Caste Based Census in Bihar: बिहार में हो रही जातीय जनगणना का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इसके खिलाफ एक याचिका दाखिल हुई है. याचिका में कहा गया है कि संविधान के तहत किसी राज्य को जनगणना का अधिकार नहीं है. 1948 के जनगणना अधिनियम के तहत भी राज्य सरकार को जनगणना का अधिकार नहीं दिया गया है. राज्य सरकार का यह कदम सामाजिक वैमनस्य को भी बढ़ावा देने वाला है. इसलिए, इसे रद्द किया जाना चाहिए.
बिहार के नालंदा के रहने वाले अखिलेश कुमार की याचिका में बताया गया है कि यह प्रक्रिया सर्वदलीय बैठक में हुए निर्णय के आधार पर शुरू की गई है. बिना विधानसभा से कानून पास किए इसे करवाया जा रहा है. ऐसे में 6 जून 2022 को जारी अधिसूचना का कोई कानूनी आधार भी नहीं है.
वकील बरुन सिन्हा के जरिए दाखिल इस याचिका में 2017 में अभिराम सिंह मामले में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का भी हवाला दिया गया है. याचिकाकर्ता ने बताया है कि उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जातीय और सांप्रदायिक आधार पर वोट मांगना गलत है. लेकिन बिहार में राजनीतिक कारणों से जातीय आधार पर समाज को बांटने की कोशिश हो रही है.
बिहार में महागठबंधन सरकार ने शनिवार (7 जनवरी) को जातियों का सर्वेक्षण शुरू किया था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि यह कवायद समाज के सभी वर्गों के उत्थान के लिए मददगार साबित होगी. इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.
बिहार सरकार के इस कदम की बीजेपी ने आलोचना की है. बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि नीतीश कुमार अपने स्वार्थ के कारण उपजाति की जनगणना नहीं करवा रहे हैं. नीतीश कुमार से अनुरोध है कि वो झूठ बोलना बंद करें. वह बताएं कि उपजाति का अर्थ क्या है?