चौरी चौरा कांड के सौ साल पूरे होने के मौके पर शताब्दी समारोह, प्रधानमंत्री मोदी करेंगे उदघाटन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्य से चौरी चौरा शताब्दी समारोह की शुरूआत करेंगे. इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चौरी चौरा शताब्दी समारोह की शुरूआत करेंगे. साथ ही एक विशेष डाक टिकट भी जारी करेंगे. यह समारोह साल भर चलेगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल इस अवसर पर उपस्थित रहेंगे.
सरकार ने चौरी चौरा कांड के शहीदों के स्मारक स्थल और संग्राहलय का पुनरूद्धार किया है. वहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. जिला प्रशासन वीडियो अपलोड के माध्यम से वन्दे मातरम गीत की पहली पंक्ति को एक साथ गाकर गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिये पूरी तरह से तैयार है.
जिले के अपर जिला अधिकारी वित्त राजेश कुमार सिंह ने बताया, “हम बुधवार को दोपहर तक 50 हजार वीडियो अपलोड कर चुके हैं और उम्मीद है कि यह आंकड़ा एक लाख को पार कर जाएगा जिसमें राष्ट्र गीत वन्दे मातरम की पहली पंक्ति है. हमें उम्मीद है कि हमें गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिलेगा. यह वीडियो गुरुवार को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा."
जिला प्रशासन ने मुंडेरा नज़र नगर पंचायत का नाम बदलकर चौरी चौरा नगर पंचायत करने का प्रस्ताव पहले ही सरकार को भेज दिया है और उम्मीद है कि शताब्दी समारोह के दौरान मुख्यमंत्री इसकी घोषणा कर सकते हैं.
क्या है चौरी चौरा कांड?
इतिहास बताता है कि चार फरवरी को स्थानीय लोग चौरी-चौरा कस्बे में, महात्मा गांधी के शुरू किए गए असहयोग आंदोलन के समर्थन में जुलूस निकाल रहे थे तभी स्थानीय पुलिस के साथ उनकी झड़प हुई. पुलिस की गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई और कई घायल हो गए. इससे प्रदर्शनकारियों का आक्रोश भड़क गया. तब पुलिस वाले थाने में छिप गए, लेकिन लोगों ने बाहर से कुंडी लगाकर थाने में आग लगा दी. इस घटना में 22 पुलिसकर्मी मारे गये. घटना की प्रतिक्रिया में, अहिंसा के पैरोकार महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया.
चौरी-चौरा काण्ड में 172 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी. बतौर वकील पंडित मदन मोहन मालवीय की पैरवी से इनमें से 151 लोग फांसी की सजा से बच गये. बाकी 19 लोगों को 2 से 11 जुलाई 1923 के दौरान फांसी दे दी गई. इस घटना में 14 लोगों को उम्र कैद और 10 लोगों को 8 साल सश्रम कारावास की सजा हुई. जिन लोगों को फांसी दी गई, उनकी याद में एक स्मारक बनाया गया.
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