया था.


यूपी सरकार की मांग है कि सुप्रीम कोर्ट इस आदेश पर रोक लगा दे. सुप्रीम कोर्ट में कल इस मामले की सुनवाई होगी. यूपी सरकार 19 दिसंबर को लखनऊ में CAA विरोधी प्रदर्शन के दौरान उपद्रव कर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपियों से नुकसान की भरपाई करवाना चाहती है. उसने एक करोड़ 55 लाख रुपए की वसूली का आदेश जारी किया है. जिन 57 लोगों से यह वसूली की जानी है, बकायदा उनकी तस्वीर के साथ बैनर छपवा कर लखनऊ के अलग-अलग चौक चौराहों पर लगवाया गया है.


इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर ने मामले पर खुद संज्ञान ले लिया था. जस्टिस माथुर और राकेश सिन्हा की बेंच ने माना था कि इस तरह से लोगों की तस्वीरों के साथ बैनर लगाना उनकी निजता का हनन है. ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके तहत इस तरह की कार्यवाही की जा सकती है. हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से तत्काल ऐसे बैनर हटाने को कहा था.


यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि अलग-अलग मौकों पर सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से उसकी वसूली किए जाने के का आदेश दे चुके हैं. यूपी सरकार लोकतांत्रिक विरोध प्रदर्शन के खिलाफ नहीं है. लेकिन करदाताओं के खून पसीने की कमाई से बनी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाए जाने को बर्दाश्त नहीं कर सकती. इसलिए, उसने अपने दायित्व को निभाते हुए और पहले आए कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए नुकसान की वसूली की कार्रवाई शुरू की. अब हाई कोर्ट की तरफ से उपद्रवियों के लिए सहानुभूति पूर्वक रवैया दिखाए जाने से इसमें दिक्कत आ सकती है.


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