नई दिल्ली: सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (सीबीआई) में घमासान जारी है. घटनाओं में हर पल हो रहे नाटकीय बदवाल के बीच इसके नंबर एक यानी डायरेक्टर आलोक वर्मा और नंबर दो यानी स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया है. दोनों को छुट्टी पर भेजे जाने पर सरकार का पक्ष रखते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, ''सीबीआई की संस्थागत ईमानदारी और विश्वसनीयता को कायम रखने के लिए इसके निदेशक और विशेष निदेशक को हटाने का फैसला लिया गया.'' सीवीसी ने दोनों शीर्ष अधिकारियों को हटाने की सिफारिश की थी.


वित्त मंत्री ने ये भी कहा, ''एसआईटी की जांच जारी रहने तक अंतरिम व्यवस्था के तौर पर सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा, विशेष निदेशक राकेश अस्थाना छुट्टी पर रहेंगे.'' केंद्र ने यह भी साफ किया अगर अधिकारी निर्दोष होंगे तो उनकी वापसी हो जाएगी. आलोक वर्मा की जगह फिलहाल संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को अंतरिम सीबीआई निदेशक नियुक्त किया गया है.


संस्था में नियुक्ति की प्रक्रिया
सीबीआई में अब तक के सबसे बड़े विवाद के बाद ऐसे सवाल लाज़िमी हैं कि संस्था में नियुक्ति कैसे होती है और यहां नियुक्त अधिकारियों को कैसे हटाया जाता है. आइए आपको बताते हैं कि संस्था में नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है-


दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान संशोधित अधिनियम के तहत एक समिति को सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति का अधिकार मिलता है. इस समिति में निम्नलिखित लोग होते हैं:




  • प्रधानमंत्री- अध्यक्ष

  • विपक्ष के नेता- सदस्य

  • भारत के चीफ जस्टिस या उनके द्वारा सिफारिश किए गए कोई सुप्रीम कोर्ट जज- सदस्य


जब किसी प्रमुख की नियुक्ति की जाती है तो ये समिति जो वर्तमना प्रमुख हैं उनके मत पर भी विचार करती है. इस समिति का गठन लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 के तहत किया गया है. इसके पहले केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पास सीवीसी कानून के तहत इस नियुक्ति के अधिकार थे.


साल 2014 के 25 नवंबर को एनडीए सरकार ने इस चुनाव की प्रक्रिया को बदलने के लिए एक संशोधन बिल पेश किया. इसमें ये प्रस्ताव दिया गया कि महज़ इस वजह से कि पैनल में किसी सदस्य की मौजूदगी नहीं है सीबीआई के निदेशक पद पर की गई नियुक्त को अमान्य नहीं करार दिया जा सकता है. इसके लिए ये भी कहा गया था कि विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी या ऐसे गठबंधन के नेता को पैनल का सदस्य बनाया जाएगा. ये संशोधन पास नहीं हो पाया. आपको बता दें कि सीबाआई निदेशक को हटाने का अधिकार भी इसी समिति के पास होता है.


1997 से पहले सीबीआई निदेशक को सरकार जब चाहे अपनी मर्ज़ी से हटा सकती थी. लेकिन विनीत नारायण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए कम से कम दो साल का कार्यकाल तय कर दिया. इसके पीछे मंशा ये थी कि निदेशक सरकार की पकड़ से स्वतंत्र होकर और हटाए जाने के डर से मुक्त होकर अपना काम कर सके. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि निदेशक का तबादला असाधारण स्थिति में ही किया जा सकता है और इस तबादले की प्रक्रिया में चयन समिति, सीवीसी, होम सेकेरेट्री और सेकेरेट्री (कार्मिक) का होना भी ज़रूरी है.


ग़ौर करने लायक बात ये है कि आलोक वर्मा के मामले में चयन समिति को फैसला नहीं लेने दिया गया. सरकार की अधिसूचना में ये बात बताई गई है कि एम नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया है. इसे कैबिनेट की नियुक्ति समिति का अनुमोदन प्राप्त है. आपको बता दें कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इस समिति के सदस्य होते हैं.


सीबीआई एक परिचय
एक अप्रैल 1963 को सीबीआई बनी और इस पर कई बार आरोप भी लगे. लेकिन इस संस्था ने एक से बढ़कर एक शानदार काम भी किए हैं. हालांकि, 10 मई 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा और 55 साल बाद 2018 में सीबीआई के नंबर-वन और नंबर-टू अफसरों की लड़ाई ने उसपर काला दाग लगा दिया. हालात यहां तक पहुंच गये कि सीबीआई को अपने ही दफ्तर में छापा मारना पड़ा. सीबीआई देश की नंबर एक जांच एजेंसी है लेकिन कुछ ऐसी बातें भी हैं जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं हैं.


सीबीआई में लोगों की काफी कमी है




  • सीबीआई में कुल 7274 पद हैं.

  • इनमें से 1329 पद खाली हैं.

  • इन खाली पदों में स्पेशल और एडिशनल डायरेक्टर के 3 पद हैं, ज्वाइंट डायरेक्टर के 8 पद हैं.

  • इसके अलावा DIG से लेकर कांस्टेबल तक के सैकड़ों पद खाली हैं.


मैन पावर की कमी की वदह से जांच धीमी

  • 31 दिसंबर 2017 तक सीबीआई में कुल 1,365 केस पेंडिग थे.

  • 2016 में सीबीआई में 33.27 फीसद केस लटके ही रहे.

  • 2017 में सीबीआई में 33.10 फीसद केस लटके ही रहे.


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