एयर इंडिया में विदेशी निवेशकों के लिए खुला रास्ता, सिंगल ब्रांड रिटेल में ऑटोमैटिक रूट से 100% FDI
बता दें कि इसी फैसले को लेकर उस समय विपक्ष में बैठी बीजेपी ने मनमोहन सरकार का विरोध किया था.
नई दिल्ली: एयर इंडिया के विनिवेश में विदेशी एय़रलाइंस कंपनियों के हिस्सेदारी लेने का रास्ता साफ हो गया है. दूसरी ओर सिंगल ब्रांड रिटेल में भी विदेशी निवेश के नियम आसान किए गए.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश से जुड़े नियमों को आसान बनाने का फैसला किया. सरकार का ये कदम ऐसे समय में आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने वरिष्ठ मंत्रियों के साथ स्विटजरलैंड के शहर दावोस में होने वाली वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना बैठक में होंगे. ये बैठक 23 जनवरी से 26 जनवरी के बीच होनी है. मोदी वहां दुनिया की जानी मानी कंपनियों के प्रमुखों को 23 जनवरी को संबोधित करेंगे और भारत में निवेश करने का न्यौता देंगे. दूसरी ओर सरकार का ये कदम आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार को लेकर चल रही बहस का भी रुख मोड़ सकता है.
विमानन क्षेत्र
विदेशी निवेश के मौजूदा नियमों के तहत शेडयूल एयरलाइंस (वो विमानन कंपनियां जो सरकारी एजेंसियो की ओर से मंजूर टाइम टेबल के हिसाब से उड़ाने मुहैया कराती हैं) में विदेशी एय़रलाइंस को 49 फीसदी तक विदेशी निवेश की इजाजत है, लेकिन सरकारी एयरलाइन एयर इंडिया को इससे बाहर रखा गया था. फिलहाल, मंत्रिमंडल के ताजा फैसले के मुताबिक, एयर इंडिया में भी विदेशी एय़रलाइंस 49 फीसदी तक हिस्सेदारी ले सकेंगी. लेकिन किसी भी सूरत में प्रभावी नियंत्रण और अहम हिस्सेदारी भारतीयों के हाथ ही में रहेगा. एक बात और, विदेशी एय़रलाइंस ये निवेश सरकार की अनुमति के बाद ही कर सकेंगी.
सरकार का ये फैसला एयर इंडिया के विनिवेश में मदद कर सकता है. घाटे से जुझ रही इस कंपनी से सरकार बाहर निकलना चाहती है. इसके लिए कुछ घरेलू एयरलाइंस जैसे इंडिगो, स्पाइसजेट और विस्तारा ने दिलचस्पी भी दिखायी है. उम्मीद है कि दावेदारों की सूची में विदेशी एय़रलाइंस के शामिल होने से काफी बेहतर कीमत सरकार को मिल सकेगी. खबरों के मुताबिक, फरवरी में सरकार एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचे जाने की प्रक्रिया को रफ्तार देगी.
सिंगल ब्रांड रिटेल
एक ब्रांड वाले खुदरा कारोबार यानी सिंगल ब्रांड रिटेल में अभी 49 फीसदी सीधे और उससे ज्यादा का विदेशी निवेश सरकार की मंजूरी के साथ किया जा सकता है. ताजा फैसले के तहत अब 100 फीसदी तक विदेशी निवेश ऑटमेटिक रुट यानी बगैर सरकार की मंजूरी के किया जा सकेगा. हालांकि पहले की तरह इस निवेश की जानकारी रिजर्व बैंक को देना अनिवार्य होगा.
मंत्रिमंडल ने सिगल ब्रांड रिटेल की शर्तों में भी फेरबदल किया है. इसके मुताबिक,
- घरेलू बाजार से 30 फीसदी हासिल करने की शर्त को आसान कर दिया गया है.
- अब यदि कोई विदेशी कंपनी भारत में सिंगल ब्रांड रिटेल स्टोर खोलती है तो खोले जाने की साल की पहली तारीख से पांच साल तक यदि वो अपने विदेशी कारोबार के लिए भारतीय बाजार से सामान खऱीदती है तो उसे भी 30 फीसदी की शर्त में शामिल कर लिया जाएगा.
- बहरहाल, पांच साल के बाद भारतीय बाजार में कारोबार के लिए कम से कम से 30 फीसदी सामान भारत से ही जुटाना होगा.
शर्तो में फेरबदल के बाद उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा विदेशी कंपनियां यहां कारोबार शुरु करने के लिए प्रोत्साहित होंगी. सिंगल ब्रांड के कारोबार में एच एंड एम, गैप और आइकिया जैसी कंपनियां पहले ही यहां कारोबार शुरु कर चुकी है जबकि 50 से भी ज्यादा कंपनियां यहा आने को तैयार है. इनमें जानी मानी ब्रांड कोरस, मिगातो, इविसु, वालस्ट्रीट इंग्लिश, पास्ता मेनिया, लस एडिक्शन मेल्टिंग पॉट, योगहर्ट लैब और मोनालिसा मुख्य रुप से शामिल हैं.
रियल इस्टेट
मंत्रिमंडल ने रियल इस्टेट ब्रोकिंग सर्विसेज में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत दी है. लेकिन यहां साफ किया गया है कि ऐसी कंपनी सिर्फ ब्रोकिंग का काम देखेंगी, रियल इस्टेट बिजनेस नहीं. दूसरे शब्दों में वो जमीन-जायदाद खुद खरीद कर नहीं बचेंगी, बल्कि खरीदार और बिक्रेता के बीच माध्यम का काम करेंगी. ध्यान रहे कि विदेशी निवेश के मौजूदा नियमों के तहत रियल इस्टेट प्रोजेक्ट में 100 फीसदी विदेशी निवेश की इजाजत है.
हाल के वर्षो में विदेशी निवेश के मोर्चे पर सरकार को खासी कामयाबी मिली है. 2013-14 में कुल मिलाकर 36.05 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आय़ा था जो 2014-15 में बढ़कर 45.15 अरब डॉलर, 2015-16 में 55.46 अरब डॉलर और 2016-17 में 60.08 अरब डॉलर हो गया. 31 मार्च को खत्म होने वाले कारोबारी साल 2017-18 के पहले छह महीने (अप्रैल-सितंबर) के दौरान 25.34 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी निवेश आया है.