नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को निर्देश दिया कि वह किसी समुदाय के राष्ट्रीय औसत के बजाय राज्य में उसकी आबादी के आधार पर 'अल्पसंख्यक' शब्द परिभाषित करने के लिये दिशा-निर्देश बनाने की मांग वाली याचिका पर तीन महीने के अंदर फैसला करे. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय से कहा कि वह आयोग में फिर से अपना प्रतिवेदन दाखिल करें और आयोग सोमवार से तीन महीने के भीतर इस पर निर्णय लेगा.


कोर्ट ने पूछा, 'जिन राज्यों में संख्या के लिहाज से हिंदू कम हैं, क्या उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलनेवाले सरकारी फायदे दिए जा सकते हैं? क्या राज्य विशेष आधार पर अल्पसंख्यक का दर्जा केंद्रीय स्तर से अलग तय किया जा सकता है.''


पीठ ने कहा, ''वर्तमान रिट याचिका को विचारार्थ स्वीकार करने के बजाय, हमारा मानना है कि इस समय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से याचिकाकर्ता के 17 नवंबर 2017 के प्रतिवेदन पर विचार करने और उचित आदेश पारित करने के लिए कहा जाना चाहिए.''


उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि 'अल्पसंख्यक' शब्द को नये सिरे से परिभाषित करने और देश में समुदाय की आबादी के आंकड़े की जगह राज्य में एक समुदाय की आबादी के संदर्भ में इस पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है.


याचिका के अनुसार राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार हिंदू बहुमत में हैं परंतु पूर्वोत्तर राज्यों के साथ जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में वे अल्पसंख्यक हैं. इसके बावजूद इन राज्यों में हिंदू समुदाय के सदस्यों को अल्पसंख्यक श्रेणी के लाभों से वंचित रखा जा रहा है.


सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर, 2017 को सात राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के लिये दायर याचिका पर विचार से मना कर दिया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा था कि उसे इस बारे में आयोग से संपर्क करना चाहिए.


याचिका में कहा गया था कि 2011 की जनगणना के अनुसार लक्षद्वीप, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, जम्मू कश्मीर, अरूणाचल प्रदेश,मणिपुर और पंजाब में हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यक है.


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