समाजवादी पार्टी के नेता और रामपुर सदर से 10 बार के विधायक, आजम खान को साल 2019 के हेट स्पीच के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई है. कोर्ट के इस फैसले से जहां एक तरफ हेट स्पीच का मामला अब एक बार फिर चर्चा में आ गया है. वहीं दूसरी तरफ सपा के दिग्गज नेता के विधानसभा की सदस्यता तक जाने का खतरा हो गया है.
लेकिन ये पहली बार नहीं है जब दोषी करार दिए जाने के बाद किसी विधायक की कुर्सी गई हो. आजम खान के अलावा सपा और बीजेपी के कई विधायकों की पहले भी दोषी करार दिए जाने के बाद कुर्सी जा चुकी है. वहीं यूपी के कई ऐसे विधायक हैं जिनके खिलाफ आज भी मुकदमे चल रहे हैं.
51 प्रतिशत विधायक पर दर्ज हैं आपराधिक मामले
एसोसिएशन फॉर डेमोकेट्रिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा जारी एक विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार त्तर प्रदेश के 403 नवनिर्वाचित विधायकों में से 205 (करीब 51 फीसदी) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
इनमें से 143 (36 फीसदी) विधायकों ने अपने हलफनामे में घोषणाएं की हैं. वहीं सरकार में शामिल 158 यानी 39 प्रतिशत जीतने वाले उम्मीदवारों ने गंभीर आपराधिक मामले घोषित किए हैं. इन मामलों में हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि से संबंधित मामले शामिल हैं.
इसी रिपोर्ट के अनुसार यूपी में विजयी उम्मीदवार हैं बीजेपी के 255 विजयी उम्मीदवार में से 44 फीसदी यानी 111 आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं. समाजवादी पार्टी के 111 विजयी उम्मीदवारों में से 71 दागी पृष्ठभूमि वाले हैं. वहीं रालोद के 8 विजयी उम्मीदवारों में से 7 आपराधिक पृष्ठभूमि वाले हैं.
वहीं विजयी उम्मीदवारों में से चुनाव में जीत हासिल करने वाले 5 विधायकों पर हत्या का केस चल रहा है. 29 विधायकों पर मर्डर के प्रयास का केस दर्ज है. बीजेपी से विजयी एक उम्मीदवार पर दुष्कर्म का केस दर्ज है और 6 विधायकों के खिलाफ हिंसा का मामला दर्ज है.
कई सालों चल रहे पुराने मुकदमे
योगी सरकार ने शामिल कई सदस्य ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं, इन मंत्रियों में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता उर्फ नंदी, धर्मपाल सिंह, राकेश सचान, अनिल राजभर, दयाशंकर सिंह, योगेन्द्र उपाध्याय, भूपेंद्र चौधरी, संजय निषाद तथा स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री कपिल देव अग्रवाल, गिरीश चंद्र यादव, रविंद्र जायसवाल और राज्यमंत्री दिनेश खटीक,सुरेश राही, मयंकेश्वर शरण सिंह, सतीश चंद्र शर्मा, ब्रजेश सिंह का भी नाम है. इसके दो दर्जन से ज्यादा ऐसे विधायक हैं के जिनके खिलाफ कई सालों पुराने मुकदमे चल रहे हैं.
इन विधायकों की जा चुकी है कुर्सी
अशोक कुमार सिंह चंदेल: हमीरपुर जिले में करीब 40 सालों तक राजनीति करने वाले पूर्व सांसद अशोक सिंह चंदेल वर्तमान में आगरा की जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. उन्हें हमीरपुर में सामूहिक हत्याकांड के केस में ये सजा सुनाई गई थी. जब उन्हें ये सजा सुनाई गई थी तब वह बीजेपी के टिकट पर हमीरपुर से विधायक थे.
उत्तर प्रदेश में राजनीति और वर्चस्व की जंग में कई लोगों की जान गई और समय समय पर जानें जाती भी रहती है. इसी वर्चस्व की लड़ाई में हमीरपुर का एक सामूहिक हत्याकांड भी शामिल है, जिसमें पांच लोगों को भरे बाजार गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. यह हत्याकांड 26 जनवरी 1997 में हुआ था. तब बीजेपी नेता राजीव शुक्ला के सगे भाई समेत पांच लोगों की हत्या हुई थी. इस सजा के एलान के बाद जून 2019 में उनकी विधायक की कुर्सी चली गई थी.
कुलदीप सिंह सेंगर: उन्नाव में नाबालिग से रेप के मामले में कुलदीप सिंह सेंगर को भाजपा से निष्कासित किया जा चुका है. दरअसल, 2017 में नाबालिग से दुष्कर्म के एक मामले में 20 दिसंबर 2019 को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. सजा के ऐलान के बाद ही उनकी विधायक की कुर्सी चली गई थी. तब वे बीजेपी से बांगरमऊ (उन्नाव) के विधायक थे.
इंद्र प्रताप तिवारी: इंद्र प्रताप तिवारी बीजेपी के टिकट पर अयोध्या स्थित गोसाईगंज सीट से विधायक बने थे. लेकिन 29 साल पुराने केस में 18 अक्टूबर 2021 को कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए पांच साल की सजा सुनाई. उन्हें कोर्ट ने फर्जी मार्कशीट के मामले में दोषी करार दिया था. ये मामले 1992 में साकेत महाविद्यालय का था. जिसमें कहा गया था कि उन्होंने बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा में पास नहीं होने के बावजूद द्वितीय वर्ष में नामांकन कराया लिया.
राकेश सचान: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री राकेश सचान को भी पिछले साल 8 अगस्त को कोर्ट ने सजा सुना दी है. कानपुर कोर्ट ने अवैध असलहे से जुड़े मामले में राकेश सचान दोषी करार देते हुए 1 साल की सजा और 1500 रुपए के आर्थिक दंड से दंडित किया है. हालांकि मंत्री राकेश की विधायकी नहीं गई. वह आने वाले अन्य चुनाव भी लड़ सकते हैं.
मंत्री राकेश सचान के खिलाफ यह मुकदमा 1991 में दर्ज किया गया था. उस वक्त वह छात्र राजनीति कर रहे थे. 1991 में नौबस्ता इलाके में नृपेंद्र सचान की 2 लोगों के साथ हत्या हुई थी उस समय राकेश सचान को नौबस्ता एसएचओ बृजमोहन ने एक राइफल के साथ पकड़ा था. जिसका लाइसेंस उनके पास नहीं था. हालांकि मंत्री ने दावा किया था कि वह राइफल उनकी नहीं बल्कि उनके नाना की थी.
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