CAG ने फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट और MBDA को खड़ा किया कटघरे में, सरकार की ऑफसेट पॉलिसी पर खड़े किए सवाल
CAG ने सरकार की ऑफसेट पॉलिसी पर भी सवाल खड़े किए हैं. CAG का कहना है कि पॉलिसी के तहत फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट (दासो) ने डीआरडीओ को अभी तक कावेरी इंजन बनाने के लिए तकनीक में मदद नहीं की है. इसके साथ ही साल 2010 में इजरायली कंपनी से चार गुना ज्यादा दाम में यूएवी के इंजन लेने को लेकर सीएजी ने वायुसेना को लताड़ा है.
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नई दिल्लीः रफाल लड़ाकू विमान भले ही लद्दाख से सटी चीन सीमा की निगहबानी में तैनात हो गया हो लेकिन रफाल सौदे से जुड़े विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. ताजा विवाद सीएजी की उस रिपोर्ट से खड़ा हुआ है जिसमें कहा गया है कि सौदे में किए गए ऑफसेट पॉलिसी के उलट रफाल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट (दासो) ने डीआरडीओ को अभी तक कावेरी इंजन बनाने के लिए तकनीक में मदद नहीं की है. सीएजी की रिपोर्ट को बुधवार को संसद के पटल पर रखा गया.
सीएजी रिपोर्ट में साफ तौर से कहा गया है कि वर्ष 2015 में हुए 36 मीडियम मल्टीरोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट के सौदे के दौरान वेंडर कंपनी दसॉल्ट और एमबीडीए ने 30 प्रतिशत ऑफसेट के बदले डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) को कावेरी इंजन के लिए तकनीक में मदद का वादा किया था. लेकिन इस ऑफसेट-ऑबलिगेशन (जिम्मेदारी) को आज तक पूरा नहीं किया है.
दरअसल, रक्षा मंत्रालय की ऑफसेट-पॉलिसी के अनुसार अगर भारत किसी भी विदेशी कंपनी से 300 करोड़ से ज्यादा का कोई रक्षा सौदा करता है तो उस कंपनी को सौदे की कीमत की 30 प्रतिशत राशि भारत के ही डिफेंस या फिर एयरोस्पेस सेक्टर में लगानी होगी. इसके लिए विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी से करार कर सकती है.
सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने ये ऑफसेट पॉलिसी वर्ष 2005 में शुरू की थी. तब से अबतक (2018) तक रक्षा मंत्रालय ने करीब 46 ऑफसेट कांट्रेक्ट किए जिनकी कीमत करीब 66427 करोड़ रूपये है. 30 प्रतिशत के हिसाब से अबतक विदेशी कंपनियों को 19223 करोड़ रूपये के ऑफसेट दे देनी चाहिए थी. लेकिन अबतक ये राशी सिर्फ 11,396 करोड़ की है (यानि करीब 59 प्रतिशत). लेकिन इनमें से भी रक्षा मंत्रालय ने सिर्फ 5447 करोड़ के ऑफसेट को ही मंजूरी दी है. क्योंकि विदेशी कंपनियों ने बाकी ऑफसेट ना तो करार के अनुरूप किए थे और ना ही रक्षा खरीद प्रक्रिया के तहत थे.
सीएजी रिपोर्ट ने सरकार की ऑफसेट पॉलिसी को लेकर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. क्योंकि इस पॉलिसी में कई खामियां है जिसके चलते विदेशी कंपनियों और उनके साथ करार करने वाली स्वदेशी कंपनियों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है.
बुधवार को ही एक दूसरी सीएजी रिपोर्ट में वायुसेना की ओर से इजरायल की कंपनी, आईएआई से वर्ष 2010 में यूएवी के लिए खरीदे गए पांच इंजनों पर बड़ा सवाल खड़ा किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस इंजन की कीमत अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में 21-25 लाख थी, वायुसेना ने उसे 87.45 लाख रूपये में खरीदा. रिपोर्ट में कहा गया कि उसी इंजन को डीआरडीओ ने मात्र 24.30 लाख में खरीदा था.
रिपोर्ट में वायुसेना के मी-17 हेलीकॉप्टर्स के अपग्रेडेशन ना होने को लेकर भी सीएजी ने वायुसेना की जमकर लताड़ लगाई. इसके अलावा पहला स्वदेशी फाइटर जेट, तेजस का निर्माण करने वाली सरकारी एजेंसी, एडीए यानि एयरोनोटिकल डेवलपमेंट एजेंसी की कार्यशैली पर भी सीएजी रिपोर्ट में सवाल खड़े किए गए हैं.
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