नई दिल्लीः सीएजी ने नौसेना के लंबी दूरी के टोही और एंटी-सबमेरिन वॉरफेयर विमान, पी8आर्ई (पीऐटआई) के सौदे को लेकर रक्षा मंत्रालय को लताड़ लगाई है. संसद में पेश की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सौदा ‘गलत’ है. साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि इन विमानों से नौसेना की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं. ऑफसेट जिम्मेदारी पूरी ना करने के लिए सीएजी ने विमान बनाने वाली अमेरिकी कंपनी, बोइंग की भी जमकर खिंचाई की है.


सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2009 में जब रक्षा मंत्रालय ने ये सौदा किया था उस वक्त स्पेन की कंपनी ईएडीएस, कासा ने भी टेंडर में हिस्सा लिया था. टेंडर के दौरान स्पेन की कंपनी ने भारतीय नौसेना के लिए लंबी दूरी के टोही और एंटी-सबमेरिन वॉरफेयर एयरक्राफ्ट के लिए बिड किया था. स्पेन की कंपनी विमान के साथ साथ 20 सालों तक प्रोडेक्ट सपोर्ट भी दे रही थी. लेकिन इसके चलते सौदे की कीमत ज्यादा हो रही थी. लेकिन रक्षा मंत्रालय ने स्पेन कंपनी को नकारते हुए अमेरिका की कंपनी, बोइंग को एल-वन चुन लिया क्योंकि उसकी कीमत कम थी. बाद मे रक्षा मंत्रालय प्रोडेक्ट सपोर्ट के लिए बोइंग से अलग सौदा किया. सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक बोइंग को इस तरह से एल-1 (यानि सबसे कम बोली लगाने वाला वेंडर) बनाना ‘गलत’ था.


आपको बता दें कि जनवरी 2009 में भारतीय नौसेना ने अमेरिकी कंपनी बोइंग से आठ (08) पी8आई विमान का सौदा किया था. इस सौदे की कीमत करीब 2.1 बिलियन डॉलर थी (उस वक्त के हिसाब से करीब 10 हजार करोड़ रूपये). ये इंटर गर्वमेंटल करार (आईजीए) के तहत भारत ने अमेरिका से सौदा किया था.


रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि बोइंग कंपनी को डील होने के सात साल के भीतर ऑफसेट-ऑबलिगेशन यानि जिम्मेदारी पूरी करनी थी. लेकिन आज तक सौदे के 30 प्रतिशत कीमत यानि 3127 करोड़ रुपये की ऑफसेट जिम्मेदारी पूरी नहीं की गई. ऑफसेट के तहत कंपनी को सौदे की कीमत का 30 प्रतिशत भारत में निवेश करना था या फिर इतनी कीमत के स्पेयर पार्टस भारत से खऱीदने थे.


खास बात ये है कि रिपोर्ट में विमान का बिना नाम लिए कहा है कि ये नौसेना की जरूरतों को पूरा नहीं करता है क्योंकि इसमें बम नहीं है क्योंकि रक्षा मंत्रालय ने बम लेने के लिए कोई करार नहीं किया. (हालांकि पी8आई विमान में हारपून मिसाइल और टोरेपीडो जरूर लगे हुए हैं.) रिपोर्ट में कहा गया है कि विमान के रडार और ‘स्नोबॉय्स’ भी कम दूरी की हैं जिसके चलते इसकी एएसडब्लू (एंटी-सबमेरिन वॉरफेयर) क्षमता पर असर पड़ा है.