नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की अवमानना में सीबीआई के पूर्व अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव आज बुरे फंसे. कोर्ट ने उन पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया और दिन की कार्रवाई तक कोर्ट के कोने में बैठे रहने की सज़ा दी. बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस की निगरानी कर रहे जॉइंट डायरेक्टर के ट्रांसफर से नाराज़ कोर्ट ने ये आदेश दिया.


क्या है मामला
पिछले साल 31 अक्टूबर और 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि मुजफ्फरपुर के बालिका आश्रय गृह में लड़कियों के शोषण की जांच कर रही सीबीआई की टीम को न बदला जाए. कोर्ट ने साफ तौर पर ये भी कहा था कि जांच की निगरानी कर रहे जॉइंट डायरेक्टर अरुण कुमार शर्मा को बिना उसकी इजाज़त के न हटाया जाए. लेकिन 18 जनवरी को शर्मा का ट्रांसफर सीआरपीएफ में कर दिया गया. सीबीआई ने न तो सरकार को कोर्ट के आदेश की जानकारी दी, न ट्रांसफर से पहले कोर्ट की इजाज़त ली. इस बात पर नाराज़ कोर्ट ने जनवरी में सीबीआई के अंतरिम निदेशक रहे एम नागेश्वर राव और अभियोजन निदेशक एस बासुरन को पेश होने के लिए कहा.


आज क्या हुआ
नागेश्वर राव और बासुरन कोर्ट की कार्रवाई शुरू होने से पहले हाज़िर हो गए. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने करीब 11 बजे मामले की सुनवाई शुरू की. दोनों अधिकारियों की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने माफीनामा कोर्ट में रखा. उन्होंने कहा कि राव का इरादा कोर्ट की अवमानना का नहीं था. उन्हें कानूनी सलाह मिली थी कि कोर्ट की इजाज़त बाद में भी ली जा सकती है. इस वजह से गलती हो गई. उन्हें माफ कर दिया जाए.


इससे असहमति जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा, "फाइलों से साफ पता चलता है कि अंतरिम निदेशक कोर्ट का आदेश जानते थे. उन्हें ट्रांसफर की मंजूरी देने से पहले कोर्ट को भरोसे में लेना चाहिए था. एक दिन बाद ट्रांसफर होता तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ता. बाद में मंजूरी का क्या मतलब है? ये बाद भी 2 हफ्ते बाद आया."


इस पर एटॉर्नी जनरल ने राव के 30 साल के बेदाग करियर का हवाला दिया. यहां तक कहा कि गलती करना इंसान के लिए स्वभाविक है. क्षमा करना महानता. कोर्ट दोनों अधिकारियों को माफ कर दे. लेकिन चीफ जस्टिस ने आगे कहा, "कोर्ट का सम्मान बनाए रखना मेरी ज़िम्मेदारी है. मैंने 20 साल जज रहते कभी किसी को अवमानना की सज़ा नहीं दी. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हो सकता.''


राव से पूछी सज़ा
गहरे नीले सूट और टाई में एटॉर्नी जनरल के पीछे हाथ बांधे खड़े नागेश्वर राव से चीफ जस्टिस ने कहा, "हम आपका माफीनामा स्वीकार नहीं कर रहे. गलत कानूनी सलाह की दलील में दम नहीं है. हम आपको 30 दिन के लिए भी जेल भेज सकते हैं. अब आप माफी मांगने की बजाय ये बताइए कि सज़ा क्या दी जाए. हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि कानून में यही प्रक्रिया है."


इस सवाल पर राव सन्न रह गए. एटॉर्नी जनरल ने एक बार माफी की गुहार की. चीफ जस्टिस ने इसे नामंज़ूर करते हुए आदेश लिखवाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा, "इस मामले में साफ तौर पर कोर्ट के आदेश की अवमानना हुई है. हम नागेश्वर राव और बासुरन पर 1-1 लाख रुपये का जुर्माना लगाते हैं. दोनों को कोर्ट की आज की कार्रवाई खत्म होने तक के लिए सज़ा भी दी जाती है. दोनों एक कोने में जाकर बैठ जाएं. आज की कार्रवाई खत्म होने तक वहीं बैठे रहें."


4 घंटा बैठे रहे राव
करीब 11.50 पर कोर्ट ने आदेश पूरा किया. इसके बाद आगे खड़े दोनों अधिकारी पीछे मुड़े और विशालकाय कोर्ट रूम की सबसे पिछली लाइन में पहुंच गए. दोनों आदेश के मुताबिक कोने की कुर्सियों पर बैठ गए. कोर्ट में दूसरे मामलों की सुनवाई चलती रही, दोनों गुमसुम बैठे रहे. 1 बजे जज लंच के लिए उठे. कोर्ट लगभग खाली हो गया, लेकिन दोनों अपनी जगह पर बैठे रहे. लंच के दौरान थोड़ी थोड़ी देर में कुछ वकील उनके पास जाते रहे. राव चेहरे पर फीकी मुस्कान के साथ उनसे बात करते.


दोपहर 2 बजे के बाद जज दोबारा बैठे. बीच मे एटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल ने एक बार फिर दोनों को माफी दिलाने की कोशिश की. लेकिन चीफ जस्टिस ने मना कर दिया.


4 बजे तक कोर्ट की कार्रवाई चली. जजों के उठने के बाद भी दोनों अधिकारी अपनी जगह पर बैठे रहे. उनके वकीलों ने कोर्ट स्टाफ से आग्रह किया कि एक बार चीफ जस्टिस से मंजूरी ले लें. 4.15 पर मंजूरी मिलने के बाद दोनों कोर्ट से निकले. इसके बाद करीब 20 मिनट एटॉर्नी जनरल के साथ उनके कमरे में चर्चा की. फिर बिना किसी से बात किये वहां से निकल गए. दोनों को हफ्ते भर के भीतर 1 लाख रुपए का जुर्माना भी भरना होगा.


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