नई दिल्ली: सियाचिन और डोकलाम जैसी देश की बर्फीली सरहदों पर तैनात सैनिकों के पास सर्दी से मुकाबले के कई ज़रूरी साजो-सामान किल्लत है तो वहीं से मुश्किल हालात में ड्यूटी करने के लिए आवश्यक खास पोषण की भी कमी है. यह बात भारतीय सेना के कामकाज पर नियंत्रक महालेखा परीक्षक की ताजा रिपोर्ट में उजागर हुई है. सीएजी ने सरकार से इन कमियो को दूर करने को कहा है.


भारत की अधिकतर ज़मीनी सीमाएं पर्वतीय क्षेत्र में है ऐसे में सियाचिन लद्दाख डोकलाम आदि दुर्गम क्षेत्रों में सैनिकों को विशेष कपड़ों उपकरणों विशेष राशन और आवास सुविधा की जरूरत होती है. इसके सहारे भारतीय सैनिक कठोर मौसम और बेहद सर्द हालात से होने वाली बीमारियों का मुकाबला करने में समर्थ हो पाते हैं.


सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक लेखा परीक्षा के दौरान स्वीकृत स्टॉक के मिलने में असामान्य देरी का नमूने देखने की मिले. इसके कारण अपेक्षित कपड़ों व उपकरणों की अत्यधिक कमी सामने आई और उन्हें सैनिकों को समय से जारी नहीं किया जा सका. इसके अलावा फेस मास्क जैकेट व स्लीपिंग बैग जैसी चीजें पुराने मानकों के हिसाब से ही खरीदे जाने के भी मामले सामने आए.


सीएजी रिपोर्ट के अनुसार ज़रूरत से समय प्रक्रिया की देरी के कारण सैनिकों को निजी उपयोग के लिए आवंटित साजो सामान को रिसाइकल भी करना पड़ा. जिसके कारण उनकी स्वच्छता व स्वास्थ्य भी प्रभावित हुआ. गौरतलब है कि सेना की पूर्वी कमान में 9000 फीट से अधिक की ऊंचाई और उत्तरी कमान क्षेत्र में 6000 फीट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनाती पर एक्स्ट्रीम कोल्ड क्लोथिंग एंड इक्यूप्मेंट (ईसीसीई) के तहत साजो समान दिया जाता है. ईसीसीई की पहली श्रेणी में विशेष बूट्स, कोट, दस्ताने, चश्मे, सोने वाले बैग आदि आते हैं.


रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई कि अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में की पर्वतारोहण सामग्री ऐसी भी है जिसका इस्तेमाल भारतीय सैनिक उनकी एक्सपायरी डेट के बाद भी कर रहे हैं.सीएजी रिपोर्ट की पृष्ठ संख्या 22 पर दी गई तालिका संख्या 15 के अनुसार 297 ऑक्सीजन सिलेंडर सैनिकों को तब भी जारी किए जा रहे थे जबकि उनकी एक्सपायरी डेट सितंबर 2014 में समाप्त हो चुकी थी. सीएजी के मुताबिक सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो एन ने जून 2018 महानिदेशक आयुध सेवा को इसकी सूचना भी दी थी.


इसी तरह एक अन्य मामला सैनिकों के लिए मल्टीपर्पज बूट का भी है. बूट एमपी का इस्तेमाल सैनिक दुर्गम इलाकों और अत्यधिक ठंडी जलवायु वाले इलाकों में करते हैं. यह जूते माइनस 55 डिग्री सेल्सियस में भी पैरों को गर्म रखने में मदद देते हैं. सीएजी की पड़ताल में रक्षा मंत्रालय ने माना कि 2016 में इन जूतों की कमी आई जिसके कारण उस साल गर्मियों के दौरान सैनिकों को यह बूट उपलब्ध नहीं कराए जा सके. इसके चलते सैनिकों को पहले इस्तेमाल किए गए जूतों को ही दोबारा इस्तेमाल कर काम चलाना पड़ा.


इसके अलावा रिपोर्ट में सैनिकों के लिए उच्च पर्वतीय इलाकों में इस्तेमाल होने वाले चश्मों, जैकेट आदि की कमी को भी उजागर किया गया है. सीएजी ने इस बात पर चिंता भी जताई कि देश में पर्याप्त शोध और उत्पादन के अभाव में उच्च पर्वतीय क्षेत्र की सैन्य ज़रूरत का सामान भारत को आयात करना पड़ रहा है.


विषम परिस्थितियों में सीमाओं की रक्षा के लिए सैनिकों की एक अहम ज़रूरत होता है राशन. अधिक ऊंचाई पर शरीर की विशेष आवश्यकताओं के अनुरूप खास खुराक की ज़रूरत होती है. ऐसे में जबकि तापमान माईनस 50 डिग्री से भी अधिक नीचे गिर जाता है तो भूख कम लगती है. साथ ही शरीर के लिए सामान्य कामकाज करना भी कठिन होता है. ऐसे में बोझ उठाने और ड्यूटी अन्य कामकाज करना कठिन होता है. वहीं इन इलाकों में जब खाद्यान्न सामग्री की आपूर्ति नहीं होती तो कई वैकल्पिक पदार्थ सैनिकों को उपलब्ध कराए जाते हैं. मगर ऑडिट में सामने आया की इन वैकल्पिक पदार्थों के उपयोग के कारण सैनिकों की कैलोरी जरूरतों में 48 से 82 फीसद तक की कमी दर्ज की गई. सीएजी ने सरकार से इस स्थिति में सुधार करने और विशेष राशन आपूर्ति प्रक्रिया को नियमित करने को कहा है.


गौरतल है कि यह रिपोर्ट दिसम्बर 2019 में राज्यसभा में पेश की गई थी मगर इसे लोकसभा में नहीं रखा जा सका था. इसी वजह से यह सीएजी रिपोर्ट सार्वजनिक भी नहीं की जा सकी. लिहाज़ा रिपोर्ट को अब लोकसभा में पेश करने के साथ ही सार्वजनिक भी किया गया है.


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