नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI में चल रही खींचतान पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई अधूरी रही. गुरुवार को करीब 4 घंटे चली सुनवाई को कोर्ट ने इस बात तक सीमित रखा कि CBI निदेशक आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने का आदेश कानूनन वैध है या नहीं. कोर्ट बुधवार को ये तय करेगा कि वर्मा के उपर लगे आरोपों पर सीवीसी की रिपोर्ट पर भी सुनवाई की जाए या नहीं.


क्या है मामला?


सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे. जिसके बाद सरकार ने दोनों को छुट्टी पर भेज दिया था. इस मसले को अलग-अलग याचिकाओं के जरिए कोर्ट में रखा गया है.


आज क्या हुआ?


आलोक वर्मा के वकील फली नरीमन ने दलीलों की शुरुआत की. सबसे पहले उन्होंने CBI की छवि को नुकसान पहुंचाने वाली बातें मीडिया में लीक होने पर कोर्ट की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि 2012 में आए संविधान पीठ के आदेश के मुताबिक कोर्ट चाहे तो लंबित मुकदमों की मीडिया रिपोर्टिंग कुछ देर रोक सकता है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मसले को टालते हुए नरीमन से मुख्य मुद्दे पर जिरह करने को कहा.


इसके बाद नरीमन ने CBI की स्वायत्तता पर दलीलें रखनी शुरू की. उन्होंने कहा कि सरकार या CVC इस तरह CBI निदेशक को छुट्टी पर नहीं भेज सकते. इस तरह का कोई भी फैसला निदेशक की नियुक्ति करने वाली कमिटी की मंज़ूरी के बिना नहीं लिया जा सकता. नरीमन ने आगे कहा, "निदेशक का 2 साल का तय कार्यकाल होता है. उससे पहले उसका ट्रांसफर भी नहीं किया जा सकता. लेकिन यहां बिना नियुक्ति पैनल को जानकारी दिए निदेशक को छुट्टी पर भेज दिया गया. मकसद उन्हें काम करने से रोकना था."


कोर्ट का अहम सवाल


नरीमन की दलीलों के दौरान 3 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस के एम जोसफ ने सवाल किया, "क्या आप ये कहना चाहते हैं कि अगर CBI निदेशक रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा जाए, तब भी उसे हटाने से पहले क्या कमिटी से पूछना होगा?"


आलोक वर्मा के वकील की जिरह खत्म होने के बाद एनजीओ कॉमन कॉज़ के वकील दुष्यंत दवे, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के वकील कपिल सिब्बल और ट्रांसफर किये गए CBI अधिकारियों के वकील राजीव धवन ने दलीलें रखीं. सबने CBI निदेशक को छुट्टी पर भेजने के आदेश को अवैध बताया.


फली नरीमन से कोर्ट के सवाल का जवाब कपिल सिब्बल ने दिया. उन्होंने कहा, "चाहे CBI निदेशक रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया तब भी बिना चयन समिति की मंजूरी के उसे नहीं हटाया जा सकता. स्थिति कुछ भी हो, चयन समिति की मंजूरी ज़रूरी है. संवेदनशील पदों को संरक्षण की व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि वो बिना दबाव के काम कर सकें. CVC, मुख्य चुनाव आयुक्त, CAG सबको संरक्षण है और ये सही है."


सिब्बल ने ये भी कहा कि CVC की ज़िम्मेदारी सिर्फ उन मामलों की निगरानी तक सीमित है जो भ्रष्टाचार निरोधक कानून से जुड़े हैं. CBI के हर काम में CVC का दखल नहीं हो सकता. विनीत नारायण फैसले में खुद सुप्रीम कोर्ट ने CBI की स्वायत्तता को ज़रूरी बताया है.


एटॉर्नी जनरल का जवाब


केंद्र सरकार की तरफ से जवाब देते हुए एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि CVC का एक अहम काम CBI पर निगरानी रखना है. ये कहना गलत है कि CVC सिर्फ भ्रष्टाचार से जुड़ी जांच की निगरानी रखता है. CVC आलोक वर्मा के खिलाफ मिली गंभीर शिकायत पर जांच कर रहा है. इसलिए, उनसे ऑफिस न आने को कहा गया. सरकार से ऐसी सिफारिश करने का CVC को अधिकार है.


वेणुगोपाल ने मामले को अहम मोड़ देते हुए कहा कि चयन समिति का काम सिर्फ निदेशक के लिए सौंपे गए 3 नामों में से 1 को चुनना है. नियुक्ति का अधिकार सरकार का है. इसलिए सरकार ज़रूरत पड़ने पर दखल दे सकती है. निदेशक का चयन करने के बाद चयन समिति की भूमिका खत्म हो जाती है. ऐसे में उससे सहमति लेकर कार्रवाई करने की कोई ज़रूरत नहीं है.


इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई बुधवार, 5 दिसंबर के लिए स्थगित कर दी. अगर उस दिन कोर्ट CBI निदेशक के बारे में CVC की रिपोर्ट को भी सुनवाई का हिस्सा बनाने का फैसला लेता है तो ये मामला लंबा खिंच सकता है.