साल 1962 में भारत-चीन लड़ाई के बाद बहुत सारे तिब्बती शरणार्थी लेह से करीब 180km दूर ठीक एलएसी पर दुन्गती गांव में आकर बस गए. लद्दाख के NYOMA-DEMCHOK सरहद पर करीब 300 लोगों के इस गांव में आज तक बिजली नहीं आई थी. इसलिए ग्लोबल हिमालयन एक्सपीडिशन (जीएचई) नाम के एक नीजी संगठन ने यहां बिजली पहुंचाने का बीड़ा उठाया.


करीब एक हफ्ते के कड़े परिश्रम के बाद गांव में एक सोलर नेनो ग्रिड की मदद से गांव के 63 में से 53 घरों को बिजली से जोड़ दिया गया. दुन्गति गांव के हर घर में एक सोलर पन्नेल, तीन बल्ब, दो एलईडी लाइट और मोबाइल फोन चार्ज करने के लिए यूएसबी पोर्ट लगाये गए. इसके साथ-साथ गांव में सड़को को रोशन करने के लिए 10 स्ट्रीट लाइट भी लगा दी गई.


माइनस 25 डिग्री के तापमान में किया गया काम


ग्लोबल हिमालयन एक्सपीडिशन (जीएचई) के इंजिनियर के अनुसार यह सब काम माइनस 25 डिग्री के तापमान में किया गया जिस में संगठन से जुड़े पुर्ष और महिला कर्मियों ने मिलकर काम को अंजाम दिया. इस दूर दराज़ के गांव को सोलर बिजली से रोशन किया. जीएचई के साथ काम करने वाली अंग्मो के अनुसार इस साल अभी तक दो गांव में उनका संगठन बिजली देने में सफल रहा है लेकिन इस गांव में काम करना उनके लिए चुनौती थी. कड़ाके की ठंड में काम करना मुश्किल था लेकिन बिजली आने के बाद लोगों के चेहरों की खुशी देख कर उनको संतुस्थी मिली.


इस से पहले गांव में ज्यादातर घरों में दिया जला कर रोशनी होती थी और कुछ घरों को डीजल जेनरेटर के जरिये बिजली मिलती थी. लेकिन सर्दियों के आते ही कड़ाके की ठंड के चलते जेनरेटर का डीजल जम जाता था और पूरी सर्दिया लोगों को घुप अंधेरे में गुजारनी पड़ती थी. दुन्गति गांव के ज्यादातर लोग पश्मीना उन का कारोबार करते हैं और पश्मीना बकरी का पालन करते हैं. इस दुर्गम श्रेत्र में रहते हुए ही यह बकरी अच्छी क्वालिटी का पश्मीना उन देती है. लेकिन सरकार और लोगों की नजर से दूर होने के कारण यहां के लोगों के पास विकास के काम नहीं हो पाए है.


जीएचई की मदद से आई बिजली


गांव के रहने वाले 55 साल के ताशी के अनुसार पिछले 50 सालों से वह इस गांव में रहते आये है और बॉर्डर पर होने कि वजह से उनके पास कोई सुख सुविधा नहीं आई है. बिजली ना होने के कारण ना तो वह टीवी देख सकते हैं और ना ही कोई और काम शाम के बाद कर सकते हैं. लेकिन अब जीएचई की मदद से आई बिजली के कारण उनकी आखे खुल कर रोशन हो गई.


जीएचई के मुख्य परिचालन अधिकारी, जयदीप बंसल के अनुसार उनके संगठन ने पिछले सात-आठ सालो में पचास से जायदा गांव में इस तरह सोलर पॉवर की मदद से बिजली पहुंचाई है. लेकिन यह पहली बार है कि सामरिक दृष्टि से  किसी गांव में बिजली लगायी गई. अब इस गांव के बच्चे भी रात भर पढ़ाई कर सकेंगे और गांव को कभी भी खाली नहीं करना पड़ेगा.


इस बयान के पीछे की सचाई यह है कि सुविधाओं के आभास में दूर दराज के गांव से लोग बड़े गांव या शेहरों की तरफ पलायन करने पर मजबूर हो जाते है और लदाख में इसी बात का फायदा उठा कर चीनी सेना इन खाली गांव पर अपना कब्जा जमा लेती है और अपनी जमीन होने का दावा ठोक देती है. दुन्गती गांव के बिजली के कारण से यह बात साफ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास दोनों ही काम एक छोटे से कदम से हो गए है.


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