Minority Status For Hindu: सुप्रीम कोर्ट ने 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 21 मार्च की तारीख तय की है. 17 जनवरी को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने छह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के केंद्र को अपनी राय नहीं देने पर फटकार लगाते हुए कहा कि अगर सुनवाई से पहले राज्यों की ओर से जवाब नहीं आता है, तो अदालत मान लेगी कि उनके पास कहने को कुछ नहीं है.


दरअसल, राज्य की आबादी अरूणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, राजस्थान, तेलंगाना, झारखंड ने उत्तर दाखिल नहीं किया. वहीं, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में राज्य की आबादी के हिसाब से हिंदुओं को भी अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग पर हुई सुनवाई में केंद्र सरकार ने बताया कि 24 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों का जवाब उसे मिला है. हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले में राज्य सरकारें एकमत नहीं हैं. 


किन राज्यों में अल्पसंख्यक हैं हिंदू?


सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिकाओं के कुछ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का हवाला दिया गया है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन राज्यों में हिंदुओं की आबादी अन्य समुदायों की तुलना में कम है, इसके बावजूद उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया गया है. याचिकाओं के अनुसार, लद्दाख में हिंदुओं की आबादी 1 प्रतिशत, मिजोरम में 2.8 प्रतिशत, लक्षद्वीप में 2.8 प्रतिशत, कश्मीर में 4 प्रतिशत, नगालैंड में 8.7 प्रतिशत, मेघालय में 11.5 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 29 प्रतिशत, पंजाब में 38.5 प्रतिशत और मणिपुर में 41.3 प्रतिशत है. 


भारत में कौन हैं अल्पसंख्यक?


टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013 में केंद्र सरकार ने कहा कि संविधान में अल्पसंख्यक जैसा कोई शब्द नहीं है, लेकिन कुछ अनुच्छेदों में इसका जिक्र है.  राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत मुस्लिम, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया गया था. 2014 में केंद्र सरकार ने जैन समुदाय को भी अल्पसंख्यक के तौर पर पहचानने के लिए अधिसूचना जारी की थी.


केंद्र ने राज्य सरकारों के पाले में डाली गेंद


इस मामले की सुनवाई के दौरान पहले भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है, वहां की सरकारें उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट के टीएमपाई फाउंडेशन मामले पर दिए गए फैसले के तहत केंद्र सरकार ने ये भी कहा है कि इस तरह की स्थिति में अल्पसंख्यक हिंदू ऐसे स्थानों पर अपने संस्थान स्थापित और संचालित कर सकते हैं. केंद्र ने 2016 में महाराष्ट्र में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने और कर्नाटक ने उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी, गुजराती को अल्पसंख्यक भाषाओं के रूप में अधिसूचित करने का भी जिक्र किया था. 


इसके बाद केंद्र सरकार ने एक अन्य हलफनामे में कहा कि बिना किसी ठोस वजह के केंद्र सरकार की ओर से किसी को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने पर देश में कई तरह की दुश्वारियां पैदा हो सकती हैं. बता दें कि 2002 के टीएमपाई फाउंडेशन मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिये भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों का निर्धारण 'राज्य' की ओर से होना चाहिए. 


सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी थी बड़ी लकीर


बीते साल इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह न्याय का उपहास होगा, अगर मिजोरम और नागालैंड में बहुसंख्यक ईसाइयों को अल्पसंख्यक या पंजाब में सिखों को अल्पसंख्यक का दर्जा मिले. जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि इस तरह के किसी भी समुदाय को धार्मिक या भाषायी अल्पसंख्यक समुदाय माना जाएगा. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक दर्जा बिना किसी ठोस उदाहरण पेश किए नहीं दिया जा सकता है. याचिकाकर्ताओं को साबित करना होगा कि किसी राज्य में हिंदू अल्पसंख्यक हैं और मांगने के बावजूद उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया गया है.


क्या हिंदुओं को मिल सकता है अल्पसंख्यक दर्जा?


इस मामले में एक तरह से गेंद पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के पाले में ही डाल दी गई है. आसान शब्दों में कहें, तो इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करना होगा. इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट केंद्र या राज्य सरकारों को हिंदुओं को राज्य में आबादी के हिसाब से अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए आदेशित कर सकता है या फिर ऐसे नीतिगत फैसलों को उनके विवेक पर छोड़ने का फैसला ले सकता है.


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