उत्तर-पश्चिमी यूरोप का एक देश बेल्जियम, जहां से एक व्यक्ति 26 साल की उम्र में ईसाई धर्म का प्रचार करने भारत आया और फिर भारत की भाषा और संस्कृति में ऐसा रंगा कि तुलसी और वाल्मीकि का भक्त हो गया. हम बात कर रहे हैं सबसे मशहूर अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश रचने वाले फादर कामिल बुल्के की. वही कामिल बुल्के मिशनरी होते हुए भी रामकथा के विद्वान थे.


अब आप सोच रहे होंगे कि एक विदेशी ने भारतीय भाषा और संस्कृति में इतनी दिलचस्पी कैसे ली कि आज वो हिन्दी भाषा का जिक्र होते ही याद आ जाता है. इसको समझने से पहले ये जान लें कि फादर कामिल बुल्के अपनी मातृभाषा से बेहद प्यार करते थे. वो  उत्तरी बेल्जियम के रहने वाले थे जहां फ्लेमिश बोली जाती थी. यह डच भाषा का एक रूप है.  वहां के दक्षिणी प्रदेश में फ्रेंच का दबदबा था, जो बेल्जियम के शासकों और संभ्रांत लोगों की भाषा थी. इस वजह से स्थानीय भाषा और फ्रेंच में अक्सर संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी.


कामिल बुल्के जब कॉलेज में थे तो उन्होंने फ्रैंच भाषा के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हिस्सा लिया और एक मशहूर छात्र नेता के तौर पर उभरे. यही कारण था कि कामिल बुल्के के अंदर अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति प्यार कूट-कूट कर भरा था.


भाषा के प्रति लगाव ही था कि जब कामिल बुल्के यहां आए तो सबसे पहले यहां की भाषा सीखी और हिन्दी में ऐसी विद्वता हासिल की कि उनकी पहचान बड़े भाषाविद् के तौर पर होने लगी. इन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1974 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. वे हमेशा कहते थे कि संस्कृत महारानी है, हिन्दी बहूरानी है और अंग्रेजी को नौकरानी है...


इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अपना पीएचडी का शोध हिन्दी में लिखा


बेल्जियम में फ्लेमिश बोलने वाले कामिल बुल्के ने भारत में रहकर अवधी, ब्रज, पाली, प्राकृत और अपभ्रंश की जानकारी हासिल की और साल 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरा किया. उन्होंने अपना शोध अंग्रेजी की जगह हिन्दी में लिखा.



उनके शब्दकोश लोगों के लिए जरूरी दस्तावेज बन गए


फादर कामिल बुल्के ने शिक्षा प्राप्त करने के बाद काम करना शुरू किया. उन्होंने तब के बिहार और अब के झारखंड को अपनी कर्मस्थली बनाया था. शुरुआती दिनों में गुमला में गणित पढ़ाने के बाद वे रांची के संत जेवियर्स कॉलेज में हिंदी और संस्कृत के प्रोफेसर बन गए. हालांकि बाद में उन्होंने खुद को पूरी तरह से हिंदी साहित्य और भाषा के लिए समर्पित कर दिया. इसका परिणाम उनके द्वारा रचे गए कई अमूल्य ग्रंथ हैं.


सबसे मशहूर अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोश लिखने वाले फादर कामिल बुल्के ही हैं. 30 सालों की हिन्दी साधना का जीवंत दस्तावेज उनका शब्दकोश माना जाता है. इसके अलावा उन्होंने रामकथा : उत्पत्ति और विकास, 1949 में, हिंदी-अंग्रेजी लघुकोश 1955 में, मुक्तिदाता 1972 में नया विधान 1977 में और नीलपक्षी 1978 में लिखी.


तुलसीदास ने किया था प्रभावित


फादर कामिल बुल्के को सर्वाधिक तुलसीदास ने प्रभावित किया था. उनका ये मानना था कि तुलसी हिन्दी से सबसे महान कवि हैं. तुलसीदास की रचनाओं को समझने के लिए उन्होंने अवधी और ब्रज तक सीखी. उन्होंने रामकथा और तुलसीदास और मानस-कौमुदी जैसी रचनाएं तुलसीदास के योगदान पर ही लिखी थीं. फादर कामिल बुल्के का निधन 17 अगस्त 1982 में गैंगरीन के कारण दिल्ली के एम्स में हो गया.