कोलकाता: देश की न्यायपालिका व्यवस्था में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राज्य की हाईकोर्ट के जज ने सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायधीशों को सजा सुनाने का ऐलान कर दिया हो. आज ऐसा ही हुआ है. कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस सी एस कर्नन ने आज भारत के चीफ जस्टिस जे एस खेहर और सुप्रीम कोर्ट के 7 अन्य जज को 5 साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है. जस्टिस कर्नन पहले से ही कोर्ट की अवमानना के आरोपों का सामना कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मानसिक जांच कराने का आदेश भी जारी किया था जिसे वो मानने से इंकार कर चुके हैं.


2015 के संशोधित कानून के तहत दंडनीय अपराध


सुप्रीम कोर्ट से टकराव को बढ़ाते हुए जस्टिस कर्नन ने कहा कि 8 न्यायाधीशों ने ''संयुक्त रूप से 1989 के अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम और 2015 के संशोधित कानून के तहत दंडनीय अपराध किया है.''


जस्टिस कर्नन ने सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ के सदस्यों के नाम लिए जिनमें चीफ जस्टिस जे एस खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष और जस्टिस कुरियन जोसफ हैं.


जस्टिस कर्नन ने ये बताई फैसले की वजह


जस्टिस कर्नन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आठों न्यायाधीशों ने जातिगत भेदभाव किया है. उन्होंने कहा, ''उन्हें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम, 1989 के तहत दंडित किया जाएगा.'' उन्होंने कहा कि आठ न्यायाधीशों ने एक सार्वजनिक संस्थान में मुझे अपमानित करने के अलावा एक दलित न्यायाधीश का उत्पीड़न किया है. उनके आदेशों से सभी संदेह से परे यह साबित हो गया है.


जस्टिस कर्णन ने यहां न्यू टाउन में रोजडेल टॉवर स्थित अपने आवास पर अस्थाई कोर्ट से जारी अपने आदेश में कहा, ''इसलिए इस मामले में कोर्ट का फैसला जरूरी नहीं है.'' उन्होंने अपने आदेश में प्रत्येक के लिए 5-5 साल कैद की सजा सुनाई और एससी-एसटी कानून की धारा 3 की सब सेक्शन (1) (एम), (1) (आर) और (1) (यू) के तहत तीन आधार पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग में जमा की जाए जुर्माने की राशि

जस्टिस कर्नन ने निर्देश दिया कि तीनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी और यदि जुर्माना अदा नहीं किया गया तो उक्त जजों को 6 महीने की कैद और काटनी होगी. उन्होंने निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि आदेश प्राप्त होने के एक हफ्ते के अंदर नई दिल्ली के खान मार्केट स्थित राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग में जमा की जाए.

जस्टिस कर्नन ने इस लिस्ट में सुप्रीम कोर्ट की एक और न्यायाधीश जस्टिस आर भानुमति का नाम भी जोड़ा जिनके खिलाफ इसलिए आदेश जारी किया गया क्योंकि उन्होंने जस्टिस कर्नन को न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज से रोका था. जस्टिस कर्नन ने 4 मई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद मानसिक स्वास्थ्य जांच कराने से इनकार किया था. उन्होंने डॉक्टरों के एक दल से कहा कि वह पूरी तरह सामान्य हैं और मानसिक रूप से स्थिर हैं.


जस्टिस कर्नन ने यह भी कहा कि उनके द्वारा 13 अप्रैल को जारी आदेश अभी प्रभावी है जिसमें उन्होंने 7 न्यायाधीशों की बेंच के सदस्यों को 14 करोड़ रुपये का जुर्माना देने का निर्देश दिया था. आदेश था कि ''सुप्रीम कोर्ट से संबद्ध रजिस्ट्रार जनरल प्रत्येक के वेतन से यह राशि वसूल करेंगे.'' उन्होंने जस्टिस भानुमति को 2 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया.


काफी समय से चर्चा में हैं जस्टिस कर्नन !


आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जस्टिस कर्नन के खिलाफ स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही शुरू की थी और उनके न्यायिक और प्रशासनिक कामकाज पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ लिखे गये जस्टिस कर्णन के अनेक खतों का स्वत: संज्ञान लेते हुए 8 फरवरी से उनके प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारों के उपयोग पर रोक लगा रखी है.

4 मई को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्नन को मानसिक स्वास्थ्य जांच कराने का भी आदेश दिया था. इसके जवाब में कर्नन ने कहा थी कि वह पूरी तरह सामान्य हैं और मानसिक रूप से स्थिर हैं. जस्टिस कर्णन अवमानना कार्यवाही के सिलसिले में 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे. वह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा करने वाले हाईकोर्ट के पहले न्यायाधीश हैं.