Caste Census PIL: कांग्रेस समेत विपक्षी दलों से मांग की जा रही है कि केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना करवानी चाहिए. ये मांग हर बीतते दिन के साथ बढ़ती जा रही है. इस बीच जाति जनगणना का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. देश की शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि कोर्ट केंद्र सरकार को पिछड़े और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों के कल्याण के लिए जातिवार जनगणना कराने का निर्देश दे. 


सुप्रीम कोर्ट के समक्ष ये याचिका ऐसे समय पर पहुंची है, जब खुद बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के एलजेपी (आर) जैसे सहयोगियों ने भी जाति जनगणना की मांग की है. उधर याचिकाकर्ता की तरफ से जाति जनगणना के पांच फायदे भी बताए गए हैं. आईएएनएस के मुताबिक, जनहित याचिका में जनसंख्या के अनुसार कल्याणकारी उपायों को लागू करने के लिए 2024 की जनगणना और सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के लिए डाटा हेतु जल्द से जल्द जनगणना कराने की मांग की गई है. 


जाति जनगणना के पांच फायदे क्या हैं? 


जनहित याचिका में कहा गया है कि सामाजिक-आर्थिक जातिवार जनगणना से वंचित समूहों की पहचान करने, समान संसाधन वितरण सुनिश्चित करने और नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी करने में मदद मिलेगी. ये तो बात हुई जाति जनगणना के तीन फायदों की. इसके अलावा जाति जनगणना के दो और फायदे हैं.


याचिका में बताया गया है कि इसमें पहला पिछड़े और अन्य हाशिए पर पड़े वर्गों का सटीक आंकड़ा सामाजिक न्याय और संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जरूरी है. दूसरा फायदा ये है कि नीति-निर्माण के लिए डाटा आधारित नजरिया अपनाना जरूरी है. सटीक डेटा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों और जनसांख्यिकी को समझने में मदद करता है, जिससे वंचित समुदायों की भलाई करना आसान हो जाता है.


2 सितंबर को होगी जाति जनगणना की याचिका पर सुनवाई


याचिका में कहा गया है कि संविधान का आर्टिकल 340 सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति का आदेश देता है. जनगणना सिर्फ जनसंख्या में हुए बदलाव का ट्रैकर नहीं है, बल्कि देश के लोगों का व्यापक सामाजिक-आर्थिक आंकड़ा भी मुहैया कराता है, जिसका इस्तेमाल नीति-निर्माण, आर्थिक योजना और विभिन्न प्रशासनिक उद्देश्यों में किया जा सकता है. इस याचिका पर 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है. 


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