'वर्दी वाला गुंडा' उपन्यास के लेखक वेदप्रकाश शर्मा नहीं रहे
नई दिल्ली: वेदप्रकाश शर्मा उपन्यास की दुनिया का एक लोकप्रिय नाम हैं. एक दौर था जब वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास दुकानों पर लाइन लग कर खरीदे जाते थे. वेद प्रकाश का 'वर्दी वाला गुंडा' उपन्यास ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. वेदप्रकाश शर्मा के कई उपन्यासों पर फिल्में भी बन चुकी हैं.
वेद प्रकाश ने लिखना उस दौर में शुरू किया था जब वो मुफलिसी के दिन गुजार रहे थे. वेदप्रकाश को स्कूल के समय में उपन्यास पढ़ने का शौक था लेकिन धीरे धीरे उन्होंने लिखना शुरू कर दिया. लिखने का ये शौक कब जूनून में बदल गया पता ही नहीं चला. यूं तो वेदप्रकाश शर्मा ने 250 से ज्यादा उपन्यास लिखे हैं. उनका 100वां उपन्यास कैदी नंबर 100 था. पहला उपन्यास 1973 में आया जिसका नाम 'दहकता शहर था' आखिरी उपन्यास 'छठी उंगुली' था जो 6 महीने पहले ही आया है. लेकिन 'वर्दी वाला गुंडा' उपन्यास ने उनको उपन्यास जगत में हिट कर दिया. बताया जाता है कि इस उपन्यास की अब तक आठ करोड़ के आस पास प्रतियां बिक चुकी हैं. 'वर्दी वाला गुंडा' हिट होने के बाद तो जैसे दुकानों को उनके उपन्यास का इंतजार रहने लगा. वेदप्रकाश शर्मा के उपन्यास पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं. 1985 में उनके उपन्यास 'बहू मांगे इन्साफ' पर 'बहू की आवाज' फिल्म बनी थी जबकि 1999 उनके 'लल्लू' उपन्यास पर 'सबसे बड़ा खिलाड़ी' बनी.
वेदप्रकाश शर्मा की तीन बेटी और एक बेटा शगुन शर्मा हैं. शगुन भी अपने पिता की तरह लेखन से जुड़े हैं. शगुन का कहना है कि उनके पिता का सपना था कि उनके उपन्यास इंग्लिश में भी पब्लिश हो. वेदप्रकाश शर्मा के फैन्स की लाइन बहुत लंबी है. एक समय था जब लोग उपन्यास पढ़ने के शौकीन हुआ करते थे लेकिन अब इंटरनेट के ज़माने में ये शौक कुछ कम हुआ है. उनके उपन्यास समाज से ही जुड़े हुए होते थे. समाज से जुड़े मुद्दे उनके उपन्यास में अक्सर झलकते थे. यूं कहिए मानवीय संवेदनाओं से उनके उपन्यास जुड़े रहते थे. वेदप्रकाश शर्मा पिछले एक साल से लंग कैंसर से पीड़ित थे. पिछले एक साल से इस बीमारी से जूझते हुए वेदप्रकाश शर्मा का बीती रात 11.30 पर देहांत हो गया. बिमारी के दौरान भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा. उनका उपन्यास 'छठी उंगुली' उन्होंने बिमारी के दौरान ही लिखा था.