CBI Vs CBI: आलोक वर्मा हटाए गए, आज राकेश अस्थाना की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में होगी सुनवाई
CBI Vs CBI: आलोक वर्मा को विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ उनके झगड़े के बाद 23 अक्टूबर 2018 की देर रात विवादास्पद सरकारी आदेश के जरिये छुट्टी पर भेज दिया गया था. जिसे वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. अदालत ने बाद में वर्मा को बहाल कर दिया. हालांकि दो दिन बाद ही उन्हें पद से हटा दिया गया.
नई दिल्ली: सीबीआई में करीब तीन महीने तक चली तनातनी के बाद कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की कमेटी ने डायरेक्टर आलोक वर्मा को हटा दिया. उनपर भ्रष्टाचार और काम में लापरवाही बरतने के आरोप लगे हैं. वर्मा का कार्यकाल 31 जनवरी को खत्म होने वाला था. सीबीआई के 55 सालों के इतिहास में इस तरह की कार्रवाई का सामना करने वाले जांच एजेंसी के आलोक वर्मा पहले प्रमुख हैं.
राहुल बोले- पीएम डरे हैं
वर्मा को हटाए जाने के बाद से विपक्षी दल हमलावर है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डरे हैं और इसी वजह से उन्हें निंद नहीं आ रही है. उन्होंने कहा, ‘‘श्री मोदी के दिमाग में अब डर समा गया है. वह सो नहीं सकते. उन्होंने वायुसेना से 30,000 करोड़ रुपये चुराकर अनिल अंबानी को दिये हैं. सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को लगातार दो बार हटाया जाना स्पष्ट रुप से दर्शाता है कि वह अपने ही झूठ में फंस गये हैं. सत्यमेव जयते.’’
Fear is now rampaging through Mr Modi’s mind. He can’t sleep. He stole 30,000Cr from the IAF and gave it to Anil Ambani. Sacking the CBI Chief #AlokVerma twice in a row, clearly shows that he is now a prisoner of his own lies. Satyamev Jayate.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 10, 2019
अस्थाना की याचिका पर सुनवाई आज
इस बीच आज दिल्ली हाई कोर्ट सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना और अन्य की याचिकाओं पर फैसला सुना सकता है. इन लोगों ने रिश्वतखोरी के आरोपों में अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की है.
जस्टिस नजमी वजीरी ने 20 दिसंबर 2018 को दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने कहा था कि अस्थाना के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों में प्राथमिकी दर्ज करते समय सभी अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन किया गया था.
शिकायतकर्ता हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना ने आरोप लगाया था कि उसने एक मामले में राहत पाने के लिये रिश्वत दी थी. सना ने अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार, जबरन वसूली, मनमानापन और गंभीर कदाचार के आरोप लगाए थे. सीबीआई के डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
आलोक वर्मा को मिला ये काम गुरुवार शाम जारी एक सरकारी आदेश में बताया गया कि आलोक वर्मा को केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत दमकल सेवा, नागरिक रक्षा और होमगार्ड महानिदेशक के पद पर तैनात किया गया है. सीबीआई का प्रभार अतिरिक्त निदेशक एम नागेश्वर राव को दिया गया है.
सीवीसी की रिपोर्ट में वर्मा के खिलाफ आठ आरोप लगाए गए थे. यह रिपोर्ट उच्चाधिकार प्राप्त समिति के समक्ष रखी गई. समिति में लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के प्रतिनिधि के रूप में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए के सीकरी भी शामिल थे.
अधिकारियों ने बताया कि 1979 बैच के आईपीएस अधिकारी वर्मा को पद से हटाने का फैसला बहुमत से किया गया. खड़गे ने इस कदम का विरोध किया. समिति की बैठक बुधवार को भी हुई थी जो बेनतीजा रही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सात लोक कल्याण मार्ग स्थित आवास पर शाम साढ़े चार बजे गुरुवार को एकबार फिर से समिति की बैठक बुलाई गई.
बैठक तकरीबन दो घंटे तक चली. खड़गे ने सीवीसी द्वारा वर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका देने की पुरजोर वकालत की. हालांकि, प्रधानमंत्री और जस्टिस सीकरी ने इससे सहमति नहीं जताई और एजेंसी से उन्हें बाहर करने का रास्ता साफ कर दिया.
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस ने कहा, ‘‘आलोक वर्मा को उनका पक्ष रखने का मौका दिये बिना पद से हटाकर प्रधानमंत्री मोदी ने एकबार फिर दिखा दिया है कि वह जांच--चाहे वह स्वतंत्र सीबीआई निदेशक से हो या संसद या जेपीसी के जरिये-- को लेकर काफी भयभीत हैं.’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने चार अक्टूबर 2018 को वर्मा से मुलाकात की थी और राफेल खरीद सौदे में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी. वर्मा को विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के साथ उनके झगड़े के मद्देनजर 23 अक्टूबर 2018 की देर रात विवादास्पद सरकारी आदेश के जरिये छुट्टी पर भेज दिया गया था.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सरकार के आदेश को चुनौती दी थी. शीर्ष अदालत ने मंगलवार को सरकारी आदेश को निरस्त कर दिया था. शीर्ष अदालत ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था, लेकिन उनपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की सीवीसी जांच पूरी होने तक उनके कोई भी बड़ा नीतिगत फैसला करने पर रोक लगा दी थी.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि वर्मा के खिलाफ कोई भी आगे का फैसला उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति एक सप्ताह के भीतर करेगी. यह समिति सीबीआई निदेशक का चयन करती है और उनकी नियुक्ति करती है.
सुप्रीम कोर्ट ने विनीत नारायण मामले में सीबीआई निदेशक का न्यूनतम दो साल का कार्यकाल निर्धारित किया था ताकि किसी भी राजनीतिक हस्तक्षेप से उन्हें बचाया जा सके. लोकपाल अधिनियम के जरिये बाद में सीबीआई निदेशक के चयन की जिम्मेदारी चयन समिति को सौंप दी गई थी.