Supreme Court: क्या यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराध का मुकदमा समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार
Supreme Court :नाबालिग छात्रा से अश्लील हरकत करने के आरोपी शिक्षक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को समझौते के आधार पर रद्द किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग का यौन शोषण समाज के प्रति अपराध है
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नाबालिग का यौन शोषण समाज के प्रति अपराध है. ऐसे में यह देखना होगा कि क्या इसका मुकदमा सिर्फ दोनों पक्षों में समझौते के आधार पर रद्द किया जा सकता है. कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर विस्तृत सुनवाई की बात कही है. इस मामले में हाई कोर्ट ने अनुसूचित जाति की नाबालिग छात्रा से अश्लील हरकत करने के आरोपी शिक्षक के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त कर दिया था.
सवाई माधोपुर के सरकारी स्कूल के एक शिक्षक विमल कुमार गुप्ता पर इस साल 6 जनवरी को 11वीं कक्षा की एक छात्रा ने अश्लील हरकत का आरोप लगाया था. इसके बाद उसने पिता के साथ जाकर सदर थाना, गंगापुर सिटी में आईपीसी, पॉक्सो एक्ट और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करवाई. छात्रा ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने भी यही बयान दिया. लेकिन पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया.
आरोपी ने पीड़ित लड़की और परिवार के साथ समझौता लिखवाया
घटना के 25 दिन बाद आरोपी शिक्षक ने 500 रुपये के स्टांप पेपर पर पीड़ित लड़की और उसके परिवार के साथ समझौता लिखवा लिया. इसमें लिखा गया था कि पुलिस को शिकायत भ्रम में आकर दी गई थी. शिकायत के लिए गांववालों ने उसे बहकाया था. अब शिकायतकर्ता पक्ष कोई कार्रवाई नहीं चाहता. आरोपी ने इस समझौते को आधार बनाते हुए हाई कोर्ट में एफआईआर रद्द करने के लिए याचिका दाखिल की. 4 फरवरी 2022 को हाई कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मिली शक्ति के आधार पर एफआईआर रद्द कर दी. हाई कोर्ट ने सिर्फ यही कहा कि याचिकाकर्ता लीगल सर्विस अथॉरिटी के पास 20 हज़ार रुपये की रकम जमा करवा दे.
जजों ने जनवरी में मामले पर सुनवाई की बात कही
इसके खिलाफ गंगापुर सिटी के रहने वाले एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. जस्टिस अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने मामले की संक्षिप्त सुनवाई के दौरान माना कि आपराधिक मामले में किसी तीसरे पक्ष की याचिका को अनुच्छेद 32 की रिट याचिका के तहत सुनना तकनीकी रूप से सही नहीं होगा. लेकिन जजों ने कहा कि मामले के महत्व को देखते हुए वह इसे अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका (स्पेशल लीव पेटिशन) में तब्दील कर सुनवाई करेंगे. जजों ने जनवरी में मामले पर सुनवाई की बात कही है.
समझौता से अपराध खत्म कैसे खत्म कर सकते
जस्टिस रस्तोगी ने कहा, "संगीन अपराध को समाज के प्रति अपराध माना जाता है. 2 पक्ष बंद कमरे में बैठ कर समझौता कर मुकदमा कैसे खत्म कर सकते हैं?" इससे पहले 2012 में 'ज्ञान सिंह बनाम पंजाब सरकार' मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुका है कि संगीन अपराध का मुकदमा समझौते के आधार पर खत्म नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सीआरपीसी 482 के तहत हाई कोर्ट को एफआईआर रद्द करने की शक्ति है. लेकिन शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच समझौते को आधार बना कर इसका इस्तेमाल गंभीर मामलों में नहीं हो सकता.