जहां एक तरफ एलएसी पर विवाद खत्म करने के लिए भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की आठवें दौर की बैठक जारी है वहीं सीडीएल जनरल बिपिन रावत ने ये कहकर सनसनी फैला दी है कि दोनों देशों के बीच में विवाद किसी 'बड़े संघर्ष' में बदल सकता है. सीडीएस ने साफ कर दिया है कि चीन की एलएसी को भारत की तरफ खिसकाने की कोशिशों को किसी कीमत पर कामयाब नहीं होने दिया जाएगा.


राजधानी दिल्ली में एक बेविनार को संबोधित करते हुए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल रावत ने दो टूक शब्दों में कहा कि एलएसी पर 'हालात तनावपूर्ण' बने हुए हैं और चीन के साथ "युद्ध की संभावनाएं तो नहीं दिखाई पड़ती हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि सीमा-विवाद, घुसपैठ और बिना उकसावे के (चीन की) सैन्य-कारवाई कभी भी किसी बड़े कन्फिलक्ट (हिंसक संघर्ष) में तब्दील हो सकती है. "


लेकिन जनरल रावत के मुताबिक भारत की कड़े जवाब के चलते चीन को अपने "मिसएडवेंचर का खामियाजा भुगतना पड़ा है." सीडीएस‌ का इशारा मई के महीने में एलएसी पर शुरूआती घुसपैठ और गलवान घाटी में चीनी सेना को हुए बड़े नुकसान और पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण की कैलाश रेंज (रेचिन ला, मुखपरी, गुरंग और मगर हिल) पर भारत के अधिकार को लेकर थी.


नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) के डायमंड जुबली वर्ष के मौके पर आयोजित दो दिवसीय वेबिनार के आखिरी दिन सीडीएस विपिन रावत ने अपनी बात रखी है. सीडीएस ने बोलते हुए कहा कि चीन को एलएसी पर यथा-स्थिति स्थापित करनी होगी यानि अप्रैल महीने के आखिर में एलएसी पर जो स्थिति थी वही फिर से कायम करनी होगी और एलएसी को शिफ्ट नहीं करने दिया जाएगा.


जनरल रावत ने पड़ोस में परमाणु शक्ति पर बोलते हुए कहा कि चीन के साथ सीमा विवाद, चीन का पाकिस्तान को समर्थन और बीआरआई ('बेल्ट‌ एंड रोड इनिशिएटिव') के चलते भारत और चीन के बीच में हमेशा प्रतिस्पर्धा चलती रहेगी.

सीडीएस के मुताबिक, कोरोना महामारी के चलते चीन कई अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ी है जिसके चलते चीन की आंतरिक स्थिति तो कमजोर है लेकिन देश से बाहर वो आक्रमक नीति अपनाए हुए है, जैसाकि एलएसी, साउथ चायना सी, ताइवान और ईस्ट चायना सी में देखने को मिल रहा है. यही वजह है कि आने वाले समय में चीन पश्चिमी देशों से होड़ की चलते कमजोर देशों पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश करेगा.


सीडीएस ने पाकिस्तान का जिक्र करते हुए कहा कि सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक से पाकिस्तान को कड़ऐ संदेश जा चुका है कि परमाणु हथियारों की आड़ में आतंकवाद की उसकी नीतियों का कोई जवाब नहीं दिया जाएगा.


आपको बता दें कि एनडीसी के वेबिनार को संबोधित करते हुए गुरूवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीन का नाम लिए बगैर कहा था कि "चाहे जितना बड़ा बलिदान देना पड़े लेकिन देश की अंखडता और संप्रुभता पर आंच नहीं आने देंगे."


इस बीच पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर पिछले छह महीने से चल रहा तनाव खत्म करने के लिए आज भारत और चीन के कोर कमांडर स्तर की आठवीं दौर की मीटिंग सुबह 9.30 पर चुशुल में शुरू हुई. ये मीटिंग भारत की तरफ चुशूल में होना तय हुआ है.


भारत की तरफ से पहली बार लेह स्थित 14वीं कोर के ने कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे. पिछली दो मीटिंग में मेनन मौजूद जरूर रहे थे लेकिन नेतृत्व लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया था. हरिंदर सिंह अब नई पोस्टिंग पर आईएमए देहरादून चले गए हैं.


पिछली मीटिंग में चीन ने एलएसी पर तनाव खत्म करने के कई प्रपोज़ल दिए थे. जिनमें दोनों देशों के ‌सैनिकों द्वारा फिंगर 4 को खाली करने से लेकर एलएसी से टैंक और तोप हटाना था. लेकिन भारत ने चीन के अधिकतर प्रस्तावों को मानने से इंकार कर दिया था. भारत का साफ तौर से कहना है कि डिसइंगेजमेंट और डि-एस्कलेशन पूर्वी लद्दाख से सटी पूरी 826 किलोमीटर लंबी एलएसी पर होना चाहिएं ना कि कुछ इलाकों में (जैसाकि चीन की पीएलए सेना चाहती है).