नई दिल्ली: देश में इस वक्त नागरिकता संशोधन बिल पर बवाल मचा हुआ है. कई विपक्षी पार्टियां जहां इस बिल को संविधान के विरुद्ध बता कर इसका विरोध कर रही है तो वहीं सरकार इसे लोकसभा में पास करवाने के बाद आज राज्यसभा में पेश करेगी. विपक्ष का कहना है कि सरकार इस बिल के जरिए NRC लिस्ट में बाहर रहे हिन्दुओं के लिए नागरिकता का रास्ता खोल रही है.


पहले बीजेपी नेताओं का एनआरसी को पूरी तरह खारिज करना और अब नागरिकता संशोधन बिल को सदन से पारित करवाने के प्रयास को पार्टी के हिंदू वोट बैंक की राजनीति से ही जोड़कर देखा जा रहा है. पूर्वोत्तर राज्यों के स्वदेशी लोगों का एक बड़ा वर्ग इस बात से डरा हुआ है कि नागरिकता बिल के पारित हो जाने से जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी उनसे उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति ख़तरे में पड़ जाएगी.


बता दें कि अगर लोकसभा के बाद आज राज्यसभा में भी यह बिल पास हो जाता है तो इस संशोधित बिल के प्रावधान के मुताबिक जिन पांच लाख बंगाली हिंदू प्रवासियों को असम में अंतिम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) में जगह नहीं मिल सकी थी वह भी भारतीय नागरिकता का दावा करने में सक्षम होंगे.


राज्यसभा में इस बिल के पेश होने से पहले अब इसको लेकर असम सरकार के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने बयान दिया है. हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि बांग्लादेश से आए पांच लाख हिन्दुओं को नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद नागरिकता दी जाएगी. हेमंत बिस्वा सरमा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा,''इन लोगों को पहले आवेदन करने की आवश्यकता है ... फिर नागरिकता प्रदान करने से पहले उनके आवेदनों का आकलन किया जाएगा. हम उम्मीद करते हैं कि प्रक्रिया पूरी हो जाएगी और 2021 में अगले विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी.''


BJP के सबसे मुखर प्रचारकों में से एक सरमा ने कहा कि 5,04,800 बंगाली हिंदुओं का नाम एनआरसी में नहीं आया. संशोधित कानून के तहत नागरिकता के लिए तीन से चार लाख आवेदन करेंगे. लगभग एक लाख लोग (बंगाली हिंदू) हैं.''


31 अगस्त को प्रकाशित अंतिम एनआरसी से लगभग 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था. जहां नागरिकता संशोधन बिल पांच लाख हिन्दुओं के लिए नागरिकता मिलने का रास्ता खोलेगी तो वहीं NRC से बाहर अन्य 13 लाख लोगों, जिनमें सात लाख मुस्लिम हैं उन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल में अपील करनी पड़ेगी.


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